भारत के साथी मालदीव ने चीन को औकात दिखाई, तो ड्रैगन को लगी भयंकर मिर्ची

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मालदीव और भारत के बीच घनिष्ठ होते सम्बन्धों से चीन कितना चिढ़ा हुआ, इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 14 दिसंबर को मालदीव में मौजूद चीन के राजदूत को ट्विटर के जरिये अपनी भड़ास निकालनी पड़ रही है। दरअसल, 13 दिसंबर को नई दिल्ली में आकर मालदीव की संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद ने यह बयान दिया था कि उन्हें भारत के लोकतन्त्र पर पूरा भरोसा है और दक्षिण एशिया को चीन से सतर्क होने की आवश्यकता है।

इस पर मालदीव में चीन के राजदूत के पद पर तैनात ‘झांग लीझोंग’ ने ट्विटर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अब कहा है कि एक मालदीव के नेता को ऐसी बात कहने से बचना चाहिए और चीन मालदीव की ज़मीन को हड़पने की मंशा बिलकुल नहीं रखता है। मालदीव जैसे छोटे से देश का चीन को इस तरह ललकारने से चीन अब बौखला गया है। हालांकि, वह मालदीव के खिलाफ चाहकर भी कोई बड़ा एक्शन नहीं ले सकता है क्योंकि अब मालदीव में भारत-समर्थक मोहम्मद सोलिह की सरकार है जिसे मोदी सरकार का समर्थन हासिल है।

13 दिसंबर को दिल्ली में मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने कहा था कि दक्षिण एशिया को चीन के कर्ज़ जाल से बचने की आवश्यकता है। उनका यह बयान ऐसे समय में आया था जब नेपाल और श्रीलंका जैसे देश चीन के चंगुल में फंसते चले जा रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि मालदीव चीन के साथ किसी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को आगे बढ़ाने पर विचार नहीं कर रहा है। मोहम्मद नशीद ने अपने बयान में जहां एक तरफ भारत के साथ अपने रिश्तों को महत्व देने पर ज़ोर दिया, तो वहीं सभी देशों को चीन से सावधान होने के लिए भी कहा था। बस यही बात चीन को बुरी लग गयी और चीन के राजदूत ने ट्विटर के माध्यम से अपनी खीज को मोहहमद नशीद पर निकाला।

चीन के राजदूत ने ट्वीट किया “मालदीव के नेता का आधारहीन बयान। क्या चीन दूसरे देशों की ज़मीन हड़पता है? बकवास! मालदीव में चीन का निवेश बाकी देशों से बिलकुल भी अलग नहीं है”।

इसके बाद चीनी राजदूत ने एक और ट्वीट किया “क्या आप चीन के कर्ज़ को पुनर्निर्मित करोगे? कृपया संधियों का तो सम्मान करें, और एक स्वतंत्र गणराज्य की विश्वसनीयता को बरकरार रखें”।

इसके बाद उन्होंने मालदीव और चीन के बीच FTA को लेकर एक ट्वीट किया- “मालदीव चाइना FTA को लेकर मुझे मालदीव सरकार पर भरोसा है। इस संधि पर दोनों देशों की सरकारों ने कई सालों तक विमर्श कर हस्ताक्षर किए हैं”। बता दें कि मोहम्मद नशीद ने नई दिल्ली में एक दिन पहले कहा था कि मालदीव-चीन FTA पर उनकी सरकार कोई विचार नहीं कर रही है।

तो देखा आपने, मालदीव द्वारा भारत के पक्ष में बोले जाने से चीन किस तरह चिढ़ा हुआ है। असल में चीन को यह पच नहीं रहा है कि पिछले साल तक उसके चंगुल में फंसे रहने वाला मालदीव आखिर उसके सामने खड़ा होकर उसके मुंह पर उसे जवाब दे रहा है। इशारों ही इशारों में चीन ने मालदीव को भारत की कठपुतली की तरह बर्ताव नहीं करने की सलाह ज़रूर दी है, लेकिन उसे वह नहीं दिखाई देता जो वह मध्य एशिया, नेपाल और श्रीलंका में कर रहा है।

चीन को यह समझ लेना चाहिए कि भारत एक लोकतान्त्रिक देश हैं, इसलिए मालदीव जैसे छोटे देशों के लिए भारत पर भरोसा करना ज़्यादा सहूलियत भरा होता है, जबकि इतिहास प्रमाण है कि चीन के साथ दोस्ती का सबको खामियाजा ही उठाना पड़ा है।

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