NRC-CAA पर हार के बाद, कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बिना बदलाव के NPR का विरोध शुरू कर दिया है

नागरिकता संशोधन कानून के पारित होने के बाद कांग्रेस और उसका इकोसिस्टम तुरंत एक्टिव हो गया था और अपने स्लिपर सेल्स को भी एक्टिव कर दिया था। इसके बाद CAA और NRC देश के कई हिस्सों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ लेकिन ये प्रदर्शन कांग्रेस के ऊपर ही भारी पड़ गया क्योंकि उसके कार्यकाल में NRC की कवायद शुरुआत हुई थी और यह सामने भी आने लगा था। इसके बाद जब कैबिनेट ने NPR को अपडेट करने के लिए बजट पास किया और मंजूर किया तो अब कांग्रेस बिना सोचे समझे NPR के भी विरोध कूद पड़ी है। इस बार भी कांग्रेस बिना किसी स्ट्रेटजी के ही CAA और NRC के विरोध प्रदर्शनों की तरह NPR पर लोगों के बीच भ्रम और अफवाह पैदा कर आंदोलन करवाना चाहती है पर यहाँ भी वह पूरी तरह से एक्सपोज हो चुकी है।

कांग्रेस यह भूल गयी कि उसके नेतृत्व वाला यूपीए गठबंधन सरकार ही थी जिसने 2010 में एनपीआर की शुरुआत की थी, भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार केवल इसे अपडेट कर रही है। उस वक्त एनपीआर के बारे में डींग मारते हुए, तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री, पी चिदंबरम ने कहा था, “यह मानव इतिहास में पहली बार है जब हम 120 करोड़ लोगों के लिए पहचान, गणना, रिकॉर्ड, और अंततः पहचान पत्र जारी किए जाएंगे।”

पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल सबसे पहले एनपीआर में शामिल हुई थीं। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को जुलाई, 2012 में राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) में बायोमेट्रिक तरीके से शामिल किया गया था। इसके बाद, उन्होंने सभी निवासियों से सरकार की इस प्रमुख योजना एनपीआर में अपना नामांकन सुनिश्चित करने का आग्रह किया था।

इसके बाद, 2013 में यूपीए सरकार ने भी इस पहल को बढ़ावा देने और इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का एक एनथम भी शुरू किया। ऐसा लगता है कि 6 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस अपने शुरू किए गए कार्यकरम के बारे में भूल गयी हैं।

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इसके अलावा, कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां यह तर्क दे रहीं है कि यह भाजपा है जिसने एनपीआर को एनआरसी से जोड़ा है। बता दें कि यह भी सरासर झूठ है। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया कि 2018-19 के वार्षिक गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘एनपीआर एनआरसी का पहला कदम है।’ तथ्य यह है कि इस लाइन, ‘एनपीआर एनआरआईसी की तैयारी की दिशा में पहला कदम है’ को एक 2011 में तैयार गृह मंत्रालय के मसौदा के दस्तावेज़ से लिया गया है।

इसके अलावा यूपीए सरकार ने कम से कम तीन बार देश को बताया था कि एनपीआर के बाद एनआरसी आएगा। यहाँ तक कि इस पायलट प्रोजेक्ट के लिए योजना आयोग ने 11वीं पंचवर्षीय योजना में 300 करोड़ का प्रावधान भी किया था।

 

एनपीआर को NRIC के सब-सेट के रूप में लेना स्पष्ट रूप से यूपीए सरकार की आधिकारिक नीति थी। आज इसका विरोध यही दिखाता है कि या तो कांग्रेस अपनी नीति को ही भूल गई है या वह राष्ट्र को गुमराह करने की कोशिश कर रही है।

मोदी सरकार पर यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि NRIC  को लाने के लिए एनपीआर लाया जा रहा है। आरोपों के विपरीत तत्कालीन गृह राज्य मंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी ने 16 दिसंबर 2014 को एक प्रश्न का उत्तर देते हुए स्पष्ट रूप से कहा था कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल को एनपीआर का संचालन करते समय नागरिकों और गैर-नागरिकों की पहचान करने के लिए नहीं कहा गया था।

सीएए के मुद्दे पर तो कांग्रेस पहले ही एक्सपोज हो चुकी है। बता दें कि कांग्रेस नेता और असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, ने 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक memorandum  सौंपकर अनुरोध किया था कि उन भारतीय नागरिकों को जो विभाजन के समय भेदभाव और धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा था, उन्हें विदेशियों के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।

कांग्रेस ने फिर वर्ष 2015 में फिर से इस रुख को दोहराया, जिसमें मांग की गई थी कि हिंदू बंगाली, बांग्लादेश से पलायन करने वाले बौद्धों को नागरिकता दी जाए। यह ध्यान में रखना होगा कि यह ठीक वही समय था जब UPA NPR के बारे में प्रचार-प्रसार कर रहा था जिसने NRIC की आधारशिला रखा। वरिष्ठतम कांग्रेसी नेताओं में से एक और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, ने भी अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने पर जोर दिया था।

आज, कांग्रेस और उसके समर्थक भाजपा पर “मुस्लिम-विरोधी” होने का आरोप लगा रहे हैं। हालांकि, जिस तरह से कांग्रेस ने अपने कार्यकाल के दौरान एनपीआर की शुरुआत की थी, उसी ने देशव्यापी एनआरसी की नींव रखी।

यह कांग्रेस के दोहरे रुख को ही दिखाता है। अब जो भी कांग्रेस कर रही है, वह भारतीय राजनीतिक में अब तक के सबसे शर्मनाक और सबसे बड़े यू-टर्न में से एक है। एनपीआर का विरोध करके, कांग्रेस ने अपने संवेदनशील मुद्दे पर पाखंड और दोहरेपन को ही उजागर किया है। किसी भी नीति का विरोध करने से पहले कांग्रेस को यह सोचना चाहिए था कि उसने इस दिशा में कोई फैसला लिया है या नहीं। अगर लिया है तो फैसला पक्ष में लिया है या विरोध में। इसके बाद उसे यह निर्णय लेना था कि वह उस मुद्दे का विरोध करे या समर्थन दे। परंतु कांग्रेस यहाँ पर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आम जनता में झूठ और अफवाह फैला कर समर्थन हासिल करना चाहती है पर भूल गयी है कि अब जमाना सोशल मीडिया का है और अगर अफवाह तेज़ी से फैलती है तो उतनी ही तेज़ी से सही खबर भी फैलती है।

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