आखिर है तो JNU की ही उपज ना, ‘हे भगवान’ को गाली देकर इस्लामिस्ट शेहला ने खुद को एक्सपोज कर लिया

शेहला राशिद

PC: Society and Struggle

रंगे सियार की कहानी तो आपने सुनी होगी? नहीं सुनी?आज कल के रैडिकल इस्लामिस्ट्स का भी वही हाल है जो कम्युनिज़्म का चोला ओढ़ कर भारतीय समाज में रायता फैला रहे हैं। कुछ दिनों पहले मियां उमर खालिद की पोल खुली थी, अब लिबरलों की पोस्टर गर्ल शेहला राशिद के अंदर का कट्टरपंथी इस्लामिस्ट सभी के सामने खुल कर आ गया है।

सियार वाली कहानी आपको संक्षेप में सुनाता हूं। एक बार ककुदुम नामक एक सियार गलती से किसी कपड़े रंगने वाले के बड़े बर्तन में जा गिरता है। उससे उसका रंग नीला हो गया और वह जंगल में आकर सभी जानवरों को बेवकूफ बना कर राजा बन गया। लेकिन रंगे सियार ने चालाकी दिखाते हुए सम्राट बनते ही अन्य सियारों को शाही आदेश जारी कर उस जंगल से भगा दिया था। उसे अपनी जाति के जीवों द्वारा पहचान लिए जाने का खतरा था।

एक दिन पास के जंगल में सियारों की टोलियां ‘हू आं आं’ की बोली बोल रही थी। उस आवाज को सुनते ही ककुदुम अपना आपा खो बैठा। उसके अदंर के जन्मजात स्वभाव ने जोर मारा और वह भी मुंह चांद की ओर उठाकर और सियारों के स्वर में मिलाकर ‘हू आं आं ’ करने लगा। बस फिर क्या था, उसकी पोल खुल गयी।

यही हाल आज कल के कट्टरपंथी इस्लामिस्ट्स का भी है जो कम्युनिज़्म का चोला ओढ़ कर बैठे हुये थे। लेकिन CAA-NRC में शामिल अपने भाई बंधुओं को देख कर उनके अंदर का भी कट्टरपंथी बाहर निकल गया। कल शेहला राशिद ने जो ट्वीट थ्रेड पोस्ट किया, उसमें उनके कट्टरपंथी विचार स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

शेहला रशीद ने लिखा, “यदि आप Muslim identity politics के विरोधी हैं, तो आप एक ऐसे आंदोलन का नेतृत्व क्यों करना चाहते हैं, जिसका नेतृत्व मुस्लिमों द्वारा किया जा रहा है और जिसके लिए मुसलमान अपना खून बहा रहे हैं?”

इससे तो आप समझ ही गए होंगे कि अब वे CAA-NRC को सिर्फ मुस्लिमों का मुद्दा बना कर अपना सांप्रदायिक कार्ड खेल रही हैं।

https://twitter.com/Shehla_Rashid/status/1211522278317416448?s=20

शेहला राशिद ने आगे लिखा, “आप लोग यह न कहें कि आप ‘idea of India’ को बचाने के लिए कर रहे हैं। ‘idea of India’ को कश्मीर में 5 महीने पहले ही मार दिया जा चुका है। आप में से अधिकांश या तो चुप थे या उसका समर्थन कर रहे थे। अब जब एक जन आंदोलन है, तो आप इसे अपने अनुसार appropriate क्यों बनाना चाहते हैं?”

यहाँ पर तो शेहला अनुच्छेद 370 को हटाना Idea of India की हत्या बता रही हैं। यह भाषा किसी अलगाववादी नेता से भी अधिक कट्टरपंथी प्रतीत हो रही है। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो रहा है कि यह दर्द कई दिनों से कम्युनिज़्म के झूठे चोले के पीछे छिपा हुआ था।

आगे शेहला ने यह लिखा है, “अब के लिए, कृपया इसे अपने, अपनी पार्टी, या आपके Idea of India या हिंदू भलाई के बारे में न बनाएं। कृपया अपने विचारों को इस आंदोलन पर न थोपें। इस आंदोलन के लिए बहुमत जुटाने के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करें जो कैफे, मॉल और ऑनलाइन में CAA का मजाक उड़ा रहा है।”

अब यहां देखिये इस wannabe नेता की desperation को देखिये कि वह अब इस मामले को सिर्फ मुस्लिमों तक सीमित कर हिदुओं को भी इसके कट्टर विचारों का समर्थन के लिए उकसा रही है। यह कट्टरपंथी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिंदुओं के ऊपर होने वाले अत्याचार को consider ही नहीं करना चाहती है।

यही नहीं शेहला ने शशि थरूर को भी निशाने पर लेते हुए कहा कि ‘अगर आप समारोहों में ‘हे भगवान’ कहते हैं, यदि आप सार्वजनिक समारोहों में दीप जलाते हैं, यदि आप राजनीतिक भाषणों में महाभारत और रामायण के कथन का उपयोग करते हैं, यदि आपके पौराणिक कार्य आपके राजनीतिक कार्यों का समर्थन करते हैं, तो आप ‘Muslim’ identity का विरोध नहीं कर सकते’।

सही कहा था मोदी जी ने [Add Hypocrisy Ki Seema dialogue]। 2016 में द वायर को दिये अपने साक्षात्कार में शेहला राशिद ने स्पष्ट कहा था कि वे पहचान की राजनीति में विश्वास नहीं रखती। परंतु यहां तो वे मुस्लिम पहचान पर ही ज़ोर दिये जा रही थीं। ट्विटर पर इसके लिए उनकी खूब आलोचना हुई और कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने उन्हे इसके लिए आड़े हाथों भी लिया –

यह पहली बार था कि शेहला राशिद इस तरह खुल कर अपने छिपे हुए कट्टरपंथी विचारों को व्यक्त कर रही थी और शेहला ने इस बात को स्वीकार किया कि वो सिर्फ ‘Muslim’ identity के बल पर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाना चाहती हैं।

इससे पहले जेएनयू के ही छात्र उमर खालिद अपने इस्लामी व्यक्तित्व को खुलेआम स्वीकार कर चुका है। सनातन धर्म की आलोचना के लिए चर्चा में रहने वाला उमर खालिद ने अभी हाल ही में एक ट्विटर थ्रेड पोस्ट किया, जिसमें उमर खालिद ने पैगंबर मुहम्मद को परमार्थी सिद्ध करने का प्रयास किया था।

ऐसे में ये चिंताजनक बात है कि जो मुस्लिम विद्यार्थी जेएनयू में साम्यवादी और नास्तिक होने का दावा करते हैं, वहां से निकलते ही वे कट्टर इस्लामी बन जाते हैं। विद्यार्थी राजनीति का सुधारवादी पक्ष अपनाने की बजाए वे कट्टर इस्लाम के आगे झुक जाते हैं।

 

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