भारत में CAA कानून के विरोध में प्रदर्शनों को देखते हुए अब मलेशिया के 94 वर्ष के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने भी भारत सरकार के खिलाफ एक बयान जारी किया है। शुक्रवार को कुआलालंपुर समिट में शामिल होने आए महातिर मोहम्मद ने नागरिकता संशोधन क़ानून की ज़रूरत पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब भारत में सब लोग 70 साल से साथ रहते आये हैं, तो इस क़ानून की आवश्यकता ही क्या थी। उन्होंने कहा, “लोग इस क़ानून के कारण अपनी जान गवां रहे हैं। 70 साल से सब साथ रहते आये हैं और उन्हें साथ रहने में कोई समस्या भी नहीं रही है”। इसके अलावा उन्होंने इस कानून पर अपने अल्प-ज्ञान का परिचय भी दिया और कहा कि यह कानून भारतीय मुसलमानों से उनकी नागरिकता छीन लेगा। उन्होंने कहा “मैं ये देखकर दुखी हूं कि जो भारत अपने को सेक्युलर देश होने का दावा करता है, वो कुछ मुसलमानों की नागरिकता छीनने के लिए क़दम उठा रहा है। अगर हम यहां ऐसे करें, तो मुझे पता नहीं है कि क्या होगा। हर तरफ़ अफ़रा-तफ़री और अस्थिरता होगी और हर कोई प्रभावित होगा”।
हालांकि, अपने इस बयान की वजह से वे दोबारा मुश्किलों में घिरते नज़र आ रहे हैं। एक तरफ जहां भारत सरकार ने मलेशिया के पीएम को चेतावनी जारी करते हुए भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से परहेज करने को कहा है, तो वहीं मलेशिया में महातिर मोहम्मद के गठबंधन के साथियों ने ही उनपर हमला बोलना शुरू कर दिया है। यानि उनके इस बयान की वजह से उनके गठबंधन में ही फूट पड़ती दिख रही है।
सबसे पहले भारत सरकार ने महातिर मोहम्मद के इस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कहा ‘मलेशियाई प्रधानमंत्री की टिप्पणी तथ्यात्मक रूप से गलत है तथा हम उनसे अपील करते हैं कि वह भारत के आंतरिक घटनाक्रम पर विशेषकर तथ्यों को सही रूप से समझे बिना टिप्पणी करने से परहेज करें’।
MEA: According to media reports, Malaysia's PM has yet again remarked on matter that is entirely internal to India. Citizenship Amendment Act provides for citizenship through naturalization to be fast-tracked for non-citizens who are persecuted minorities from three countries. pic.twitter.com/bY29GJ0wX5
— ANI (@ANI) December 20, 2019
इसके अलावा अभी जिस पकतान हरप्पन गठबंधन के बल पर वे सरकार चला रहे हैं, उसी गठबंधन के नेता और पिनांग राज्य के उप-मुख्यमंत्री पी रामासामी ने CAA की आलोचना करने के कारण अपने ही पीएम पर हमला बोला है। उन्होंने एक बड़ा लेख लिखते हुआ कहा है कि लगता है कि महातिर ने इस कानून को ढंग से पढ़ा ही नहीं है। इसी के साथ उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि किस तरह यह कानून धार्मिक आधार पर प्रताड़ित लोगों को नागरिकता प्रदान करने का काम करता है, और भारतीय मुसलमानों के हितों को इससे कोई नुकसान नहीं है। उन्होंने लिखा ‘कोई भी कानून पत्थर पर लकीर के समान नहीं होता है। भारत का लोकतन्त्र इस बात की पुष्टि करेगा कि कोई भी कानून गरीबों या निर्बलों के खिलाफ ना बनाया जाये। महातिर को व्यस्तता के कारण शायद इस कानून को ढंग से पढ़ने का समय नहीं मिला होगा। इसीलिए उन्होंने इस कानून पर ऐसी प्रतिक्रिया दी है’।
यह दूसरी बार है जब भारत और मलेशिया के बीच दोबारा कूटनीतिक तनाव देखने को मिल रहा है। इससे पहले जब भारत ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया था, तब भी यूएन में खड़े होकर महातिर ने भारत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। यूएन जनरल असेंबली में महातिर मुहम्मद ने कहा था, “जम्मू एवं कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बावजूद, देश पर हमला किया गया है और कब्जा कर लिया गया है, ऐसा करने के कारण हो सकते हैं, लेकिन यह फिर भी गलत है।” उन्होंने आगे कहा था कि “भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करे और इस समस्या का समाधान करे”। इस बयान के बाद भारत ने न केवल मलेशिया को कड़ा जवाब दिया बल्कि मलेशिया से आयात होने वाली वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने का विचार भी किया था। उस के बाद मलेशिया की पाम ऑइल इंडस्ट्री को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। हालांकि, बाद में भारत ने मलेशिया के प्रति नर्म रुख अपनाया था और वहां से पाम ऑयल इम्पोर्ट को दोबारा बहाल कर दिया गया था। लेकिन अब जब मलेशिया ने दोबारा गलती को दोहराया है तो, भारत भी अब की बार और ज़्यादा बड़ा प्रहार कर सकता है।
महातिर बेशक लगातार भारत विरोधी रुख अपनाए हुए हों, लेकिन उनकी लोकप्रियता लगातार कम होती जा रही है। मलेशिया में महातिर सरकार की लोकप्रियता में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। इसी वर्ष अप्रैल में प्रकाशित straittimes की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ एक साल के अंदर ही महातिर सरकार की लोकप्रियता में बड़ी कमी आई है, और महातिर की अप्रूवल रेटिंग 71 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 46 प्रतिशत रह गयी है। वहीं रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि सिर्फ 39 प्रतिशत लोग ही उनकी सरकार को सकारात्मक फीडबैक देंगे।
स्पष्ट है कि महातिर अभी सूसाइडल मोड पर चल रहे हैं, जो अपने देश के लोगों को आर्थिक आपातकाल के मुहाने पर खड़ा करने पर तुले हुए हैं। मलेशिया के लोगों को जल्द से जल्द उनसे छुटकारा पाने की ज़रूरत है। अगर अभी महातिर ने भारत-विरोधी रुख अपनाना नहीं छोड़ा, तो यह मलेशिया की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद बुरा साबित हो सकता है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल खाद्य तेल की खपत में पाम ऑयल का करीब दो तिहाई हिस्सा है। भारत प्रतिवर्ष 90 लाख टन पाम ऑयल का आयात करता है और जिन देशों से भारत आयात करता है उसमें मलेशिया और इंडोनेशिया प्रमुख हैं। बता दें कि पिछले महीने भारत ने मलेशिया से आयात होने वाले पाम ऑयल पर इम्पोर्ट ड्यूटी को 5 प्रतिशत बढ़ा दिया था। अब अगर भारत और मलेशिया में तनाव बढ़ता है, तो इसका मलेशिया की पाम ऑयल इंडस्ट्री पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। इसीलिए उन्हें मुस्लिम उलेमा का नेतृत्व करने के सपनों को छोड़कर मलेशिया के विकास पर ध्यान देने के आवश्यकता है और गैर-ज़रूरी तथ्यहीन बयान देने से परहेज करना ही अभी उनके लिए बेहतर होगा।