अमरिंदर सिंह ने CAB बिल का विरोध करके सिखों को धोखा दिया है

अमरिंदर सिंह

PC: सत्याग्रह

नागरिक संशोधन विधेयक अब कानून बन चुका है। दोनों सदनों में पूर्ण बहुमत के साथ पारित होने और राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद यह देश में लागू हो चुका है। परंतु विरोधी पार्टियों की बेचैनी अभी शांत नहीं हुई है और लगातार विरोध हो रहा है। अब इसी विरोध में कई राज्य के मुख्यमंत्री भी आ चुके है। इस कड़ी में एक नया नाम जुड़ा है और वह पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का। उन्होंने कहा है कि पंजाब में इसे लागू नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार कानून को देश के धर्मनिरपेक्ष ताने बाने से अलग नहीं होने देगी, जिसकी ताकत उसकी विविधता में निहित है। उन्होंने कहा कि संसद को ऐसा कोई कानून पारित करने का अधिकार नहीं है, जो संविधान के मूल सिद्धांतों और भारत के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार इस कानून को अपने राज्य में लागू नहीं होने देगी।

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने स्पष्ट तौर पर इस बयान से 2 बड़ी गलती की है। पहला यह कि वे यह समझने में नाकाम रहे है कि नागरिकता संविधान की केंद्रीय सूची में आता है। दूसरा ये की उनका यह विरोध एक तरह से देखे तो सिख-विरोधी भी है क्योंकि पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थी अधिकतर सिख समुदाय से ही है।

  1. नागरिकता केंद्र के अधीन है।

बता दें कि संविधान के अनुसार नागरिकता एक केंद्रीय विषय है और इस पर कानून बनाने से लेकर लागू करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। संघ सूची (Union List) भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में वर्णित कुछ विषयों की सूची है जिसमें दिये गये विषयों पर केवल केन्द्र सरकार कानून बना सकती है। इस सूची में नागरिकता 17वें स्थान पर आता है। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 11 से नागरिकता अधिनियम में संशोधन के लिए संसद के पास विशेष अधिकार है। इसलिए अमरिंदर सिंह से लेकर ममता बनर्जी जैसे मुख्यमंत्री कुछ भी कह ले, वे इस बिल को लागू करने के लिए बाध्य हैं।

2. सिख विरोधी बयान

हमने यह देखा है पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिन्दू और सिखों पर ही सबसे अधिक अत्याचार होता है जिसके कारण वे अक्सर भारत में शरण लेते हैं। इन शरणार्थियों में अधिक सिख परिवार ही होते है। हाल में सिख समुदाय पर हुए एक अत्याचार ने दिल दहला दिया था। इस दौरान गुरुद्वारा तंबू साहिब में ग्रंथी की बेटी को निशाना बनाया गया था। गुरुद्वारे के मुख्य ग्रंथी की बेटी जगजीत को बन्दुक की नोक पर एक मुस्लिम शख्स ने न केवल उससे इस्लाम कबूल करवाया गया बल्कि जबरन निकाह भी किया था। पाकिस्तान में रहने वाले सिखों की हालत बद से बदतर हो चुकी है। पिछले वर्ष सिख मानवाधिकार कार्यकर्ता चरणजीत सिंह की हत्‍या भी कर दी गयी थी। पाकिस्तान में ऐसी कई घटनाएं लगातार सामने आती ही हैं जब हिन्दू, सिख या ईसाई लड़कियों का जरबदस्ती धर्म परिवर्तन करवाकर उसकी मुस्लिम युवक के साथ शादी कराई जाती है। प्रताड़ित होने के डर से अगर कोई परिवार भारत आता है तो उसे CAB के माध्यम से 5 वर्षों में ही नागरिकता प्रदान कर दी जाएगी जो पहले 11 वर्ष थी।

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालत तो दयनीय है ही लेकिन इन अल्पसंख्यकों में सिखों की हालत और ज्यादा खराब है। पाकिस्तान सरकार के राष्ट्रीय डेटाबेस और पंजीकरण प्राधिकरण (NADRA) के अनुसार, 2012 में पाकिस्तान में 6,146 सिख पंजीकृत थे। ज्यादातर खैबर पख्तूनख्वा में बसे हैं और उसके बाद सिंध और पंजाब आते हैं। लेकिन लगातार इन क्षेत्रों से सिखों की हत्या की खबरे आती रहती है। पिछले 4 साल में 60 प्रतिशत से ज्यादा सिखों ने पेशावर छोड़ किसी अन्य देश में शरण ले ली है। पाकिस्तान में सिखों के खिलाफ अत्याचार की सीमा उस हद तक पहुंच गई है कि लोगों को अपने सिर के बाल कटवाकर अपनी पहचान तक छुपानी पड़ रही है। यहां तक कि पेशावर में जिन सिखों की मौत हो रही है, उनको शमशान भी नसीब नहीं हो रहा है।

वहीं अफगानिस्तान की बात करें तो अफगानिस्‍तान से हिंदु और सिख शरणार्थियों का पहला बैच राष्‍ट्रपति नजीबुल्‍ला की हत्‍या के बाद भारत आया था। उसके बाद से देश में हत्‍या, शोषण, अपहरण और धर्म परिवर्तन के मामलों में इजाफा ही हुआ है। 2014 मई में मोदी सरकार आने के बाद से मध्य प्रदेश में करीब 19,000 शरणार्थियों को दीर्घावधि वीजा दिया गया। राजस्थान में करीब 11,000 और गुजरात में 4,000 दीर्घावधि वीजा दिए गए। जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और जयपुर में करीब 400 पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी बस्तियां है। बांग्लादेश के हिंदू शरणार्थी अधिकतर पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में रहते हैं। ज्यादातर सिख शरणार्थी पंजाब, दिल्ली और चंडीगढ़ में रहते हैं।

गृहमंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार सालों में इन दोनों देशों से आए तीन हजार से अधिक शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी गई है। इनमें अकेले 2019 में इन दोनों से आए 917 हिंदुओं और सिखों को नागरिकता दी गई है।

बता दें कि इस कानून से भारत में रह रहे लोगों को भी जो 31 दिसंबर 2014 से पहले से शरण ले चुके हैं, उन्हें तुरंत नागरिकता प्रदान की जाएगी, जिससे वे आम नागरिक की तरह सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकें। अगर कोई इस बिल का विरोध करता है तो वह स्पष्ट रूप से इन शरणार्थियों का विरोध कर रहा है, जिन पर पाकिस्तान अत्याचार कर रहा है। अमरिंदर सिंह का यह बयान और इस कानून का विरोध उनके लघुदर्शिता हो दिखाता है जहां वे अपनी कांग्रेस पार्टी की लाइन से ऊपर नहीं उठ पा रहे है।

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