हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई के संभावित दुरुपयोग पर प्रकाश डाला, और उसपर पुनर्विचार करने की बात भी की। मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता में गठित पीठ ने एक मामले पर सुनवाई करने के दौरान ये बात कही।
मुख्य न्यायाधीश बोबडे आरटीआई से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रहे थे, इस दौरान याचिकाकर्ता ने एक ऐसी दलील दी, जिसे वे सिद्ध ना कर पाए। इस पर चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि आजकल कई लोगों के बीच अपने आप को आरटीआई एक्टिविस्ट बोलने का ट्रेंड शुरू हो चुका है। उन्होंने व्यंग्यात्मक शैली में यह भी पूछा, “आरटीआई फाइल करना अब एक फुल टाइम जॉब है क्या?”
बता दें कि आरटीआई को सरकारी प्रक्रिया की पारदर्शी हेतु 2005 में पारित किया गया था, परन्तु आज इसका उपयोग कुछ ऊटपटांग सवालों के जवाब ढूंढने हेतु भी होता है। उदाहरण के लिए गुजरात में एक व्यक्ति ने सरकारी विभागों में तैनात सभी महिला कर्मचारियों के बारे में पूछा क्योंकि वे अपने लिए एक योग्य कन्या देख रहा था।
इसी तरह एक व्यक्ति ने 2012 में आरटीआई के अन्तर्गत यह पूछा कि पीएम के सामने कोई कैसे वस्त्र पहन सकता है, तो 2008 में एक लड़की ने पूछा कि रक्षाबंधन पर जॉर्ज बुश को भेजे गए लड्डू अभी तक पहुंचे क्यों नहीं।
यही नहीं, एक और केस में एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने यह आरटीआई फाइल की कि दूसरे आरटीआई एक्टिविस्ट ने अपने आरटीआई में क्या फाइल किया था। इसके लिए भी सरकारी अफसरों को जवाब देने हेतु बाध्य होना पड़ा था।
ऐसे में मुख्य न्यायाधीश बोबडे और जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने अपने निर्णय के दौरान बताया कि कई नौकरशाह अब इसलिए निर्णय नहीं ले रहे, क्योंकि आरटीआई के दुरुपयोग के तहत उनमें डर सा बैठ गया है। उन्होंने पूछा, “सभी को क्यों जानकारी चाहिए? यदि किसी को अपनी खुन्नस निकालने ये लिए आरटीआई के तहत जानकारी चाहिए, तो क्या हम उस भी से दें?
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि वे आरटीआई के विरुद्ध नहीं है, परन्तु वे कुछ आवश्यक नियंत्रण अवश्य चाहेंगे। कोर्ट के अनुसार, “यहां आरटीआई के लिए हमें वास्तव में दिशा निर्देश की ज़रूरत है। ये एक असीमित अधिकार तो नहीं हो सकता ना।”
अधिवक्ता प्रशांत भूषण, जो आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज का सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में प्रतिनिधित्व कर रहे थे, अपनी सफाई में कहने लगे कि ईमानदार अफसरों को डरने कि कोई आवश्यकता नहीं। परन्तु सत्य तो यही है कि प्रशांत भूषण जैसे लोग सरकार पर आरटीआई के असंख्य आवेदनों के ज़रिए अनावश्यक दबाव डालते फिरते हैं। कई आरटीआई कार्यकर्ताओं को आरटीआई के नाम पर उगाही करते हुए भी पकड़ा गया है। कुछ लोगों के लिए तो आरटीआई बिना मेहनत किए लाखों रुपए कमाने का एक सस्ता साधन बन चुका है। बस प्रोफ़ाइल में आरटीआई कार्यकर्ता लिखो, सरकारी अफसर को धमकाओ और कंप्रोर्माइज के नाम पर लाखों कमाओ।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कोई गलत बात नहीं कही है, कब उन्होंने बताया कि क्यों आरटीआई के दुरुपयोग रोकने हेतु सख्त प्रावधान होना आवश्यक है। सूचना का अधिकार आवश्यक है परन्तु उसका दुरूपयोग किसी भी स्थिति में उचित नहीं।