BHU, IIT मुंबई और अन्य यूनिवर्सिटीज ने खुलकर किया CAA का समर्थन परन्तु मीडिया को JNU और AMU से फुर्सत नहीं

विश्वविद्यालय

PC:Hindustan Times

जब से नागरिकता  संशोधन अधिनियम आया तब से ही मुख्यधारा की मीडिया ’विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा किये जा रहे विरोध की खबरें दिखाने में व्यस्त है। आश्चर्य की बात यह है कि इस एक्ट के समर्थन में आयोजित रैलियों को न तो टीवी में दिखाया गया न ही वेबपोर्टल्स पर और ना ही प्रिंट या अखबार में छापा गया है।

कई विश्वविद्यालय हैं जहां किसी प्रकार का विरोध नहीं है और वह इस कानून से खुश नहीं है तो दुखी भी नहीं है। यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ 22 यूनिवर्सिटीज़ में ही हो रहा है जिसमें से 4 में प्रमुख रूप से। ठीक इसके उलट इस कानून का समर्थन करने वाले छात्रों की विरोध करने वालों से अधिक संख्या है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्रों ने मंगलवार को सीएए और एनआरसी के समर्थन में एक रैली आयोजित की, लेकिन मुख्यधारा की मीडिया एजेंसियों में से किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि समाचार एजेंसी यूएनआई इस कहानी को कवर करेगी। यह आयोजन CAA को पारित करने के लिए सरकार को धन्यवाद करने के लिए भी था। वहीं राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानNITसूरत में छात्रों ने विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों द्वारा फैलाये जा रहे फर्जी खबरों की निंदा की।

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इसके अलावा विभिन्न प्रमुख राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों में लगभग 1,000 छात्रों ने CAA के समर्थन में बयान जारी किया और देश भर में हिंसक विरोध प्रदर्शन की निंदा की।

इन छात्रों ने संयुक्त बयान में कहा कि “हम भारत की संसद द्वारा पारित नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के लिए अपना समर्थन व्यक्त करते हैं। हम निहित स्वार्थों के लिए कुछ शरारती तत्व द्वारा किए जा रहे हिंसक विरोधों पर हैरान हैंऔर इन घटनाओं की निंदा करते हैं।”

विधि विश्वविद्यालयों के छात्र अन्य छात्रों की तुलना में इस नए अधिनियमों को बेहतर समझते हैं, इसलिए, महत्वपूर्ण रूप से इस कानून का समर्थन कर रहे है।

हैदराबाद के National Academy of Legal Studies and Research (NALSAR) के शुभम तिवारी नेबताया,”संसद के पास सभी विधायी क्षमता है क्योंकि नागरिकता मामले केंद्रीय सूची के अंतर्गत आती है। अधिनियम न तो अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है और न ही यह संसद की विधायी क्षमता से अलग है। इसलिए, अधिनियम को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।”उन्होंने आगे कहा,”यह कानून इन तीनों देशों से आने वाले किसी भी नए व्यक्ति को आमंत्रित नहीं करता, बल्कि 31 दिसंबर, 2014 तक देश में प्रवेश करने वाले नागरिकों को ही मान्यता दी जाती है। ऐसी नागरिकता पहले के शासनकाल में भी दी जा चुकी है।”

आईआईटी, एनआईटी और आईआईएम के छात्रों ने भी इस अधिनियम का समर्थन किया, और CAA के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किए। इससे यही स्पष्ट होता है कि उनके पास इस विषय का ज्ञान है, और उन्होंने इसे पढ़ा है कि यह कानून किसी भी संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है या नहीं। IIT दिल्ली से राहुल गडकरी ने यह तर्क दियाहै कि “इनर लाइन परमिट को मान्यता देना स्पष्ट रूप से पूर्वोत्तर राज्यों की संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने के सरकार के इरादे को दिखती करता है। कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए उत्तर-पूर्वी राज्यों में अशांति को हवा दे रहे हैं एजेंडे के के लिए अधिनियम के बारे में गलत सूचना फैलाई जा रही है।”

इसके साथ ही JNU की ABVP इकाई भी इस अधिनियम का समर्थन करने की योजना बना रही है, और इस अधिनियम के समर्थन में विश्वविद्यालय के T Point पर मार्च करने का आह्वान किया है।

इसके अलावा MS विश्वविद्यालय, वडोदरा के छात्रों ने अधिनियम के समर्थन में रैली की। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी छात्रों के एक वर्ग ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के समर्थन में मार्च निकाला।

यह आश्चर्य की बात है कि किस तरह से मीडिया की खबरों में इस अधिनियम के समर्थन में आयोजित मार्च और रैलियों को जगह नहीं मिली है। मीडिया अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के एक वर्ग द्वारा विरोध प्रदर्शन को पूरे विश्वविद्यालय और कॉलेज द्वारा विरोध को ही दिखा कर इसे भारत सरकार की गलती बताने का प्रयास कर रहा है। इस अधिनियम के खिलाफ नकारात्मक माहौल बनाने के लिए मीडिया द्वारा हिंसा का सामान्यीकरण के अलावा यह कुछ भी नहीं है।

बता दें कि लाए गए नए कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्य जो 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हैं उन्हें नागरिकता देगा। लेकिन,कुछ संस्थानों ने इस कानून का विरोध करना शुरू कर दिया,और इस कानून के बारे में दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया।

अपने आप को लिबरल कहने वाले संस्थान, जैसे- जेएनयू, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू), जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई), जादवपुर विश्वविद्यालय, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) और कई अन्य संस्थानों ने CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, जबकि विज्ञान-प्रौद्योगिकी-इंजीनियरिंग-गणित (एसटीईएम), कानून, और प्रबंधन वाले विश्वविद्यालयों ने बड़े पैमाने पर इसका समर्थन किया।

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