नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) पर लिबरलों के प्रोपगैंडा की धज्जियां उड़ाते हुए पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने स्पष्ट किया है कि नागरिकता संशोधन विधेयक किसी के अधिकारों का हनन नहीं करती है। कुलभूषण जाधव केस में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रसिद्ध अधिवक्ता व पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने सीएबी को न केवल अपना समर्थन दिया, बल्कि उन्होंने लिबरलों और उनके समर्थकों द्वारा फैलाये गए हर प्रकार के झूठ को भी ध्वस्त किया।
बता दें कि नागरिकता संशोधन विधेयक 1955 के नागरिकता एक्ट में संशोधन के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाया गया विधेयक है। इसके अनुसार पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान एवं बांग्लादेश के प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदायों को भारत में नागरिकता प्रदान की जाएगी। इसे लोकसभा में पारित किया जा चुका है और इसे आज यानी बुधवार को राज्य सभा में पेश किया जा रहा है।
ऐसे में हरीश साल्वे ने उन सभी प्रोपगैंडावादियों को चुन चुन के ध्वस्त किया है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 की दुहाई देके इस विधेयक का विरोध कर रहे थे। उन्होने बताया कि एक तो अनुच्छेद 14 इस स्थिति में अमान्य है, और अनुच्छेद 15 भारत के नागरिकों पर लागू होता है, भारत में शरण लिए वैध शरणार्थियों पर नहीं।
हरीश साल्वे ने टाइम्स नाऊ से अपनी बातचीत में बताया, “ये एक महीन कानून है, जो उन्ही के लिए बनाया गया है, जो हमारे इस्लामिक पड़ोसी देशों में प्रताड़ित किए जा रहे हैं”। उन्होने ये भी बताया कि कैसे सीएबी किसी भी स्थिति में भारतीय संविधान का उल्लंघन नहीं करती है, और अनुच्छेद 15 और 21 केवल उन्हीं भारतीय नागरिकों पर लागू होता है, जो भारत में रहते हैं, उन पर नहीं जो भारत में प्रवेश करना चाहता है”। उन्होंने यह भी कहा कि जो भी अनुच्छेद 14 की दुहाई देके विरोध कर रहे हैं, उन्हे संविधान के बारे में बहुत सीमित ज्ञान है।
'CAB is not anti-Muslim and doesn’t violate Art 14, 15 or even 21 of the Constitution,' India’s leading legal mind Harish Salve opines on Citizenship Amendment Bill (CAB) on India Upfront with Rahul Shivshankar. | #CABProtest pic.twitter.com/wGXQ5lIGa9
— TIMES NOW (@TimesNow) December 10, 2019
परंतु हरीश साल्वे यहीं पर नहीं रुके। उन्होने शेर और मेमने का उदाहरण देते हुए कहा है कि उन दोनों के लिए एक कानून को हम समान नहीं मान सके, और हर समस्या के लिए अलग कानून की आवश्यकता पड़ सकती है। इसी तरह उन्होंने रोहिंग्या घुसपैठियों की समस्या के बारे में बात करते हुए कहा कि एक समस्या के समाधान हेतु लागू हुआ कानून सभी समस्याओं पर लागू हो, ऐसा जरूरी नहीं है।
जब उनसे यह प्रश्न किया गया कि कहीं ये विधेयक मुस्लिम विरोधी तो नहीं है, तो अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा, “जो राज्य के धर्म [स्टेट religion] का हिस्सा हों, वो कैसे धार्मिक भेदभाव का शिकार होगा? यह आर्थिक प्रवास के लिए दरवाजे नहीं खोल रहा है। यदि किसी व्यक्ति को राजनीतिक रूप से इसलिए शरण चाहिए क्योंकि उसे उसके देश में प्रताड़ित किया जा रहा है, तो उसे एक आम शरणार्थी की भांति ही शरण और नागरिकता प्रदान की जाएगी। उन्होंने आगे ये भी बोला, “इस कानून ने ये तो कभी नहीं कहा कि पड़ोसी राज्यों के मुसलमानों को कभी भी नागरिकता नहीं दी जाएगी”।
इस विधेयक के खिलाफ नैतिक आधार पर पेश किए जा रहे तर्कों पर हरीश साल्वे ने बोला कि इस विधेयक में उल्लेख किए गए तीन इस्लामिक गणराज्यों में इस्लाम राज्य धर्म के रूप में संविधान में पहले से ही उपस्थित है। अल्पसंख्यकों के सामने जो समस्या है, उसे हल करने के लिए एक विधेयक भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के खिलाफ नहीं जाएगा।
उन्होंने इस तर्क से उन्हें भी आड़े हाथों लिया, जिन्होंने यह तर्क देते हुए विधेयक के विरुद्ध नारेबाजी की कि विधायी क्षमता की कमी के कारण संसद को इस विधेयक पर चर्चा नहीं करनी चाहिए। हरीश साल्वे का इशारा विपक्ष समेत पूर्व सॉलिसीटर जनरल सोली सोराब्जी की ओर भी था, जिन्होंने बिना कोई ठोस कारण दिए इस विधेयक को असंवैधानिक करार दिया था।
हरीश साल्वे निस्संदेह भारत के सबसे बेहतरीन अधिवक्ताओं में से एक रहे हैं, वे भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल भी रह चुके हैं। कुलभूषण जाधव के केस में उन्होंने बड़ी परिपक्वता से भारत का पक्ष विश्व के समक्ष रखते हुए पूर्व नौसैनिक अफसर की फांसी रुकवाने में एक अहम भूमिका निभाई। सच कहें तो जब तथ्यों के आधार पर वामपंथियों और अफवाह फैलाने वाले लोगों की पोल खोलनी हो, तो अधिवक्ता हरीश साल्वे का कोई सानी नहीं।