रेप के आरोपियों को कम से कम फांसी की सजा होनी ही चाहिए, IPC में बदलाव की सख्त जरूरत

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PC: India TV

आज बेशक तेलंगाना पुलिस ने हैदराबाद कांड के आरोपियों को एक मुठभेड़ में मारा गिराया हो, लेकिन पिछले कुछ दिनों से जिस तरीके से इस मामले ने लोगों को आक्रोशित किया हुआ है, वह किसी से छुपा हुआ नहीं है। लोग एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं और सरकार से बलात्कार के विरुद्ध और ज़्यादा कड़े कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। ऐसे में अब सरकार के पास अच्छा मौका है कि वह IPC की धारा 376 में उस सभी प्रावधानों को और कड़ा कर दे, जो रेप के दोषियों को सजा देने से जुड़ी हैं। अभी इस धारा में कई कमियां हैं और साथ ही इसमें कई विवादित प्रावधान भी इसमें शामिल हैं। लोगों का दबाव होने की वजह से अभी विपक्ष भी इस कानून के और कड़े होने की राह में कोई रोड़ा नहीं अटका पाएगा, और देश में और ज़्यादा कड़े कानून होने और उनके सही से लागू होने की अवस्था में हम रेप के मामलों में कमी होने की उम्मीद भी कर सकते हैं।

बता दें कि धारा 376 बलात्कार के लिए दंड के प्रावधानों से संबन्धित है और इसके तहत बलात्कार की अलग-अलग श्रेणी में किसी भी दोषी के लिए 2 वर्ष से लेकर 20 वर्षों तक की सज़ा का प्रावधान है, और इस सज़ा को आजीवन कारावास तक भी बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, इस धारा में कहीं भी दोषी के लिए मृत्युदंड का प्रावधान नहीं है। सरकार को अभी इस धारा में बदलाव कर दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करने की आवश्यकता है।

धारा 376 के मुताबिक जो भी व्यक्ति, धारा 376 के उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के तहत दंडनीय अपराध करता है और इस तरह के अपराधिक कृत्य के दौरान लगी चोट एक महिला की मृत्यु या सदैव शिथिल अवस्था का कारण बनती है तो उसे एक अवधि के लिए कठोर कारावास जो कि बीस साल से कम नहीं होगा से दंडित किया जाएगा, इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता हैं, जिसका मतलब है कि उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए या मृत्यु होने तक कारावास की सज़ा”।

यहां कहीं भी मृत्युदंड का ज़िक्र नहीं दिखाई देता। इसके अलावा धारा 376(क) के तहत तो बलात्कार करने के दोषी के लिए सजा सिर्फ 2 साल तक घट जाती है। धारा 376(क) के मुताबिक

“यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के विभाजन के तहत अलग रहने के दौरान अपनी पत्नी के साथ उसकी मर्जी के विरुद्ध संभोग करता है तो वो भी बलात्कार की श्रेणी में ही आता है। जिसके लिए कानून में दो वर्ष तक की सजा और आर्थिक दंड का प्रावधान दिया गया है”।

इसके अतिरिक्त बलात्कार संबन्धित अन्य धारा 375 में रेप की परिभाषा में दोषी को सिर्फ ‘पुरुष’ कहकर संबोधित किया हुआ है, और इस धारा के मुताबिक दोषी कभी महिला हो ही नहीं सकती। इस धारा के तहत रेप की परिभाषा को तुरंत लिंग-भेद मुक्त करने की आवश्यकता है।

सरकार IPC में बदलाव करने पर पहले से ही विचार कर रही है। राज्यसभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 4 दिसंबर को कहा था कि हम सीआरपीसी और आईपीसी में बदलाव के लिए काम कर रहे हैं। इस बारे में केंद्र सरकार ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को खत भी लिखा है। उन्होंने कहा था, हमने सीआरपीसी और आईपीसी में बदलाव के लिए एक समिति भी बनाई है। सुझाव आने के बाद हम बदलाव करेंगे”।

अब जब सरकार पहले से ही IPC में बदलाव करने पर काम कर रही है, तो इन सभी धाराओं को भी और कड़ा करने की ज़रूरत है, और साथ ही रेप की परिभाषा में महिलाओं और अन्य मान्यता प्राप्त लिंगों को भी जोड़ने की आवश्यकता है।

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