‘भाड़ में जाओ चीन-हम भारत के दोस्त’ नई दिल्ली से मालदीव के स्पीकर ने चीन को दिये झटका

मालदीव

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बंद पिंजरे में किसी पक्षी की तरह कभी चीन की पकड़ में रहे मालदीव ने अब खुलकर सांस लेना सीख लिया है, और वह भी भारत की मदद से। कल मालदीव की संसद मजलिस के स्पीकर और देश के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने नई दिल्ली में मीडिया से बातचीत में इसी बात को प्रदर्शित किया। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया को चीन के कर्ज़ जाल से बचने की आवश्यकता है। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब नेपाल और श्रीलंका जैसे देश चीन के चंगुल में फंसते चले जा रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मालदीव चीन के साथ किसी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को आगे बढ़ाने पर विचार नहीं कर रहा है। मोहम्मद नशीद ने अपने बयान में जहां एक तरफ भारत के साथ अपने रिश्तों को महत्व देने पर ज़ोर दिया, तो वहीं सभी देशों को चीन से सावधान होने के लिए भी कहा।

पत्रकारों से बातचीत में कल यानि शुक्रवार को मोहम्मद नशीद ने कहा कि उन्हें भारत के लोकतन्त्र पर पूरा विश्वास है। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते उनके बयानों को कम नहीं आंका जा सकता। उन्होंने अपने अनुभव से बताया है कि चीन के सस्ते दिखने वाले लोन किस तरह आगे चलकर सामने वाले देश की संप्रभुता पर खतरे के रूप में मंडराने लगते हैं। इसके बाद उन्होंने मालदीव की ‘भारत पहले’ की नीति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्हें आतंकवाद से लड़ने के लिए भी भारत का सहारा चाहिए। उन्हें इस बात का डर है कि कहीं मालदीव में इस्लामिक स्टेट अपने पैर न पसार ले। उनके अनुसार मालदीव पर चीन और इस्लामिक स्टेट नाम की दो मुसीबतें मंडरा रही हैं, और इन दोनों को वे भारत के साथ मिलकर ही हल कर सकते हैं।

मोहम्मद नशीद इससे पहले भी चीन की नीतियों की सरेआम आलोचना कर चुके हैं। इसी वर्ष सितंबर में मोहम्मद नशीद ने हिंद महासागर सम्मेलन को संबोधित करते हुए चीन पर आरोप लगाया था कि उसने अब तक ईस्ट इंडिया कंपनी से भी अधिक जमीन हड़प ली है। नशीद ने कहा था, चीऩ ने एक भी गोली चलाए बिना ईस्ट इंडिया कंपनी की तुलना में ज्यादा जमीन हथिया लिया है। नशीद ने चीन पर इशारों ही इशारों में हमला बोलते हुए कहा ‘सरकार पर शिकंजा कसा, कानूनों में तबदीली की, ज्यादा कीमतों के कॉन्ट्रैक्ट लिए और इसकी कीमत के कारण कारोबारियों की योजना असफल हो गयी, व्यावसायिक कर्ज दिया और फिर इसे वापस करने में असमर्थ रहे। अब तक रकम को लौटा नहीं सके तो संप्रभुता को दांव पर लगा दिया। मैं विशेषकर चीन की तरफ इशारा कर रहा हूँ।’

बता दें की मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की सरकार के समय मालदीव पूरी तरह चीन की गिरफ्त में फंस चुका था। अब्दुल्ला यामीन वर्ष 2013 से वर्ष 2018 तक मालदीव के राष्ट्रपति रहे थे, और इस दौरान उन्होंने जमकर चीन के पक्ष में नीतियां बनाई थी। यही कारण था कि वर्ष 2018 में वे जब मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह से चुनावों में हारे थे, तो तब तक मालदीव पूरी तरह चीन की गिरफ्त में फंस चुका था और मालदीव पर चीन का भारी कर्ज़ हो गया था। उसी दौरान अब्दुल्ला यामीन सरकार ने चीन के साथ FTA पर भी विचार करना शुरू कर दिया था, लेकिन अब नई सरकार ने इस पूरी योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।

भारत एक लोकतान्त्रिक देश हैं, इसलिए मालदीव जैसे छोटे देशों के लिए भारत पर भरोसा करना ज़्यादा सहूलियत भरा होता है। भारत की लोकतान्त्रिक महानता का उल्लेख करते हुए नशीद ने यह भी बताया कि नागरिकता संसोधन कानून पर भी उन्हें भारतीय लोकतन्त्र पर पूरा भरोसा है और उन्हें इस बात का पूरा यकीन है कि यह कानून किसी भी तरह किसी के साथ भेदभाव नहीं करता है। यह भारत के लोकतंत्र की शक्ति ही है जो इन देशों में भारत के प्रति विश्वास की भावना को बढ़ाता है। इसके अलावा जिस तरह मोदी सरकार ने अपनी शानदार कूटनीति से चीन के चंगुल में फंसे मालदीव को अपने पाले में किया है, वह भी प्रशंसनीय है।

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