विपक्ष ने झारखंड की लड़ाई को tribal vs non-tribal बना दिया, और इसमें वे सफल भी रहे

झारखंड

(PC: Newz Viewz)

झारखंड में चुनाव के परिणाम स्पष्ट हो गये हैं और भाजपा की हार स्पष्ट होती जा रही है। जब यह आर्टिकल लिखा जा रहा था तब तक कांग्रेस और JMM की गठबंधन को 47 सीटें मिल रही थी तो वहीं भाजपा को 24 सीटें मिलती दिख रही थीं। सभी संभावनाओं देखें तो हेमंत सोरेन इस गठबंधन के सीएम चेहरे के रूप में पांच साल के लिए राज्य के मुख्यमंत्री होंगे।

कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस चुनाव को पूरी तरह से आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी में बदल दिया था। आदिवासी वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए हेमंत सोरेन जैसे झामुमो नेता ने चुनाव जीतने के लिए स्पष्ट रूप से इस मुद्दे सहारा लिया था। चुनाव के दौरान विभिन्न रैलियों में झामुमो नेता हेमंत सोरेन ने भाजपा पर हमले करते समय कहा था कि केंद्र की भाजपा सरकार और राज्य की रघुबर दास सरकार ने आदिवासी आबादी को धोखा दिया है।

इस विधानसभा चुनाव में, झामुमो ने 43 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि कांग्रेस और राजद 31 पर लड़े। ध्यान देने वाली यह बात है कि सभी दलों ने मतदाताओं को खुश करने के लिए कोटा की राजनीति का सहारा लिया। झामुमो ने अनुसूचित जनजाति को 28 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत और अनुसूचित जाति को 12 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया है।

भाजपा 1990 के दशक के अंत में केंद्र में सत्ता में आई थी। इसी सरकार ने 2000 में झारखंड के क्षेत्र को बिहार से अलग करने का फैसला किया और भारत के संघ में एक नए राज्य का जन्म हुआ। हालाँकि, तब से, राज्य को एक आदिवासी राज्य के रूप में घोषित कर दिया गया, जैसे हरियाणा को जाट राज्य और महाराष्ट्र को मराठा राज्य माना जाता है। अधिकतर लोगों को यही लगता है कि झारखंड एक जनजातीय राज्य है। लेकिन, भौगोलिक रूप से देखें तो राज्य में आदिवासी कुल आबादी का केवल 26.3 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन लगभग एक तिहाई (81 में से 29) सीटें आदिवासी लोगों के लिए आरक्षित हैं।

झारखंड में शुरू से ही आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी मुद्दे की राजनीति होती आई है जिसने पिछले एक दशक में राज्य को विकास के रास्ते पर आने ही नहीं दिया। 2000 में इस राज्य के जन्म के बाद से 6 मुख्यमंत्रियों द्वारा शासित किया गया है जिनमें से आदिवासी हैं। 2014 में पहली बार, बीजेपी 81 में से 43 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत के साथ राज्य में सत्ता में आई। इसके बाद राज्य को अपना पहला गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री- रघुबर दास के रूप में मिला। उस वर्ष भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित 28 विधानसभा सीटों में से 13 पर जीत हासिल की थी। परंतु इस बार उन आरक्षित सीटों पर JMM 20 से अधिक पर जीत हासिल करती नजर आ रही है।

रघुबर दास ने आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों ही आबादी को मिला कर अच्छे से शासन किया। रघुबर दास की विकासोन्मुखी नीतियों ने राज्य के गरीब लोगों को लाभान्वित किया है। लेकिन, इस बार के विधानसभा चुनाव में आदिवासी के लिए जातीय अपील विकास की राजनीति पर भारी रही। भाजपा को जनजातीय आबादी से भारी नुकसान उठाना पड़ा। दक्षिणी झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में झामुमो-कांग्रेस-राजद की मिल कर 70 प्रतिशत से ऊपर की strike rate है।

भाजपा ने राज्य की स्थापना के बाद से ही झारखंड के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है। 2009, 2014 और 2019 के आम चुनावों में पार्टी ने क्रमशः 8, 12, 12 सीटें जीतीं। भाजपा ने विधानसभा चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन किया और 2005, 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावों में क्रमश: 30, 20, 43 सीटें जीतीं।

हालांकि, वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में, भाजपा अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनने जा रही है, लेकिन यह तय है कि सरकार कांग्रेस और JMM कि गठबंधन की ही बनेगी। इस वर्ष में देखा जाए तो , महाराष्ट्र के बाद झारखंड दूसरा राज्य है जहां भाजपा ने अपनी सत्ता पांच वर्षों तक सरकार चलाने के बाद खोया है।

Exit mobile version