कल तक जो पार्टी आरे वन क्षेत्र में मुंबई मेट्रो शेड हेतु वन की कटाई पर आक्रोश जता रहे थे, और सरकार बनाने पर वन काटने वालों पर आक्रोश जता रहे थे, आज वही सरकार में आने पर स्वयं पेड़ों को काटने के फैसले पर कोई शर्म महसूस नहीं कर रहे। आपने ठीक पढ़ा, हम बात कर रहे हैं उद्धव ठाकरे के सरकार की, जिन्होंने हाल ही में औरंगाबाद में बाल ठाकरे के स्मारक के लिए 1000 पेड़ों के काटे जाने की अनुमति दे दी है।
दरअसल, औरंगाबाद के प्रियदर्शनी उद्यान में बालासाहेब ठाकरे का स्मारक बनाने का प्रस्ताव पहले ही मंजूर कर लिया गया। लेकिन दिक्कत यह है कि जहां पर स्मारक बनाया जाएगा वहां पर लगभग 1000 से ज़्यादा पेड़ लगे हुए हैं। पहले उसे काटना पड़ेगा तब जाकर स्मारक बनाया जा सकेगा। इस प्रोजेक्ट के खिलाफ बॉम्बे हाइ कोर्ट में अपील दायर करने वाले सनी खिनवसरा ने बताया, “एएमसी की अपनी परियोजना रिपोर्ट के अनुसार 1000 से ज़्यादा पेड़ों को काटने की आवश्यकता पड़ेगी। परंतु कोर्ट में अपने हलफनामे पर एएमसी मौन है। हमने अपने जवाबी हलफनामे में बताया है कि ये भूमि एएमसी की नहीं है, अपितु सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की है और वहाँ पर पब्लिक गार्डेन था”। इसके अलावा अधिवक्ता ने दावा किया कि जबसे एएमसी ने यह पार्क लिया है, तबसे 1200 पेड़ों को या तो सुखाया जा चुका है या फिर काटा जा चुका है।
गौरतलब है कि पेड़ों की कटाई के विवाद को लेकर ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने आरे कार शेड पर स्थगन आदेश दे दिया है। मुख्यमंत्री ने अपने आदेश में कहा है कि जबतक आरे कारशेड की पूरी समीक्षा नहीं हो जाती तब तक आरे में पेड़ की टहनी भी नहीं काटने देंगे। मेट्रो के लिए मुंबई की आरे कॉलोनी में पेड़ काटे जा रहे थे। इसी के खिलाफ एकजुट हुए ‘पर्यावरण प्रेमी’ और राजनीतिक दल विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उधर बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुकदमे की सुनवाई के बाद चार अक्टूबर को अपना फैसला सुना दिया, जिसमें कोर्ट ने पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने से मना कर दिया था।
अभी हाल ही में जब आरे वन क्षेत्र में पेड़ों की कटाई को लेकर विवाद अपनी चरम सीमा पर था, तब ये उद्धव ठाकरे ही थे, जिन्होंने स्वयं ‘मोर्चा संभालते’ हुए पेड़ काटने वालों के विरुद्ध हुंकार भरी थी। उन्होंने कहा था, “आने वाली सरकार हमारी सरकार होगी और एक बार हमारी सरकार आ गई तो हम आरे (Aarey) के जंगलों के हत्यारों से सही तरीके से निपटेंगे”।
यही नहीं, आरे कॉलोनी के जंगल से पेड़ों की कटाई को लेकर शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) ने भी कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार को अगर आरे कॉलोनी के जंगल की चिंता नहीं है तो उन्हें पर्यावरण बचाने को लेकर भी नहीं बोलना चाहिए।
जबकि एक सत्य यह भी है कि मुंबई मेट्रो-3 की इस परियोजना को जापान से भी कुछ फंडिंग मिली है, जिन्होंने यह निर्णय इस परियोजना के पर्यावरण के अनुकूल होने पर एक वर्ष के गहन अध्ययन के बाद ही लिया था। इसके अलावा मेट्रो के बनने से CO2 का उत्सर्जन भी कम हुआ है और इसकी पुष्टि स्वतंत्र रूप से UNFCC के ऑडिटर्स ने भी की थी। इसके साथ ही मेट्रो के निर्माण के लिए पेड़ों की कटाई के बाद डिफोरेस्टेशन पर भी काम किया गया था। मतलब मेट्रो निर्माण के साथ ही यहाँ पर्यावरण को कोई क्षति न हो इसका पूरा ध्यान रखा गया और यह बात शिवसेना भलीभांति जानती थी। परन्तु औरंगाबाद में जिन पेड़ों को काटा जायेगा उसे पर्यावरण को होने वाले नुकसान से शिवसेना को कोई मतलब नहीं है।
इससे स्पष्ट हो चुका है कि उद्धव ठाकरे की सरकार को न पर्यावरण की चिंता है और न ही महाराष्ट्र के विकास की, उन्हें बस किसी भी स्थिति में सत्ता में बने रहने से मतलब है। सरकार बनाने के कुछ ही दिनों में उद्धव सरकार ने अपनी नीति स्पष्ट कर दी। उन्होंने आव न ताव मुंबई मेट्रो के कार शेड डिपो के काम पर रोक लगा दी, और मुंबई – अहमदाबाद जाने वाली बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट को भी समीक्षा के लिए डाल दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने भीमा कोरेगांव में नामजद नक्सलियों को छोड़ने का आश्वासन भी एनसीपी को दिया। ऐसे में अब ये स्पष्ट हो चुका है कि उद्धव सरकार किसी भी तरह सत्ता में बनी रहना चाहती है, चाहे इसके लिए नैतिकता और अपने मूल आदर्शों की बलि ही क्यों न चढ़ानी पड़े।