25 सालों तक रोमिला-हबीब ने कोर्ट को गुमराह किया, फिर कोशिश की लेकिन इस बार SC ने जड़ा तमाचा

अयोध्या, सुप्रीम कोर्ट, इरफान हबीर, रोमिला थापर, राम मंदिर, सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने नौ नवंबर को अयोध्या मामले में आए फैसले पर पुनर्विचार के लिए दाखिल याचिकाओं को गुरूवार को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। बता दें कि अयोध्या फैसले पर पुनर्विचार के लिए कुल 18 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इनमें से नौ याचिकाएं उन पक्षों ने दाखिल की थीं जो इससे जुड़े मामले में मूल पक्षकार रहे हैं और अन्य नौ याचिकाएं तीसरे पक्ष ने दाखिल की थीं। सुप्रीम कोर्ट ने मूल चर्चा में शामिल नहीं रहे तीसरे पक्षकारों की नौ याचिकाओं को सुनने से इनकार कर दिया है। इस पक्ष में 40 जानेमाने लोग भी शामिल थे जिन्होंने संयुक्त रूप से फैसले की समीक्षा की मांग के लिए पुनर्विचार याचिका दायर की थी।

हालांकि, यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि याचिका दायर करने वाले तीसरे पक्ष के 40 लोगों में इतिहासकार इरफान हबीब, अर्थशास्त्री व राजनीतिक विचारक प्रभात पटनायक, कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर व जॉन डोयाल आदि शामिल थे। ये वहीं लोग हैं जो शुरू से ही विवादित जमीन को मुस्लिमों को सौंपने की वकालत करते आए हैं। ये लोग कई दशकों से दुनिया को इस मुद्दे पर गुमराह करते आए हैं कि वहाँ कोई राम मंदिर नहीं था। हालांकि, इसी वर्ष नवंबर में आए अयोध्या के फैसले ने इन सब लोगों के एजेंडे पर पानी फेर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही ये सब लोग भागकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और इन्होंने इस फैसले पर पुनर्विचार करने की याचिका दायर की थी। इसके माध्यम से ये सभी यह साबित करना चाहते थे कि कोर्ट ने अपने फैसले में कोई बड़ी गलती कर दी है। इरफान हबीब ने तो सुप्रीम कोर्ट के इस कथन पर सवाल खड़े कर दिये थे कि वर्ष 1856-57 से पहले अयोध्या में नमाज़ नहीं पढ़ी जाती थी, जबकि हिन्दू वहां काफी पहले से ही पूजा-प्रार्थना करते आए हैं। इसी तरह इतिहासकर रोमिला थापर ने Archaeological Survey of India (ASI) की खुदाई में मिले सबूतों को मानने से इंकार कर दिया था, और इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को भी स्वीकार नहीं किया था।

इरफान हबीब और नंदिनी सुंदर ने राम मंदिर पर अपने सालों पुराने एजेंडे के तहत ही पुनर्विचार याचिका दायर की थी। हालांकि, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी 40 बुद्धिजीवियों की याचिका को कूड़ेदान में फेंक दिया है, उससे यह स्पष्ट होता है कि इनकी दलीलों में तथ्य कम थे और एजेंडा ज़्यादा।

दलीलों में इन बुद्धिजीवियों ने इस बात का उल्लेख किया था कि इस फैसले से भारत की धर्मनिरपेक्षता पर सवालिया-निशान खड़ा होता है, और इससे देश की संस्कृति पर भी गलत प्रभाव पड़ेगा। अपनी दलीलों में इस पक्ष ने यह भी अंकित किया था कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हिन्दू और मुस्लिम पक्ष में फूट डाल सकता है। राम मंदिर मुद्दे पर अपने तथ्य दुरुस्त करने की बजाय सुप्रीम कोर्ट पर ही सवाल खड़ा करके इन एजेंडावादी बुद्धिजीवियों ने अपनी संकुचित मानसिकता का ही उदाहरण पेश किया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकी याचिकाओं को खारिज कर देश के स्वघोषित इतिहासकारों की पोल खोलने का काम किया है।

Exit mobile version