इमरान मलेशिया और UN जाना चाहते थे और एंटी इंडिया प्रचार करना चाहते थे, तभी रियाद से फोन आया

इमरान खान, पाकिस्तान,

पाकिस्तान की कूटनीति और विदेश नीति किस तरह विदेशी राजधानियों से तय की जाती है, इसी का नमूना हमें पिछले दिनों देखने को मिला। इमरान खान मलेशिया में होने वाली कुआलालुंपुर समिट में हिस्सा लेने जा रहे थे, लेकिन इससे ठीक पहले उन्होंने अचानक सऊदी अरब का दौरा किया। सऊदी अरब में जैसे ही उन्होंने क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाक़ात की, वैसे ही उन्होंने मलेशिया में जाने का अपना प्लान रद्द कर दिया। माना जा रहा है कि मलेशिया, तुर्की, पाकिस्तान और ईरान मिलकर ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कॉर्पोरेशन यानि OIC के परस्पर एक अन्य मंच को स्थापित करने की योजना बना रहे थे, जिससे OIC का नेतृत्व कर रहा सऊदी अरब बिलकुल भी खुश नहीं था। इसी कारण उसने इमरान खान को इस समिट में जाने से रोका और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान के मुताबिक मोहम्म्द बिन सलमान ने पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी थी। पाकिस्तान इस समिट में कश्मीर मुद्दे को उठाने की तैयारी कर रहा था, लेकिन इस समिट में जाने की योजना के रद्द होते ही पाकिस्तान का यह प्लान भी मिट्टी में मिल गया। 

सऊदी अरब ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को मलेशिया की समिट में हिस्सा ना लेने देकर न सिर्फ अपने हितों की रक्षा की, बल्कि पाकिस्तान के कश्मीर एजेंडे को भी बड़ी चोट पहुंचाई। इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान का मलेशिया में कश्मीर और CAA मुद्दा उठाने का प्लान तो रद्द हुआ ही हुआ, साथ ही पाकिस्तान ने UN सेक्युर्टी काउंसिल में कश्मीर मुद्दे पर बंद कमरे में बैठक बुलाने के आह्वान को लेकर दिये गए अपने बयान को भी वापस ले लिया। इसका अंजाम यह हुआ कि बाद में चीन ने भी अपने इस प्रस्ताव को वापस ले लिया। स्पष्ट है कि सऊदी अरब ने ही पाकिस्तान पर कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण ना करने का दबाव बनाया। ऐसा करके सऊदी अरब ने भारत के साथ अपनी दोस्ती के महत्व को दोबारा सबके सामने प्रदर्शित किया है। 

मोदी सरकार के आने से पहले तक भारत के सऊदी अरब के साथ रिश्ते सिर्फ बायर-सेलर तक ही सीमित थे। हालांकि, जिस तरह पीएम मोदी ने सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ अपने निजी संबंधों को मजबूत किया है, वह दर्शाता है कि भविष्य में दोनों देशों के संबंधों में और मधुरता देखने को मिल सकती है। रोचक बात तो यह है कि खुद सऊदी अरब भी भारत को अपना रणनीतिक साझेदार बनाना चाहता है। हालांकि, दोनों देशों के मजबूत होते रिश्तों से अब पाकिस्तान और उसके प्रधानमंत्री को पापड़ बेलने पड़ रहे हैं, जिसका एक उदाहरण हमें पिछले दिनों देखने को मिला। 

बता दें कि Strategic Partnership Council Agreement के तहत भारत और सऊदी अरब के बीच हर दो वर्षों में उच्च-स्तरीय बातचीत होगी जिसमें भारत के प्रधानमंत्री शामिल होंगे। अब जरा खुद सोचिए, जिस सऊदी अरब के सहारे हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान का हुक्का-पानी चलता हो, वह भारत का रणनीतिक और सुरक्षा साझेदार बनने जा रहा है। इसके अलावा भारत सऊदी अरब का बहुत बड़ा आर्थिक साझेदार तो है ही। पिछले वर्ष पाकिस्तान को सऊदी अरब ने 3 बिलियन डॉलर का कर्ज़ दिया था और वो भी ऐसे वक्त पर जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था घुटनों पर आ गयी थी। पाकिस्तान के पास सिर्फ दो हफ्तों की आवश्यकता पूर्ति के लिए ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा था। अब पाकिस्तान के इतने महत्वपूर्ण दोस्त पर भारत अपना प्रभाव बढ़ाता ही जा रहा है। इतना तो तय है कि भारत और सऊदी अरब के रिश्ते आने वाले समय में और मजबूत होंगे। हालांकि, भारत और सऊदी अरब के रिश्तों में पाकिस्तान की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। पाकिस्तान वही देश है, जो अक्सर हर अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत-विरोधी एजेंडा चलाता रहता है। अब उम्मीद है कि सऊदी अरब के दिए इस पाठ से उसकी अक्ल जरूर ठिकाने पर आएगी। 

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