देश की लेफ्ट लिबरल गैंग में सहिष्णुता की कितनी कमी है, इसी का एक और उदाहरण हमें हाल ही में देखने को मिला जब केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को भारतीय इतिहास कांग्रेस (आईएचसी) के 80वें अधिवेशन में शनिवार को भाषण के दौरान अप्रत्याशित रूप से विरोध का सामना करना पड़ा। दरअसल, उनके भाषण के दौरान एजेंडावादी इतिहासकर इरफान हबीब स्टेज पर पहुँच गए और उन्होंने राज्यपाल के एडीसी और सुरक्षा अधिकारियों के साथ धक्का-मुक्की भी की।
इरफान हबीब की इस करतूत से एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि ये एजेंडावादी इतिहासकार उनको बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकते जो इनके विपरीत विचार रखता हो। बता दें कि इरफान हबीब AMU के एजेंडावादी इतिहासकार मोहम्मद हबीब के बेटे और एक रईस वकील एवं कांग्रेस नेता मोहम्मद नसीम के परपौते हैं। हबीब अपने आप को मार्क्सवादी इतिहासकार के रूप में देखता है और एक बार वामपंथी अर्थशास्त्री और आईएचसी की मौजूदा अध्यक्ष अमिया कुमार बागची ने उनके बारे में कहा था “वे भारत के दो प्रमुख मार्क्सवादी इतिहासकारों में से एक हैं”।
बता दें कि यह घटना आईएचसी के 80वें सेशन के दौरान हुई जो कन्नूर यूनिवर्सिटी में आयोजित किया जा रहा था। गवर्नर होने के नाते आरिफ़ मोहम्मद खान इस यूनिवर्सिटी के चांसलर हैं। इसके उलट हबीब IHC के उपाध्यक्ष हैं, जो कि 1935 में स्थापित इतिहाकारों की एक बॉडी है। हालांकि, अगर आप IHC के अन्य सदस्यों के बारे में जानेंगे , तो जो कुछ शनिवार को केरल में हुआ, उसे आप हैरान करने वाला बिल्कुल नहीं कहेंगे।
वर्ष 1935 में स्थापित हुए आईएचसी के सभी पदाधिकारी मार्क्सवादी हैं। इस संस्था के 2530 लाइफ मेंबर्स हैं जबकि 33 हज़ार वार्षिक सदस्य हैं। इन संगठन के पास देश के इतिहास से जुड़े मुद्दों पर मानो एकाधिकार हासिल है, और NCERT, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बढ़ावा दिये जाने वाली लगभग सभी इतिहास की किताबें इन्हीं वामपंथी इतिहासकारों द्वारा लिखी गयी हैं।
IHC के सदस्य हैं रोमिला थापर, डीएन झा, बिपिन चन्द्र, सतीश चन्द्र, आरएस शर्मा, मृदुला मुखर्जी, नुरुल हसन, सुमित सरकार, अथर अली और कई ऐसी ही मानसिकता वाले लोग। राम मंदिर मामले पर इन सभी महान इतिहासकारों ने दशकों तक देश को गुमराह करने का काम किया था। इन सभी लोगों का मानना है कि इतिहास के साथ छेडछाड़ करना इनका जन्मसिद्ध अधिकार है, और ये जो मर्जी चाहे इतिहास के साथ कर सकते हैं। इसके अलावा ये सभी लोग अपने आप को मार्क्सवादी इतिहासकर कहकर बुलाते हैं।
IHC के सदस्यों का अन्य इतिहास संबन्धित संस्था जैसे Indian Council of Historical Research यानि ICHR में भी काफी प्रभाव था। ICHR HRD मंत्रालय के तहत आने वाली एक संस्था है। इरफान हबीब वर्ष 1986 से लेकर 1993 तक इस संस्था के अध्यक्ष थे और तब इन्होंने ICHR में IHC के सदस्यों की बड़े पैमाने पर भर्ती की थी। हालांकि, वर्ष 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई, तो उसने इन संस्थाओं में अलग विचारधाराओं के लोगों को शामिल करने का भी निर्णय लिया।
बता दें कि आज़ादी के बाद से नेहरू के नेतृत्व में ऐसी संस्थाओं में वामपंथी और मार्क्सवादी लोगों की बड़े पैमाने पर भर्ती की गयी थी। इसकी वजह से इन सभी संस्थाओं को इरफान हबीब और रोमिला थापर जैसे एजेंडावादी लोगों द्वारा हाईजैक कर लिया गया। इसकी वजह से कभी राइट विंग इतिहासकारों को सांस लेने का मौका ही नहीं मिल पाया। अब 21वीं शताब्दी में संजीव सान्याल, प्रसेनजीत बसु, कमलेश कपूर जैसे विदेशों में पढे इतिहासकारों ने नाम कमाया है। हालांकि, उम्मीद के अनुसार इन सभी इतिहासकारों को रोमिला थापर एंड कंपनी द्वारा नौसिखिया करार दिया गया है। इरफान हबीब जैसे लोग दावा करते हैं कि सिर्फ उनका बताया इतिहास ही एकमात्र सच्चा इतिहास है, और किसी के पास उनसे सवाल करना का अधिकार नहीं है। हालांकि, आज इन सभी एजेंडावादियों के सामने बड़ी चुनौतियाँ पेश आ रही हैं जिनका उदाहरण हमें शनिवार को देखने को मिला।