PM मोदी की एक और कूटनीतिक जीत: सैंक्शन हटाने के बाद अब US चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट में करेगा भारत की मदद

चाबहार बंदरगाह

भारत के लिए एक अहम निर्णय में यूएसए ने उन्हें लिखित आश्वासन दिया है कि वे ईरान में भारत द्वारा विकसित किए जा रहे चाबहार बन्दरगाह के लिए आवश्यक उपकरणों की लागत में लगने वाले फण्ड हेतु ग्लोबल बैंकों द्वारा भारत को सभी सुविधाएं प्रदान कराएंगे। ये लिखित आश्वासन भारत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, क्योंकि इस बन्दरगाह से भारत के लिए पश्चिमी और केन्द्रीय एशिया के द्वार खुल सकते हैं। इससे पहले अमेरिकी सैंक्शन के डर से बैंक भारत को इसके लिए आवश्यक लोन नहीं देना चाहते थे, परंतु अब यूएस के लिखित आश्वासन से भारत के लिए चाबहार बन्दरगाह को विकसित करने का रास्ता भी साफ हो चुका है।

पिछले वर्ष यूएस ने ईरान पर कई आर्थिक सैंक्शन लगाए थे। परंतु नवंबर 2018 में अमेरिका ने ईरान में स्थित चाबहार बन्दरगाह के विकास के लिए भारत को कुछ सैंक्शन से मुक्त रखा। अब यूएस द्वारा लिखित आश्वासन से यह स्पष्ट होता है कि वे खुद भी भारत को सामरिक रूप से अहम इस बन्दरगाह के विकास हेतु सहायता देना चाहता है।

जहां ये बन्दरगाह भारत के लिए अहम है ही, तो वहीं ये अमेरिका के लिए भी समान रूप से अहम है। यूएस को आभास है कि चाबहार बन्दरगाह के विकास से अमेरिका अफगानिस्तान में अपने व्यापार संबंधी आवश्यकताओं के लिए न केवल बल मिलेगा, अपितु पाकिस्तान पर निर्भरता भी कम हो जाएगी। यूएस को ऐसा इसलिए भी सोचना पड़ रहा है क्योंकि पाकिस्तान से जाने वाले सप्लाई रूट अब पहले जितने सुरक्षित नहीं रहे हैं, और पाकिस्तान द्वारा आतंक को बढ़ावा देते रहने की नीति से यूएस के व्यापार संबंधी आवश्यकताओं को भी नुकसान हो रहा है।

ऐसे में चाबहार पोर्ट का विकास भारत द्वारा अफ़ग़ानिस्तान के विकास की योजनाओं की पुष्टि भी करता है। 2001 से अफगानिस्तान के पुनरुत्थान के लिए भारत ने जो कदम उठाए हैं, उसे यूएसए द्वारा प्रशंसित भी किया गया है। ट्रम्प प्रशासन ने भारत को अफगानिस्तान में आतंक के विरुद्ध उनके युद्ध में शामिल होने के लिए निमंत्रण भी दिया था, परंतु भारत ने ऐसे किसी भी गतिविधि में शामिल होने से मना कर दिया। हालांकि भारत ने अफगानिस्तान से व्यापार संबंधी आवश्यकताओं हेतु अमेरिका की हरसंभव सहायता करने का आश्वासन भी दिया है।

चाबहार बंदरगाह के विकास में अमेरिका की मदद करने के साथ, यह क्षेत्र अब राजनीतिक रूप से भी एक अहम केंद्र बनने जा रहा है। यह बन्दरगाह इसलिए भी और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि चीनी स्वामित्व वाला ग्वादर बंदरगाह अब मुसीबत में फंस गया है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ग्वादर बंदरगाह के रास्ते में अड़चनें डाल कर रही है, जो भ्रष्ट प्रशासन द्वारा पाकिस्तान सरकार द्वारा कर्ज में डूबे हुए लोगों के लिए और अधिक जटिल हो जाता है। पिछले महीने, चीन की COSCO शिपिंग लाइन्स ने हाल ही में कराची और ग्वादर के बीच अपनी कंटेनर लाइनर सेवाओं को समाप्त कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया कि पाकिस्तान की अपर्याप्त नीतियों और उपायों ने बाजार के विकास को प्रभावित किया है।

चाबहार बंदरगाह, ग्वादर बंदरगाह को पछाड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है। अमेरिका भी इस बंदरगाह के विकास का समर्थन कर रहा है,  और भारत को चाबहार बंदरगाह के विकास पर वही समर्थन मिल रहा है, जिसकी उसे बेहद आवश्यकता थी। इसलिए अमेरिका द्वारा लिखित आश्वासन को भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक विजय और चाबहार बंदरगाह के सामरिक महत्व की पुन: पुष्टि के रूप में वर्णित किया जाना चाहिए।

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