बॉलीवुड का जीवन मंत्र – अज्ञानता परमो धर्म:

हमारे बॉलीवुड की बात ही निराली है। विश्व में सबसे ज़्यादा फिल्में बनाने वाली भारतीय फिल्म उद्योग का एक अहम हिस्सा होने के नाते बॉलीवुड को भारत के ‘सॉफ्ट पावर’ का भी एक अहम हिस्सा माना जाता है। इसीलिए वे चाहते हैं कि देश के हर मुद्दे पर उनकी आवाज़ को प्रमुख रूप से ध्यान दिया जाये।  आखिर फेम का भूखा कौन नहीं होता?

हमारा बॉलीवुड इतना परिपक्व और शिक्षित है कि जब उनसे पूछा जाता है कि देश का राष्ट्रपति कौन है, तो झट से जवाब आता है, ‘पृथ्वीराज चौहान!’ चौंकिए मत, ये वास्तव में अभिनेत्री आलिया भट्ट ने चर्चित चैट शो ‘कॉफी विद करन’ में कहा है। इसी भांति जब भारत के प्रसिद्ध पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का 2015 में असामयिक निधन हुआ, तो अभिनेत्री अनुष्का शर्मा ने उनके लिए एक पोस्ट शेयर करते हुए उनका अलग नाम ही रख दिया। ट्वीट में वे कहती हैं, “मैं डॉ॰ एबीजे कलाम आज़ाद की मृत्यु से बहुत दुखी हूँ” –

सच कहें, तो बॉलीवुड इतना परिपक्व और शिक्षित है कि यदि उनसे पूछा जाये कि दो और दो कितना होता है, तो वे गर्व से 7 कहेंगे और उसे उचित ठहराने में कोई कसर भी नहीं छोड़ेंगे। जिस बॉलीवुड में कोई अभिनेत्री यह कहे कि एडोल्फ़ हिटलर ने ओलंपिक गेम्स की शुरुआत थी, वहाँ परिपक्वता की आशा करना हास्यास्पद ही होगा। आलिया भट्ट और अनुष्का शर्मा का केस तो मात्र शुरुआत थी, क्योंकि आने वाले वर्षों में देश के हर मुद्दे पर बॉलीवुड ने जिस तरह से अपना पक्ष रखा, उससे ये स्पष्ट हो गया कि वे वास्तव में देश के प्रति कितने चिंतित है।

पद्मावत पर उनका आक्रोश हो, कठुआ केस पर उनकी प्रतिक्रिया हो, या फिर हाल ही में सीएए यानि नागरिकता संशोधन कानून के प्रति जताया गया इनका विरोध ही क्यों न हो। हमारे बुद्धिजीवी वर्ग की सबसे बड़ी बीमारी यही है कि उनकी खुद की कोई विचारधारा नहीं है, और वे पश्चिमी सभ्यता का ही अंधानुकरण करते हैं। जिस प्रकार अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के बढ़ते कद के विरोध में लगभग पूरा हॉलीवुड एक हो गया था, उसी भांति बॉलीवुड ने अपने डोनाल्ड ट्रम्प के तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी को चिन्हित किया, और उनके विरुद्ध अपना अभियान चलाना प्रारम्भ किया।

इस अजीब अभियान की शुरुआत 2017 में हुई, जब करणी सेना ने पद्मावत में कथित रूप से अलाउद्दीन खिलजी के गुणगान जैसे विषय पर आपत्ति जताई, जो जल्द ही हिंसक प्रदर्शन में परिवर्तित हो गयी। बॉलीवुड इस विषय पर चुप तो रह नहीं सकता और उसने आवाज़ भी उठाई, परंतु उनके बयान सुनकर  तो बेवकूफ़ से बेवकूफ़ अपने आप को सयाना समझने लगेगा। किसी के लिए हिंसक प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति आतंकवादी हो गए, तो किसी के लिए पूरा का पूरा राजपूत समुदाय ‘गुंडे’ हो गए। अनुराग कश्यप ने तो हिंसक प्रदर्शनों के लिए हिन्दू आतंकवाद को ही दोषी ठहरा दिया। परंतु जब फिल्म के प्रदर्शित होने पर पासा उल्टा पड़ गया, तब भी बॉलीवुडिया लिबरलों का फिल्म के प्रति अतार्किक विरोध कम नहीं हुआ।

अब बॉलीवुड के सामान्य ज्ञान की तो बात ही मत पूछिये। चाहे पता कुछ न हो, पर बॉलीवुड के अधिकांश हस्तियों का उत्साह देखने लायक होता है, और ये बात सोनाक्षी सिन्हा से बेहतर कौन जान सकता है। केबीसी में एक स्पेशल एपिसोड के दौरान जब उनसे सवाल पूछा गया कि रामायण में पवनपुत्र हनुमान किनके लिए संजीवनी बूटी लाये थे, तो सोनाक्षी न केवल असहज लग रही थीं, अपितु उन्होंने इसके लिए लाइफलाइन का भी उपयोग किया, जिसके लिए उन्हें सोशल मीडिया पर उपहास का पात्र भी बनना पड़ा। परंतु ये वही बॉलीवुड है, जहां सोनम कपूर को यह लगता है कि राष्ट्रगान में हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई मुख्य राष्ट्रगान का एक अहम हिस्सा है।

इसी प्रकार 2018 में पत्रकार बरखा दत्त ने कठुआ केस में निष्पक्ष जांच के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे स्थानीय जनता को हिन्दुत्व का ध्वजवाहक घोषित करते हुए बताया कि यह कैसे राष्ट्रवाद के नाम पर दुष्कर्म का समर्थन कर रहे हैं। फिर क्या था, बिना सोचे समझे बॉलीवुड ने मृतका को न्याय दिलाने के नाम पर हिन्दू विरोधी प्लाकार्ड अभियान शुरू कर दिया। ‘आई एम हिंदुस्तान, आई एम अशेम्ड’ नाम से चर्चित इस अभियान में साफ दिख रहा था कि बॉलीवुड केस की वास्तविकता से कितना परिचित था, क्योंकि वे बार बार दुहाई दे रहे थे कि दुष्कर्म मंदिर के प्रांगण में हुआ था, जबकि दुष्कर्म के स्थान को लेकर अभी तक जांच चल रही है।

कठुआ के अभियान में जो भी बॉलीवुड के इस ब्रिगेड के विरुद्ध जाता, वो चाहे कितना भी तार्किक और यथार्थवादी पक्ष सामने रखता हो, उसे तुरंत दुष्कर्म समर्थक घोषित कर दिया जाता, और इसमें सबसे आगे बढ़कर मोर्चा संभाला सोनम कपूर और स्वरा भास्कर ने, जिनके सामान्य ज्ञान को देखकर स्वयं राहुल गांधी कह दे, ‘बस कर बहना, रुलाएगी क्या?’

परंतु बॉलीवुड की अज्ञानता वास्तव में सीएए के साथ ही उजागर हुई। एक के बाद एक ट्वीट करते हुए कई बॉलीवुड सेलेब्रिटी इसके विरोध में सामने आए, परंतु उनमें से किसी को भी पता नहीं था कि सीएए वास्तव में क्या है। कुब्रा सैत जैसे कई सेलेब्रिटी भी थे, जिन्हें विधेयक और कानून के बीच का अंतर नहीं पता था, और वे पीएम मोदी को उपदेश दे रही थीं। आलिया भट्ट ने तो देश की इंटिग्रिटी की दुहाई देने के लिए संविधान के प्रस्तावना की एक प्रति अपने इन्स्टाग्राम पेज पर अपलोड की, परंतु वे ये भूल गयी कि उन्होंने वास्तव में संविधान के मूल प्रस्तावना को अपलोड ही किया है, जिसमें सोशलिस्ट और सेक्यूलर शब्द शामिल ही नहीं था। दरअसल, भारतीय संविधान के प्रस्तावना को 42वें संशोधन के साथ बदला गया था इसमें संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य sovereign democratic republic और राष्ट्र की एकता unity of the nation जैसे शब्दों को बदला गया था।

अब बॉलीवुड के अज्ञानता की बात करें और फरहान अख्तर की बात न हो, ऐसा हो सकता है क्या? सीएए के विरोध में जहां उन्होंने कुछ बेहद भड़काऊ इमेज पोस्ट किए, तो वहीं अगस्त क्रांति मैदान में हुए विरोध प्रदर्शन में एक एनडीटीवी पत्रकार से बातचीत के दौरान ये पता चला कि उन्हें इस कानून के बारे में कोई ज्ञान है ही नहीं। जब पत्रकार उनसे पूछने लगे कि वे इस कानून का विरोध क्यों कर रहे हैं, तो वे कहने लगे, “जब इतने लोग विरोध करें, तो कुछ तो गलत ही होगा न?” यदि बॉलीवुड के कलाकारों पर उनकी अज्ञानता के लिए उनपर सवाल उठाएं तो वे ऐसे उत्तेजित होते हैं, मानो उन्हें चोरी करते रंगे हाथ पकड़ा गया हो। ऐसे कौन विरोध करता है भई?

इसी प्रकार से जब अभिनेता जिम सार्भ से पूछा गया कि वे बिल का विरोध क्यों कर रहें है, तो किसी राजनीतिक कार्यकर्ता की भांति वे एक रटी रटाई स्पीच बोलने लगे। उनके अनुसार, “वर्तमान सरकार ध्रुवीकरण और भेदभाव की राजनीति में विश्वास रखती है। गुजरात के दंगों को देख लीजिये, आरएसएस के उत्थान को देखिये, शहरों के नाम बदलने की बात हो, इतिहास को दूसरे तरह से बताना हो, गौरक्षक, लिंचिंग, लव जिहाद, कश्मीर में संविधान की मर्यादा को तार-तार करना, आतंक के आरोपियों और दुष्कर्मियों की नियुक्ति, आप बस बोलते जाइए और सरकार ने यह सब किया है। इस राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा के मैं विरुद्ध हूँ, और इसीलिए मैं बिल के विरुद्ध हूँ”।

सच कहें तो बॉलीवुड को किसी विषय पर चाहे कुछ भी न पता हो, पर जिस उत्साह से वे अपने विचार प्रस्तुत करते हैं, उससे हमें क्रोध कम, हंसी ज़्यादा आती है। औरों के लिए चाहे जो भी जीवन मंत्र हो, परंतु बॉलीवुड के लिए एक ही जीवन मंत्र लागू होता है – ‘अज्ञानता परमो धर्म:’।

 

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