इतिहास: कैसे राजीव गांधी की एक भूल ने नेपाल को चीन का करीबी बना दिया

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इतिहास क्रूर होता है। वह कई ऐसी बातों को सामने ला देता है जिसे किसी शासक ने छिपाने की कोशिश की। भारत में यह आम बात है। हम अक्सर मध्यकालीन शासकों के बारे में और फिर पंडित जवाहरलाल नेहरू के कई किस्से हम सुनते आए हैं। आज हम देखेंगे कि किस तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक मात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल में चीन की दखल को बढ़ावा दिया। यह कोई बाईलेटरल दिक्कत नहीं थी, बल्कि यह एक व्यक्तिगत खुन्नस थी।

आज नेपाल भारत से दूर और चीन से नजदीक हो चुका है और इसकी शुरुआत राजीव गांधी के कार्यकाल में हुई थी। दरअसल, 1986 और 1989 के बीच नेपाल और भारत में उभरी गलतफहमी को एक तरफ रखते हुए काठमांडू ने यह अनुभव किया कि वह अपने हितों के लिए दृढ़ता का परिचय देगा। वर्ष 1988-89 में भारत और नेपाल के बीच सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा था। राजीव गांधी के शासनकाल के बाद से ही भारत-नेपाल के संबंधों में दरार आई, जो आजतक जारी है।

नेपाल के नरेश (राजा) भारत से नाराज थे, क्योंकि भारत ने डेमोक्रेटिक मूवमेंट पार्टी के नेताओं को समर्थन दिया था। इसे सुधारने के लिए साल 1989 में जब राजीव के काठमांडू दौरे पर सोनिया के साथ पहुंचे तो माना जा रहा था कि इस दौरे से भारत-नेपाल के संबंधों में एक नई जान आएगी, दोनों देशों की कड़वाहटें खत्म हो जाएंगी, पर ऐसा नहीं हुआ।

दरअसल, उस वक्त नेपाल दुनिया का एकमात्र हिंदू राजशाही वाला देश था। इस यात्रा पर राजीव गांधी और सोनिया ऐतिहासिक पशुपतिनाथ मंदिर जाने वाले थे। इस बारे में नेपाल के नरेश किंग बीरेंद्र और राजीव के बीच बातचीत भी हो चुकी थी। लेकिन राजीव जब सोनिया के साथ पशुपति नाथ मंदिर पहुंचे तो मंदिर के पुजारियों ने सोनिया गांधी का मंदिर में प्रवेश को लेकर जमकर विरोध किया। पुजारियों का कहना था कि इस मंदिर में गैर हिंदुओं का प्रवेश निषेध है, सोनिया मूल रूप से ईसाई हैं। किंग बीरेंद्र ने भी पुजारियों को समझाया लेकिन मंदिर के पुजारी अपनी जिद पर अड़े रहे। बता दें कि जितने भी ज्योतिर्लिंग हैं वहां पर गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है, इसी वजह से पशुपति नाथ के पुजारी सोनिया का विरोध कर रहे थे।

ऐसा कहा जाता है कि राजा बीरेंद्र की पत्नी रानी ऐश्वर्या पशुपतिनाथ मंदिर के ट्रस्ट के मामलों में ख़ासा दख़ल रखती थीं। कहा जाता है कि राजीव ने इस घटना को अपने अनादर के तौर पर लिया। उन्हें लगा कि राजा बीरेंद्र ने उन्हें अपने तरीके से नीचा दिखाया। राजीव और सोनिया पशुपतिनाथ मंदिर से बिना पूजा किए ही लौट गए। राजीव की इस यात्रा के बाद दोनों देशों के संबंध सुधरने के बजाय और बिगड़ गए। नेपाल में आर्थिक नाकेबंदी कर दी गई और उससे नेपाल पर बहुत बुरा असर पड़ा। मार्च में परिगमन और वाणिज्यक संधि के समाप्त होने से जनता के कष्ट बढ़ गए और जरूरी सामान बाज़ार से गायब हो गए क्योंकि नेपाल अधिकतर वस्तुओं के लिए भारत पर ही आश्रित था।

 

इसके बाद तमाम राजनीतिक दलों ने 28 दिसंबर को एक आंदोलन चलाने के लिए समिति गठित की। इसके बाद नेपाल के नरेश वीरेंद्र ने देश-विदेश में भारत की आलोचना की, वहीं विदेश मंत्री शैलेंद्र उपाध्याय ने तो यह तक कह डाला कि दोनों देशों के बीच संबंध अब पहले जैसे कभी नहीं होंगे।

अपमान का बदला लेने के लिए राजीव गांधी ने रॉ को नेपाल में विरोधी नेताओं को एकजुट करने के लिए उपयोग करने लगे। रॉ ने माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड को लुभाने के लिए सारी ताक़तें लगा दीं ताकि वह राजशाही के ख़िलाफ़ लड़ाई में बाकी राजनीतिक दलों का साथ दें। रॉ के पूर्व स्पेशल डायरेक्टर अमर भूषण ने अपनी किताब इनसाइड नेपाल में यह लिखा है कि किस तरह राजीव गांधी के निर्देश पर कोवर्ट ऑपरेशन्स लॉन्च किये गए और यह भी बताया गया है कि किस प्रकार तत्कालीन नेपाल के विपक्षी दलों के संग मिलकर गुप्त तरीके से नेपाल के पूरे राजशाही सिस्टम को ध्वस्त किया गया।

उस समय अमर भूषण जो चीफ ऑफ ईस्टर्न ब्यूरो ऑफ रॉ थे, उनको एक नकली नाम जीवनाथन के अंतर्गत उनकी पहचान छिपाकर इस ऑपरेशन को अंजाम देने का दायित्व सौंपा गया था, उन्होंने एक अनुभवहीन यूनिट बनाकर नए जासूसों को भर्ती किया ताकि राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह देव की राजशाही का तख्तापलट कर नेपाल में संवैधानिक लोकतंत्र लाया जा सके। तत्कालीन राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने नेपाल के हिन्दू मोनार्क की सत्ता समाप्त करने के लिए उस समय नेपाल में चल रहे जन आंदोलनों का समर्थन किया था।

भारत द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के कारण नेपाल के राजा मदद के लिए चीन तक पहुंच गए थे। भारत कभी नहीं चाहता था कि पड़ोसी देशों में साम्राज्यवादी चीन का प्रभुत्व मजबूत हो। इसके बाद रॉ जीवनाथन के नेतृत्व में नेपाल से राजशाही को हटा कर लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास में जुट गया। रॉ ने माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड को लुभाने के लिए सारी ताक़तें लगा दीं ताकि वह राजशाही के ख़िलाफ़ लड़ाई में बाकी राजनीतिक दलों का साथ दें।

भारत यह बात भूल गया था कि वह माओवादी नेता है और उसके सत्ता में आते ही नेपाल पूरी तरह से चीन की ओर झुक जाएगा। हालांकि जब चुनाव हुए तो नेपाली कांग्रेस पार्टी ने जीता लेकिन इस जन आंदोलन ने माओवादियों के लिए द्वार खोल दिए। 1995 में माओवादियों ने कई विद्रोह किए और इस दौरान नेपाल में कई मौतें हुई। सरकार भी अस्थिर ही रहा। प्रचंड आगे चलकर 2 बार (अगस्त 2016 – जून 2017, अगस्त 2008 – मई 2009) नेपाल के प्रधानमंत्री भी बने। आज भी नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी के KP Sharma Oli ही हैं, जिनका झुकाव चीन की तरफ ज्यादा रहता है। आज अगर नेपाल चीन के साथ है तो उसका सारा श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ही जाता है।

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