कांग्रेस सांसद शशि थरूर को यूं ही शब्दों का जादूगर नहीं माना जाता। अपने वक्तव्य और अंग्रेज़ी में निपुणता के लिए उन्हें कई लोग देश में ‘सम्मान’ की दृष्टि से देखते हैं, जिसका कई बार थरूर ने अपना व्यक्तिगत एजेंडा साधने के लिए दुरुपयोग भी किया है। हालांकि, इस बार उनका दांव उन्हीं पर भारी पड़ गया, जब सीएए के विरोध प्रदर्शनों के सांप्रदायिकरण का विरोध करने पर कट्टरपंथियों ने उन्हें बुरी तरह ट्रोल किया।
कल शशि थरूर ने एक प्रयोग करते हुए भारत के संवैधानिक मूल्यों का प्रचारक बनने का निर्णय किया और उन्होंने सीएए के विरोध प्रदर्शनों में प्रयोग किए जा रहे कट्टरपंथी नारों के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए कहा, ‘हिन्दुत्व के विरुद्ध हमारी लड़ाई से इस्लामी कट्टरवाद को बल नहीं मिलना चाहिए। सीएए और एनआरसी के विरुद्ध हमारी आवाज़ एक समवेशी भारत का मार्ग प्रशस्त करने के लिए है। हम नहीं चाहते कि हमारी संप्रभुता को धार्मिक कट्टरता के कारण धूमिल होना पड़े’ –
Our fight against Hindutva extremism should give no comfort to Islamist extremism either. We who’re raising our voice in the #CAA_NRCProtests are fighting to defend an #InclusiveIndia. We will not allow pluralism&diversity to be supplanted by any kind of religious fundamentalism. https://t.co/C9GVtB9gIa
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) December 29, 2019
शशि थरूर का इशारा उन नारों की ओर था, जहां लोग धार्मिक कट्टरता को सीएए के विरोध के नाम पर बढ़ावा दे रहे थे। जहां एक ओर कई लोग थरूर के इस रुख से हैरान हुए, तो कट्टरपंथियों की फौज थरूर की इस अवहेलना पर उबल पड़ी और उन्होंने शशि थरूर को इस ‘हिमाकत’ के लिए जमकर ट्रोल किया –
People in this country say 'jai bajrang bali' even before lifting a heavy rock and no one calls it communal.
Muslims are pushed to the wall today. Using religious slogans for keeping spirits high is ok when demands are secular. Please spare us this soft bigotry. #CAA_NRC_NPR https://t.co/0FPnz5eBSu
— India Resists (@India_Resists) December 29, 2019
U can be hindu but y can't we be d Muslim.Y can't we raise our Islamic kalima as a slogan agnst d fascist system.If u r agnst it, it means u r against Islam in a difrent way wid a same destiny.If u r not agnst Islam then u sud hv tried 2 understand d meaning of #La_ilaha_illallah pic.twitter.com/a2ma1Nfafd
— Naiyer Khan (@KhanNaiyer) December 30, 2019
As someone who has written books about being unapologetic about your faith, it’s extremely disappointing to see you give in to this line of thought. Chanting “there’s no God but the one true God” in the face of adversity isn’t extremism, it’s meant to reinvigorate courage.
— Abbas Momin (@AbbasMomin) December 29, 2019
सीएए के विरोध के नाम पर लोगों को हिंसा के लिए भड़काने में अग्रणी रहे एक अकाउंट ‘इंडिया रेसिस्ट्स’ ने ट्वीट किया, ‘लोग तो भारी पत्थर उठाने से पहले जय बजरंग बली का उच्चारण करते हैं, पर वो सांप्रदायिक नहीं होता। आज मुसलमानों को घेरा जा रहा है। जोश बढ़ाने हेतु धार्मिक नारों का उच्चारण अच्छा है पर यहां अनुचित? अपनी सॉफ्ट बिगटरी अपने पास ही रखें’।
एक अन्य यूजर नैयर खान कहते हैं, “तुम हिन्दू हो सकते हो, तो हम यहां मुस्लिम क्यों नहीं हो सकते? हम फासीवादी तंत्र के विरुद्ध अपना इस्लामी कलमा क्यों नहीं निकाल सकते? अगर आप इसका विरोध करते हैं, तो आप इस्लाम के विरुद्ध हैं। यदि आप इस्लाम के साथ हैं तो आप को यह बात समझनी चाहिए थी”।
एक अन्य यूजर अब्बास मोमिन लिखते हैं, ‘जिस व्यक्ति ने ऐसी कई पुस्तकें लिखी हैं जहां वे अपने धर्म के बारे में मुखर रहे हैं, वो ऐसा उपदेश देते हुए अच्छा नहीं दिखता। जब हम बोलते हैं कि हमारे ईश्वर के अलावा कोई और ईश्वर नहीं है तो हम सांप्रदायिक नहीं होते, बल्कि लोगों में उत्साह और साहस का संचार करते हैं’।
बाकी ट्वीट्स को हम भाव दें या नहीं, पर आखिरी ट्वीट मुझे सोचने पर विवश करता है। एक लोकतान्त्रिक विरोध प्रदर्शन में अब्बास मोमिन एक कट्टरपंथी नारे को विरोध की अभिव्यक्ति के तौर पर दिखाना चाहता है। एक कट्टरपंथी विचारधारा का एक लोकतान्त्रिक विरोध प्रदर्शन में क्या काम? परंतु हम भूल रहे हैं का सीएए विरोध करने वाले लोगों में अधिकांश लोग किस विचारधारा से संबंध रखते हैं, और यह लोग संविधान के रक्षा के दावे करते फिरते हैं।
दूसरी बात, इस कट्टरपंथी बयान की जय श्री राम और जय बजरंगबली से बड़ी अतार्किक तुलना की गयी है, जबकि वास्तविकता इससे कोसों दूर हैं। ‘जय श्री राम’ और ‘जय बजरंग बली’ किसी अन्य पंथ या समुदाय को नीचा दिखाने के लिए कभी उपयोग में नहीं लाया जाता। पर दूसरी ओर विरोध प्रदर्शन के नाम पर जो कट्टरपंथी नारे लगाए जा रहे हैं, उससे साफ पता चलता है कि वह अपनी धार्मिक विचारधारा को सब पर ज़बरदस्ती थोपना चाहते हैं।
शशि थरूर ने स्थिति हाथ से फिसलते देख ट्विटर पर थोड़े नरम पड़ गए और उन्होंने सफाई पेश करते हुए ट्विटर पर पोस्ट किया, “मैं आपको आहत नहीं करना चाहता था। बस स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हमारी लड़ाई भारत के बारे में है, न इस्लाम और न ही हिन्दुत्व के बारे में। यह भारत की आत्मा को बचाने के लिय लड़ाई लड़ी जा रही है। किसी एक धर्म को दूसरे से लड़ाने की जद्दोजहद नहीं है” –
No@offence intended. Just making it clear that for most of us this struggle is about India, not about Islam. Or Hinduism. It’s about our constitutional values & founding principles. It’s about defending pluralism. It’s about saving the soul of India. Not one faith vs another. https://t.co/GJ69mSrqXj
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) December 29, 2019
[Thread] 1. Ok, have read the views of various people who disagree w/ my pair of tweets yesterday urging that protestors should not give a communal coloration to the #CAA_NRCProtests. Many argue that the fight IS about Islam, that Muslims are fighting for their identity in India
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) December 30, 2019
परंतु आक्रोशित यूज़र्स थरूर के नरम ट्वीट्स पर भी नहीं माने और उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी कट्टरता दिखाते हुए कट्टरपंथी नारों का समर्थन किया। एक ओर जहां हर दिन हिंदुओं की जीवनशैली और उनकी विचारधारा का उपहास उड़ाया जाता है, तो वहीं शशि थरूर के एक ट्वीट से इस्लामिक कट्टरपंथी इतने आहत हुए कि उन्होंने थरूर को लगभग माफी मांगने पर ही विवश कर दिया। थरूर निश्चित रूप से इस घटना को अब कभी भूल नहीं पाएंगे।