पाकिस्तान में केवल एक पोस्ट के लिए प्रोफेसर बना ईशनिंदा का दोषी, मिली सजा-ए मौत

जब भारत ने नागरिकता संशोधन कानून पारित कर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक रूप से प्रताड़ित नागरिकों को नागरिकता दी तो मानवाधिकार के लिए उच्चायुक्त का कार्यालय (OHCHR) जो UNHRC के साथ मिलकर काम करता है, भारत को धर्मनिरपेक्षता के ऊपर ज्ञान देने में सबसे आगे था। OHCHR ने इस संशोधन कानून को “मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण” कहा था वहीं, इससे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान में भी खलबली मच गयी थी। पाकिस्तान के “इस्लामिक रिपब्लिक” के प्रधानमंत्री इमरान खान ने यहां तक कहा कि भारत ने अपने धर्मनिरपेक्ष लोकाचार को खत्म कर “हिंदू राष्ट्र” बनने की राह पर है।

यह विडंबना ही है कि इमरान खान भारत को धर्मनिरपेक्षता पर ज्ञान दे रहे है, वहीं उनके पाकिस्तान में एक 33 वर्षीय अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर जुनैद हफीज को ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा सुनाई गयी है।

जुनैद की मौत की सजा पिछले साल हुए पाकिस्तान के एक विरोध प्रदर्शन की याद दिलाती है, जिसमें एक ईसाई महिला आसिया बीबी को पाकिस्तान में मौत की सजा सुनाई गयी थी जिसके बाद इसके लिए आसिया बीबी ने आठ साल की सजा काटी थी। अंत में, उसे पाकिस्तान छोड़ कर कनाडा भागना पड़ा। आसिया बीबी ईश निंदा के मामले से पाकिस्तान में लागू ईश निंदा कानून प्रकाश में आया  जिससे अल्पसंख्यकों को इस इस्लामिक देश में व्यवस्थित रूप से प्रताड़ित किया जाता।

2018 के अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान में लगभग 40 लोगों को जिन्हें ईश निंदा करने के दोष में मौत की सजा सुनाई गयी है। यह ईश निंदा कानून के दुरुपयोग को ही दर्शाता है कि कैसे उस देश में धर्म चुनने की कोई सहिष्णुता नहीं है।

भारत द्वारा CAA लागू करने के बाद, संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के मानवाधिकार के प्रवक्ता, जेरेमी लॉरेंस ने एक बयान जारी किया था, जिसमें लिखा था, “हम चिंतित हैं कि भारत का नया नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 मूलभूत रूप से भेदभावपूर्ण है।”

संयुक्त राष्ट्र की इस बॉडी ने यह भी आरोप लगाया कि यह संशोधन कानून “equality before law” के लिए भारत की संवैधानिक प्रतिबद्धता को भी कमज़ोर करता है। यहा पर संयुक्त राष्ट्र की यह बॉडी स्पष्ट रूप से “equality before law” या CAA दोनों ही कान्सैप्ट की सराहना करने में विफल रहा है। यह विडम्बना ही है कि मानवाधिकार संस्था CAA के बारे में अधिक चिंतित है न कि पाकिस्तान में लागू draconian blashphemy law के बारे में।

यह ध्यान देने वाली बात है कि दुनिया के केवल 5 देशों में अभी भी ब्लासफेमी या धर्मत्याग के लिए मौत की सजा देने वाले कानून हैं। ये देश हैं सऊदी अरब, अफगानिस्तान, मॉरिटानिया, पाकिस्तान और नाइजीरिया।

इसलिए, भारत को धार्मिक स्वतंत्रता और धर्म निरपेक्षता के बारे में उपदेश देने की बजाय, पाकिस्तान अपने देश पर ध्यान देना चाहिए। धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर पाकिस्तान और  अन्य देशों की तुलना में भारत अब बेहतर स्थिति और एक मजबूत नैतिक उच्च आधार रखता है।

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