भारत को समुंदर में घेरने की तैयारी में था चीन, भारत ने ही चीन को घेर लिया

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वर्ष 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब पाकिस्तान की यात्रा पर गए थे, तो उन्होंने चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरीडोर की शुरुआत करने का ऐलान किया था। यह कॉरीडोर पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता और चीन से शुरू होकर यह कॉरीडोर अरब सागर में पाकिस्तानी पोर्ट ग्वादर पर खत्म होता। चीन ने आज से 4 साल पहले यह योजना बनाई थी कि इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद चीन को वेस्ट एशिया और अफ्रीका से ट्रेड करने में बहुत सहूलियत मिल जाएगी और उसका ट्रेड रूट अभी के मुक़ाबले बहुत छोटा हो जाएगा। अभी चीन को हिन्द महासागर के जरिये अफ्रीका और वेस्ट एशिया के देशों में सामान को एक्सपोर्ट या इम्पोर्ट करना पड़ता है, और अगर आज CPEC शुरू हो जाता है, तो इसका सबसे बड़ा फायदा चीन को ही पहुंचेगा।

इसके अलावा चीन को हमेशा से यह डर भी सताता रहा है कि किसी युद्ध की सूरत में भारतीय नौसेना हिन्द महासागर में पूरी तरह चीन के व्यापार पर ताला लगा सकती है। इसके अलावा चीन अपनी ऊर्जा पूर्ति के लिए तेल को भी इसी रास्ते से इम्पोर्ट करता है। यानि भारतीय नौसेना के पास यह ताकत है कि वह अपने एक कदम से चीन के व्यापार समेत उसकी अर्थव्यवस्था को हिलाने का दमखम रखती है। चीन ने अपने इसी डर के कारण पाकिस्तान के साथ मिलाकर CPEC पर काम शुरू किया था। भारत में उस वक्त पीएम मोदी की सरकार बन चुकी थी। भारत ने भी चीन के इस कदम को तुरंत भांप लिया और आज से 4 वर्ष पहले भारत ने भी अरब सागर में चीन की इस रणनीति का जवाब देने के लिए अपनी सुरक्षा और सैन्य रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया।

वैश्विक व्यापार के लिए अरब सागर सबसे महत्वपूर्ण है। इसी रास्ते से होकर साउथ एशिया और साउथ ईस्ट एशिया के अधिकतर देश अपनी ऊर्जा की पूर्ति के लिए क्रूड ऑयल को इम्पोर्ट करते हैं और इसके साथ ही वेस्ट एशिया के देशों से व्यापार करने का भी यही एक मात्र समुद्री मार्ग है। चीन ने अपने ग्वादर प्लान से इसी समुंद्री मार्ग को हाईजैक करने का प्लान बनाया था। इसके अलावा उस वक्त मालदीव में भी अब्दुल्लाह यामिन की चीन की समर्थन वाली सरकार थी। मालदीव की रणनीतिक रूप से बेहतर लोकेशन होने के कारण यह चीन के लिए सोने पर सुहागा होने जैसी बात थी।

इन सब के अलावा चीन अफ्रीका में भी अपने प्रभाव को लगातार बढ़ाता चला जा रहा था, और जिबूती में वह अपने सैन्य ठिकाने को तैयार करने में जुटा था। चीन की पूरी योजना थी कि अगर एक बार CPEC शुरू हो गया, तो अरब सागर पर चीन का एकाधिकार हो जाएगा और वह बड़ी ही आसानी से हिन्द महासागर में भारतीय नौसेना की शक्ति का मुक़ाबला कर पाएगा क्योंकि फिर चीन को व्यापार के लिए हिन्द महासागर से होकर गुजरना ही नहीं पड़ेगा। हालांकि, भारत भी तब हाथ-पर हाथ धरे बैठा नहीं रहा, बल्कि उसने चीन की इस रणनीति को मात देने के लिए अपनी नई रणनीति पर काम करना शुरू किया।

सबसे पहले भारत ने वर्ष 2015 के अगले ही वर्ष यानि वर्ष 2016 में अमेरिका से LEMOA यानि Logistics Exchange Memoranda of Agreement पर हस्ताक्षर किया। इस समझौते के तहत भारत और अमेरिका को एक दूसरे के सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल करने की छूट मिल गयी थी। जब भारत ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, तो ओपिनियन मेकर्स ने इसे एशिया में बैलेन्स ऑफ पावर में बड़ा शिफ्ट बताया था। यह अमेरिका और भारत के लिए win-win सिचुएशन थी। अमेरिका के अरब देशों के साथ-साथ हिन्द महासगर में भी कई सैन्य ठिकाने हैं। अमेरिका के ओमान, यूएई, बहरीन, कुवैत, इराक़ और जिबूती में सैन्य ठिकाने हैं और ये सब अरब सागर में प्रभाव के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण हैं।

इसके बाद वर्ष 2018 में भारत के लिए अरब सागर रणनीति को लेकर कई शुभ-समाचार आए। सबसे पहला शुभ समाचार आया ओमान से। ओमान सरकार ने भारत के साथ रणनीतिक सम्बन्धों को देखते हुए अपने दुकम पोर्ट को भारत को सौंप दिया। यह भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक जीत थी। तब भारतीय सुरक्षा बलों को ओमान के महत्वपूर्ण दुकम एयरपोर्ट के सैन्य और लॉजिस्ट‍िकल सपोर्ट के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत मिल गई थी।

दुकम बंदरगाह ओमान के दक्ष‍िण-पूर्वी समुद्र तट पर स्थ‍ित है और यह ईरान के चाबहार बंदरगाह के करीब ही है, जिसे वर्ष 2018 में भी ईरान द्वारा भारतीय कंपनी को सौंप दिया गया था। भारत कई वर्षों से ईरान के इस चाबहार पोर्ट में निवेश कर रहा था, और अब इसे भारत की ही कंपनी कंट्रोल करती है। यानि वर्ष 2018 में अरब सागर से लगते दो अहम बंदरगाहों को भारत ने अपने नियंत्रण में ले लिया था। इसके अलावा यही वह वर्ष था जब मालदीव में चीनी समर्थक अब्दुल्ला यामिन का पत्ता साफ हो गया और भारत समर्थक मोहम्मद सोलिह को चुनावों में जीत मिली। यानि चीन का एक ‘अहम रणनीतिक साझेदार’ देश देखते ही देखते भारत के समर्थक के रूप में बदल गया जिसे फिर भारत की कूटनीति की जीत कहा गया और चीन को यहां भी मात मिली।

वर्ष 2015 से लेकर अब तक चीन अरब सागर में कोई खास रणनीतिक बढ़त तो नहीं बना पाया है लेकिन वर्ष 2017 में जिबूती में वह अपना सैन्य अड्डा जरूर स्थापित कर चुका है। हालांकि, जिबूती में पहले ही अमेरिका का सैन्य अड्डा मौजूद है, जिसके इस्तेमाल की भारतीय सुरक्षाबलों को छूट है। यानि चीन के लिए यहां से भी कोई अच्छी खबर नहीं है।

हालांकि, भारत यहीं नहीं रुका। भारत ने अरब सागर में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए सभी द्वीप देशों के साथ रणनीतिक सम्बन्धों को बढ़ाने पर ज़ोर देना जारी रखा। इसी वर्ष अक्टूबर में भारतीय उप-राष्ट्रपति ने वनीला द्वीप समूह देशों का दौरा किया था, जिसे रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना गया था। वेनिला द्वीप में भारतीय हिन्द महासागर के कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरीशस, मैयट, रीयूनियन, और सेशेल्स शामिल हैं और यह सभी मोजाम्बिक चैनल के आसपास भौगोलिक रूप से स्थित है।

इस प्रकार इन सभी द्वीपों का अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार के संबंध में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थान है। इसके अलावा सेशेल्स में मार्च 2016 से तटीय रडार चालू है और इस द्वीप देश ने भारत को पिछले साल द्वीप पर मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने की भी अनुमति दी है, जो दर्शाता है कि भारत रणनीतिक रूप से स्थित द्वीप देश के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में सक्षम है।

मॉरीशस के डिएगो गार्सिया (Diego Gracia ) में स्थित अमेरिकी बेस के उपयोग पर छूट मिलने से इस रणनीतिक लाभ को और बढ़ावा मिला है। वहीं भारत और फ्रांस के बीच एक लॉजिस्टिक एक्सचेंज समझौते को अंतिम रूप देने से पूर्व में रीयूनियन द्वीप तक पहुंच प्राप्त हो जाएगी, जो कि वेनिला द्वीप में एक फ्रांस अधिकृत द्वीप है। यानि भारत अरब सागर के दक्षिणी छोर पर भी चीन पर कई-सौ गुना भारी पड़ता है।

कुल मिलाकर आज से चार साल पहले चीन ने जो रणनीति बनाई थी, वह उसे अंजाम तक पहुंचाने में पूरी तरह विफल साबित हुआ है। चीन के पास अरब सागर में जिबूती में एक सैन्य ठिकाना है और इसके अलावा उसने पाकिस्तान के ग्वादर पर भी अपना काम जारी किया हुआ है। चीन अपनी आर्थिक मुसीबतों में घिरा पड़ा है, इसलिए पूरे BRI प्रोजेक्ट समेत CPEC पर भी काम बेहद धीमी गति से पूरा किया जा रहा है और इस प्रोजेक्ट के सफल होने के आसार भी बेहद कम ही दिखाई दे रहे हैं। वहीं मालदीव भी चीन की पकड़ से पूरी तरह छिटक चुका है। वहीं भारत को अपनी रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने में अब तक अपार सफलता ही मिली है। यह भारत की कमाल की कूटनीति और पीएम मोदी के लॉन्ग-टर्म विज़न का ही नतीजा है कि आज चीन को अपने उठाए कदमों पर पछतावा करना पड़ रहा है और भारत ने अरब सागर में अपना दबदबा कायम कर लिया है।

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