बिना रजिस्टर के स्कूल, बिना एम्पलॉइज़ रिकॉर्ड के कंपनी- आप खुद देखिये बिना NRC के दुनिया कैसी भयावह लगेगी

जुम्मन लाल सुबह अपने ऑफिस पहुंचे लेकिन थोड़े लेट हो गए थे क्योंकि शाम में CAA और NRC के खिलाफ रैली में सरकार के खिलाफ अपनी खीझ प्रकट करने गए थे। जब ऑफिस पहुंचे तो 12 बज चुके थे और बायोमैट्रिक्स पर हाफ डे हो चुके थे। ऑफिस के अंदर जाते ही उन्हें उनके बॉस ने बुलाया और सवाल दागे कि लेट क्यों हुए? उन्होंने जवाब दिया कि NRC के प्रोटेस्ट रैली में गया था। बॉस ने जुम्मन लाल की तरफ देखते हुए पूछा NRC क्या होता? जुम्मन लाल ने अपने बैग से एक पर्चा निकालते हुए पढ़ा कि NRC means National Register of Citizen. इसमें देश के नागरिकों की एक रजिस्टर बनेगी जिसमें अपना नाम दर्ज करवाने के लिए आम लोगों को 1972 के कागजात दिखाने पड़ेंगे। इससे गरीब तबके को कितनी परेशानी होगी?

उनके इस जवाब पर बॉस ने तपाक से कहा, “क्या आपको पता है कि ऑफिस में एक रजिस्टर maintain की जाती हैं, सभी एम्प्लाइज की डिटेल्स के साथ। फिर तो आप इसके भी खिलाफ होंगे?”

जुम्मन लाल भौचक्के रह गए और बॉस का मुंह ताकने लगे। ये तो उन्होंने सोचा ही नहीं था। बॉस ने आगे कहा अगर सभी एम्प्लोयी का नाम रजिस्टर में नहीं होगा तो कोई भी कहीं से भी आकर यह कहेगा कि मैं इस कंपनी में काम करता हूँ।

जुम्मन लाल का दिमाग अभी भी चक्कर ही खा रहा था। उनके बॉस ने उदाहरण देते हुए उनके स्कूल के रजिस्टर और फिर कॉलेज के अटेंडेंस शीट की भी याद दिलाई और बताया कि यह भी एक प्रकार का छोटे लेवेल का NRC ही है। जो काम पहले घर पर, फिर स्कूल में उसके बाद कॉलेज और फिर कंपनी में होता है अब वह नेशनल लेवल पर हो रहा है तो यह गलत कैसे है?

इतना सुनने के बाद जुम्मन लाल अपने क्यूबिकल में लौट आए और यही सोचते रहे।

ये तो रही बात जुम्मन लाल की, लेकिन कहीं आप भी तो जुम्मन लाल की तरह अफवाहों में आकर NRC का अंधाधुंध विरोध तो नहीं कर रहे?

किसी भी देश में किसी व्यक्ति का डाटा कलेक्शन और फिर उसे सुरक्षित रखने की कवायद कोई नई प्रक्रिया नहीं है। यह दशकों से चलती आ रही है बस तौर तरीके और पद्धति बदले हैं। पहले अंगूठे से होता था अब रजिस्टर और बायोमैट्रिक्स से। अपने देश या अपने घर के लोगों के बारे में डाटा रखना किसी तानाशाही का प्रतीक नहीं बल्कि अपने देश को अवैध लोगों से सुरक्षित करने का एक तरीका होता है।

यह आइडिया अचानक आसमान से नहीं टपका जिसे बीजेपी की सरकार लागू करने जा रही है। असम में NRC के लागू होने और गड़बड़ियाँ निकलने के बाद सरकार और अधिक सावधान हो चुकी है, और अब इसे देश भर में लागू करने पर विचार कर रही है।

हमारे देश में समस्या NRC के लागू होने से नहीं है, बल्कि इसके न होने से है। जैसे जुम्मन लाल के ऑफिस में कोई रजिस्टर न होने पर कोई भी आकर यह कह सकता है कि वह उस कंपनी में काम करता है, उसी प्रकार हमारे देश में भी कोई कहीं से आकर यह दावा कर सकता है कि वह यहीं का नागरिक है। आप यह सोचिए कि क्या हम अपने दिमाग में अपने घर-परिवार की एक लिस्ट नहीं रखते? अगर नहीं होता और सभी को यह आज़ादी होती कि किसी के घर में जाकर रहे,  तब तो कोई भी आकर परेशान करता या आपके घर की चीजों का दुरूपयोग करता, परन्तु ऐसा नहीं होता है।  जुम्मन लाल की तरह ही आप, मैं, हम सभी ने इस तरह के रजिस्टर का सामना अपने शुरुआती दिनों से किया ही होगा तो फिर अभी इसका विरोध क्यों?

यह सभी को पता है कि स्कूल में रजिस्टर होता है जहां हमारे क्लास के सभी विद्यार्थियों के नाम होते हैं वो भी अल्फ़ाबेटिकल ऑर्डर में और रोज अटेंडेंस लगती हैं। इस रजिस्टर ने चीजें कितनी ही चीजों को आसान कर दिया। इससे कोई छात्र किसी भी अन्य क्लास में जा कर नहीं बैठ सकता। इस रजिस्टर ने यह भी सुनिश्चित किया कि केवल स्कूल से संबंधित छात्र ही क्लास में बैठे हो न कि कोई बाहर वाले। ये रजिस्टर सभी क्लास के लिए अलग-अलग होते थे, इसके बाद स्कूल का एक अलग रजिस्टर होता था जहां स्कूल के सभी छात्रों के नाम होते थे। इसी तरह कॉलेज फिर यूनिवर्सिटी लेवल पर इस प्रक्रिया को फॉलो किया जाता है।

इसी तरह आप कल्पना कीजिये कि एक कॉर्पोरेट कंपनी की जो बिना किसी रजिस्टर और कानून के चलती हो। कितने दिनों तक वो कंपनी चेलगी? अगर employees का रिकॉर्ड नहीं रखा जाता तो फिर तो कोई भी आकार यह दावा कर सकता है कि वह भी उसी कंपनी में काम करता है। इससे तो अराजकता ही बढ़ेगी और कंपनी फेल हो जाएगी। सभी कंपनी के पास एक ऐसा रजिस्टर होता है जहां उन लोगों के नाम और डिटेल्स होते हैं जो उनके लिए काम करते हैं।

इसी तरह मीडिया हाउसों को देखिये जो NRC के खिलाफ नियमित रूप से दुष्प्रचार कर रहे हैं। क्या इन मीडिया कंपनियों के पास अपने एडिटर, एंकर, पत्रकार, प्रोडक्शन टीमों और अन्य सभी कर्मचारियों का रजिस्टर नहीं होता?

एक और उदाहरण लेते है लाइब्रेरी का। लाइब्रेरी में सभी किताबों का उसके खरीद की तिथि के साथ कौन व्यक्ति कब ले जा रहा है और कौन लौटा रहा है, यह सभी डिटेल रिकॉर्ड की जाती है। कोई व्यक्ति किसी कॉन्फ्रेंस भी attend करने जाता है तो उसे रजिस्टर करना पड़ता है।

Documentation एक आवश्यकता है। यह शायद उन आवश्यकताओं में से एक है जो हमारे जीवन को व्यवस्थित और अनुशासित करता है। यह एक ऐसी जरूरत है जिसके पक्ष में व्यक्ति को लड़ना चाहिए खास कर उन लोगों को जो इस दुनिया को एक ‘यूटोपिया’ या एक आदर्श राज्य बनते देखना चाहते हैं।

अब, यदि जीवन के सभी क्षेत्रों में registration स्वीकार्य है, तो देश में नागरिकों के लिए एक राष्ट्रीय रजिस्टर क्यों स्वीकार्य नहीं है? विश्व के लगभग सभी प्रमुख देशों के पास उनका अपना सिटिजनशिप रजिस्टर है यहाँ तक बांग्लादेश के पास भी है।

फिर भारत में इसका विरोध क्यों? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय राजनीति और बुद्धिजीवी वर्ग इसका विरोध कर रहा है? यही उनका एकमात्र काम है। वे सभी फैसलों का विरोध केवल इसलिए करते हैं क्योंकि यह काम PM मोदी कर रहे हैं। क्या यह भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए जरूरी नहीं है कि अपने सभी वैध नागरिकों का एक रजिस्टर रखे?

आप भी सोचिए और जुम्मन लाल की तरह अफवाहों को सच मानकर अंधाधुंध विरोध मत कीजिये।

 

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