‘श्योर नहीं हूं पर कह सकती हूं” शेरवानी ने पुलिस पर लगाया जामिया की छात्राओं के साथ छेड़खानी का आरोप

आरफा खानुम शेरवानी

यदि बेशर्मी से झूठ बोलने को ओलंपिक में एक खेल के रूप में शामिल किया जाये, तो द वायर की आरफा खानुम शेरवानी निर्विरोध इसमें स्वर्ण पदक विजेता घोषित की जायेंगी। भारत के विरुद्ध प्रोपगेंडा फैलाने में कभी पीछे न रहने वाली आरफ़ा अब यह आरोप लगाती हुई पकड़ी गयी है कि दिल्ली पुलिस ने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में लड़कियों के साथ छेड़खानी की है।

ट्विटर पर हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें आरफ़ा खानुम शेरवानी द्वारा प्रदर्शनकारियों दिल्ली पुलिस के विरुद्ध भड़काते हुए दिखाया गया है। वीडियो को शेयर करने वाले पत्रकार आदित्य राज कौल ने कहा, “ये पत्रकारिता तो बिलकुल नहीं है। यह राजनीतिक हितों को साधने हेतु भ्रामक खबरों को बढ़ावा देने वाला प्रोपगैंडा है, जो सिर्फ धर्मांधता से भरा हुआ है। इसे धर्मांधता नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?

इस वीडियो में आरफा खानुम शेरवानी यह दावा कर रही हैं कि जब पुलिस कार्रवाई के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया में धमक पड़ी, तो महिला विद्यार्थियों ने अपने आप को विश्वविद्यालय के शौचालयों में बंद कर लिया था। परंतु पुलिस वाले वहां भी धमक पड़े और उन छात्राओं के साथ बदसलूकी भी की। यही नहीं, आरफ़ा ने ये भी दावा किया कि पुलिस ने  लाइट बंद कर छात्राओं के साथ छेड़खानी की। यहां सबसे ज़्यादा शर्मनाक बात तो यह है कि उन्होंने इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। उन्होने दावा किया है कि उन्होने ऐसा शिक्षकों और विद्यार्थियों से सुना है, और उन्होने अपने दावे को स्पष्ट करने के लिए किसी गवाह को सामने भी नहीं लाया।

पत्रकारिता के नाम पर आरफा खानुम शेरवानी ने जो किया है, वो पत्रकारिता तो किसी भी स्थिति में नहीं कही जा सकती। ये सरासर भ्रामक खबरों के आधार पर सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देना हुआ। आरफ़ा ने खुद वीडियो में कहा है कि जामिया में हुई हिंसा के 24 घंटे बाद रिपोर्टिंग की है। इससे स्पष्ट होता है कि आरफ़ा ने कितनी गैर जिम्मेदार रिपोर्टिंग करी है, जो वैमनस्य से परिपूर्ण है।

यह सर्वविदित है कि विश्वविद्यालय में पहले ही उग्रवाद चरम पर था। रविवार को इसकी पुष्टि करते हुए कई डीटीसी बसों और अन्य वाहनों को आग लगा दी गयी। इससे यह तो साफ हो गया कि भीड़ में उग्रवादी भी मौजूद थे, और उनका इरादा एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन का तो बिलकुल नहीं था। शेरवानी के बयान ऐसे में इन उग्रवादियों को और भड़काते हैं।

जहां एक ओर उग्रवादी दिल्ली में उत्पात मचाए हुए हैं, तो वहीं आरफा खानुम शेरवानी द्वारा फैलाई जा रही अफवाहें आग में घी नहीं पेट्रोल डालने का काम कर रही है। ये घटिया पत्रकारिता की पराकाष्ठा है और इसे पत्रकारिता कहना पत्रकारिता शब्द का अपमान है। आरफा खानुम शेरवानी खुलेआम देश में अपने बयानों से हिंसा भड़का है, जिससे यह भी स्पष्ट होता है कि कैसे एक पूरा ईकोसिस्टम अपने अस्तित्व को बचाने हेतु अफवाहों के जरिये देश भर में हिंसा को बढ़ावा देने से भी नहीं हिचक रहा है।

 

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