समर्थन से लेकर हाथ खिंचने तक: सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल पर विपक्षी पार्टियों का पाखंड हुआ उजागर

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सिटिजेनशीप अमेडमेंड बिल पर विपक्ष का विरोध किसी से छुपा नहीं है। ये विधेयक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने की बात करता है, और रोचक बात तो यह है की यही मांग मोदी सरकार के आने से पहले सत्ता में आसीन कांग्रेस समेत कई पार्टियां कर रही थी। ऐसे में इनका विरोध चिंताजनक होने से ज़्यादा हास्यास्पद प्रतीत होता है।

सपा, सीपीआई [मार्क्सवादी], द्रमुक और टीएमसी कांग्रेस के नेतृत्व में इस बिल का विरोध कर रहे हैं। विरोध करते करते तो कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी अमित शाह और नरेंद्र मोदी को ही घुसपैठिया घोषित कर बैठे। शायद कांग्रेस अपना खुद का इतिहास भूल बैठी है, तभी वे इस तरह की बातें कर रही है।

इस हिपोक्रेसी को ध्वस्त करने के लिए हमें ज़्यादा पीछे जाने की आवश्यकता भी नहीं है। 2012 में सीपीआई [एम] के तत्कालीन महासचिव प्रकाश करात ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखते हुए नागरिकता संशोधन विधेयक के तत्काल प्रभाव में लागू किए जाने की मांग की। स्वयं सीपीआई [एम] ने संशोधन में बांग्लादेश के स्थापित होने से पहले और उसके बाद आए लाखों शरणार्थियों के लिए नागरिकता की मांग की थी।

जब एनडीए नागरिकता संशोधन विधेयक को पहली बार 2003 में लायी थी, तो मनमोहन सिंह के राज्य सभा में दिये गए भाषण की याद दिलाते हुए करात ने कहा, “हमारे देश के विभाजन के बाद शरणार्थियों के संबंध में अगर कहें तो बांग्लादेश जैसे देशों में अल्पसंख्यकों ने काफी उत्पीड़न का सामना किया है, और यह हमारा नैतिक कर्तव्य है कि इन्हें उचित सम्मान सहित नागरिकता प्रदान की जाये”। प्रकाश करात ने तत्कालीन उप प्रधानमंत्री एलके आडवाणी के समर्थन का भी उल्लेख किया।

आज जब कांग्रेस के अल्पसंख्यक तुष्टीकरण पर हम एक नज़र डालते हैं, तो इससे इनकी हिपोक्रेसी भी उभर के सामने आती हैं। 2012 में असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने पीएम मनमोहन सिंह को एक मेमोरैंडम पेश करते हुए बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को नागरिकता दिलाने की मांग की। इसका अर्थ साफ है कि कांग्रेस को नागरिकता संशोधन विधेयक से उतनी समस्या नहीं है, जितनी उन्हें इस बात से है कि इसे भाजपा पारित करने में सफल होती दिख रही है।

मजे की बात तो देखिये कि विपक्ष की हिपोक्रेसी से सब परिचित हैं, पर अधिकतर लोग, विशेषकर ‘विपक्षी पार्टियों’ के चाटुकार बुद्धिजीवी एवं पत्रकार इस बात को स्वीकारने से अभी भी मना कर रहे हैं। विरोध में पत्रकार निधि राज़दान संविधान के अनुच्छेद 14 की दुहाई दे रही हैं, ये जानते हुए भी कि इसी अनुच्छेद के मूल स्वरूप का उपहास उड़ाते हुए हमारे देश के विभाजन की नींव रखी गयी थी। निधि की रोंदूपना में तावलीन सिंह, बरखा दत्त और यहां तक कि अपने-आप को निष्पक्ष दिखाने का भरसक प्रयास करने वाले राहुल कंवल भी साथ देते पकड़े गए। ऐसे में अखबार भला कहां पीछे रहते। उन्होंने भी बढ़-चढ़कर सीएबी के विरुद्ध प्रोपगैंडा फैलाया। यदि विपक्ष को अप्रासंगिक नहीं होना है, तो उन्हें तुष्टीकरण की ये नौटंकी छोड़कर अपना आधार मजबूत करना होगा।

इस रोंदूपना को अलग रखे, तो यह निस्संदेह स्वागत योग्य है कि भाजपा एक अहम मुद्दे को संसद में पारित कराने के लिए अत्यंत तत्पर हैं। पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के सख्त रुख की प्रशंसा अवश्य होनी चाहिए, क्योंकि उन्होने एक बार फिर सिद्ध किया है, कि जो वे कहते हैं, वो वे करके दिखाते हैं।

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