कोई संयोग नहीं, 2014 में जब से मोदी PM बने हैं, भारत ग्लोबल मीडिया का ‘Punching bag’ बना हुआ है

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16 मई 2014। यह वो दिन था जब भाजपा ने प्रचंड बहुमत प्राप्त करते हुए 10 वर्ष बाद पुनः सत्ता पर काबिज हुई थी। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अब भारत भर में लोकप्रिय हो चुके थे, और उन्होंने 26 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। परंतु उनके प्रधानमंत्री बनते ही मानो कई वर्षों से सुप्त वैश्विक मीडिया का ध्यान अचानक भारत पर केन्द्रित हुआ। जब से नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तभी से वैश्विक मीडिया का ध्यान भारत पर ज़्यादा केन्द्रित रहा है।

अब तो स्थिति यह हो गयी है कि भारत में कोई भी अहम निर्णय लिया जाता है, वो वैश्विक मीडिया जहर उगलने से पीछे नहीं हटती। चाहे वो सर्जिकल स्ट्राइक्स हो, या फिर नोटबंदी हो, या फिर अनुच्छेद 370 के विशेष अधिकार वाले प्रावधान हटाने हो, या फिर राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ही क्यों न हो, वैश्विक मीडिया हर मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देने से पीछे नहीं हटती।

सच कहें तो अक्सर पश्चिमी मीडिया को भारत का उपहास उड़ाने का जिम्मा सौंपा गया है। अब ऐसे में यदि हमारे देश में एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री की सशक्त सरकार हो, तो ये इन्हें प्रिय तो बिल्कुल नहीं लगेगा। इसीलिए पश्चिमी मीडिया 2014 से ही भारत की ओर विशेष रूप से अपना ज़्यादा केन्द्रित की हुई है। कभी-कभी तो भारत पश्चिमी मीडिया के लिए एक पंचिंग बैग भी बन जाता है। परंतु अब अंतर यह है कि अब हम भी उन्हें पलट कर जवाब देने लगे हैं, और वो भी एक जोशीले अंदाज़ में।

2014 में पश्चिमी मीडिया को यही पचाने में असहजता हो रही थी कि उनकी ‘प्रिय’ कांग्रेस अब सत्ता में नहीं है। आखिर नरेंद्र मोदी ने कैसे कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया? शुरुआत में उनके एडिटोरियल नरेंद्र मोदी के राज में भारत के काले भविष्य के बारे में बात की गयी,  पर 2015 आते-आते उन्होंने अपने गियर बदलकर मोदी सरकार को सार्वजनिक रूप से निशाने पर लेना शुरू किया। दिल्ली में चर्चों में की गयी तोड़फोड़ को जिस तरह से वैश्विक मीडिया ने बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया, वो निस्संदेह काफी शर्मनाक कवरेज थी।

अब उनकी कुंठा स्वाभाविक थी, क्योंकि सत्ता में आने के बाद से नरेंद्र मोदी की सरकार ने एनजीओ की आड़ में चलने वाले धर्मांतरण गिरोह पर कड़ा रुख अपनाए हुए हैं। एनजीओ को मिलने वाले फंड्स पर केंद्र सरकार कड़ी नज़र रखे हुए हैं। कई एनजीओ पर एफ़सीआरए का उल्लंघन करने के लिए कार्रवाई भी की जा चुकी है। अब इंटोलेरेंस पर विदेशी मीडिया की कवरेज के बारे में जितनी बात की जाए कम है।

2016 में ग्लोबल मीडिया की भारत के प्रति अप्रोच काफी संकुचित थी। आतंकी बुरहान वानी के एंकाउंटर और भारतीय आर्मी के उरी बेस कैम्प पर हमले के प्रत्युत्तर में हुए सर्जिकल स्ट्राइक्स के उपलक्ष्य में  उन्होंने मोदी सरकार को एक दमनकारी तानाशाह के तौर पर दिखाने का भरसक प्रयास किया, जो आए दिन कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन करता रहता है।

परंतु 2019 में ग्लोबल मीडिया की वास्तविक चेहरा उभर कर सामने आई। जब केंद्र सरकार ने एक के बाद एक कई क्रांतिकारी निर्णय लिए। अगस्त में केंद्र सरकार ने वर्षों से देश की अखंडता में बाधक बन रही अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकारों संबंधी प्रावधान को निरस्त किया, और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश : जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख में विभाजित किया।

इस पर मानो वैश्विक मीडिया बदहवास हो गयी, और वे भारत के विरुद्ध फेक न्यूज़ की नदियां बहानी शुरू कर दी। बीबीसी के नेतृत्व में एक बार फिर वैश्विक मीडिया ने मानवाधिकार उल्लंघन का राग अलापना शुरू कर दिया। परंतु इससे पहले कि वैश्विक मीडिया कश्मीर के सदमे से उबर पाती, नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि परिसर के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया। भारत के वामपंथी पत्रकारों को आवाज़ देने के लिए विवादों के घेरे में रहने वाली अमेरिकी पत्रिका द वॉशिंग्टन पोस्ट ने इस विषय पर अपना शीर्षक दिया, भारत की सुप्रीम कोर्ट ने देश के सबसे विवादित धार्मिक स्थल पर हिन्दू मंदिर के लिए रास्ता साफ किया’

राम मंदिर के फैसले पर वैश्विक मीडिया से बिल्कुल भी नहीं रहा गया। वे भारत को एक हिन्दू राष्ट्र के तौर पर दिखाना प्रारम्भ किया, जहां अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं है। उदाहरण के लिए द वॉशिंग्टन पोस्ट ने बताया कि कैसे दशकों पुराने विवाद में यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक बड़ी जीत है। अखबार ने लिखा, भारत की शीर्ष अदालत ने देश के सबसे विवादित धार्मिक स्थल को ट्रस्ट को देने का आदेश दिया और जिस जगह कभी मस्जिद हुआ करती थी, उस जगह हिंदू मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया।” 

कुछ पोर्टल्स ने तो फेक न्यूज़ फैलाने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी। वामपंथी पोर्टल वॉलस्ट्रीट जर्नल, का इस विषय पर लिखे लेख का शीर्षक था, भारत के शीर्ष न्यायालय ने एक धार्मिक स्थल पर विवाद में हिन्दुओं के पक्ष में निर्णय दिया इतना ही नहीं, उन्होंने इस निर्णय में भी 2002 का मुद्दा उछालने का प्रयास किया। लेख में कहा गया हैसुप्रीम कोर्ट का फैसला भारत की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को आकार देने का काम करेगा। दशकों तक अलगअलग राजनीतिक पार्टियों ने मामले से जुड़ी भावनाओं को राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग करने की कोशिश की। लेकिन भाजपा ने इसका इस्तेमाल सबसे प्रभावी तरीके से किया।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब हाल ही में मोदी सरकार ने मुस्लिम बहुल कश्मीर से उसकी स्वायत्तता छीन ली और भारत में लंबे समय से रह रहे कुछ मुस्लिम अप्रवासियों को नागरिकता देने से इन्कार किया है। विवादित स्थल का नियंत्रण हासिल करना हिंदू राष्ट्रवादियों का दशकों पुराना एजेंडा रहा है। मोदी खुद युवावस्था में राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे। 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद वे इस मुद्दे में गहराई से उतर गए।’’

सर्वप्रथम, नरेंद्र मोदी 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, और दूसरी बात, एनआरसी का नाम लिए बिना उस पर जो तंज़ कसा गया है, वो साफ बताती है कि वॉल स्ट्रीट जर्नल कितनी निष्पक्ष है। एनआरसी का प्रमुख उद्देश्य देश में घुसपैठियों को चिन्हित करना है, न कि किसी समुदाय के साथ भेदभाव करना। शायद वॉल स्ट्रीट को अपनी जानकारी हमारे देश के लेफ्ट लिबरल ब्रिगेड से ज़्यादा मिलती है।

दोनों ही मामलों में उन्होंने तथ्यों को अनदेखा कर अपना एजेंडा चलाना सर्वोपरि समझा। अब चूंकि सीएबी केवल एक राष्ट्रीय मुद्दा नहीं रहा, इसीलिए इस विषय पर भी ग्लोबल मीडिया अपने पुरानी आदतों से बाज़ नहीं आ रही है। परंतु अब प्रश्न ये उठता है कि ग्लोबल मीडिया भारत में लिए जा रहे किसी भी निर्णय से इतना आहत क्यूँ हो रही है? अंतर्राष्ट्रीय मीडिया आउटलेट को भला भारत की जनता के निर्णयों का उपहास उड़ाने का अधिकार किसने दिया है?

सच तो यह है कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में कई लोग आज भी भारत को एक थर्ड वर्ल्ड कंट्री के तौर पर देखते हैं, और ऐसे में यदि ये देश फले-फूले, तो उन्हें भला कैसे अच्छा लगेगा? परंतु अच्छी बात यह है कि अब भारतीय इनके प्रोपगैंडा पर चुप नहीं बैठते, और उन्हें मुंहतोड़ जवाब भी देते हैं। हमें अपना देश चलाने के लिए पश्चिम के नस्लभेदी और घृणात्मक पत्रकारों के ज्ञान की आवश्यकता नहीं है।

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