CAB पर वोटिंग से भागकर अपनी लाज तो बचा ली, लेकिन क्या अब अपनी सरकार बचा पाएगी शिवसेना?

शिवसेना

PC: Deccan Chronicle

आखिरकार कई कठिनाइयों और भारी भरकम विरोध से जूझते हुए नागरिकता संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों से सफलतापूर्वक पास हो गया। कल राज्यसभा में इस विधेयक को 125 सांसदों ने अपना समर्थन दिया, जबकि 105 सांसदों ने इसके विरोध में अपना मत दिया। परंतु एक पार्टी ने अपने रुख से एक बार फिर सभी को चौंका दिया, और वो थी शिवसेना, जिनके 3 सांसदो ने वोट डालने से ही मना कर दिया।

इस बारे में शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने ट्विटर पर सफाई देते हुए कहा, ‘ऐसी किसी चीज को हम अपना समर्थन नहीं दे सकते, जिसका कोई स्पष्टीकरण न हो। शिवसेना ने इसीलिए CAB के लिए अपना वोट डालने से मना कर दिया, क्योंकि पार्टी के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं मिला’ –

परंतु शिवसेना ने जिस तरह वोट डालने से मना किया, उससे स्थिति संभलने की बजाए और बिगड़ गयी। ज्ञात हो कि लोकसभा में जब नागरिकता संशोधन विधेयक पेश हुआ, तो उसके समर्थन में शिवसेना ने अपना मत पक्ष में डाला था, और कुल मिलाकर 311 मत इस विधेयक के पक्ष में पड़े थे। परंतु शिवसेना के विधेयक के पक्ष में मत डालते ही महाराष्ट्र में खलबली पड़ गयी, और सहयोगी दलों, विशेषकर कांग्रेस ने जमकर उनकी आलोचना की।

कांग्रेस के नेता बालासाहेब थोराट ने कहा कि शिवसेना को महा विकास अघाड़ी के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के अनुसार काम करना चाहिए था। एक अन्य कांग्रेस नेता नसीम खान ने भी शिवसेना के इस कदम के प्रति विरोध जताते हुए कहा कि उन्हें ऐसा कदम उठाने से पहले अपने सहयोगी दलों से पूछना चाहिए था। उन्होंने ये भी कहा कि यह कदम ‘अनैतिक, असंवैधानिक और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के विरुद्ध है’।

कांग्रेस के रुख से भयभीत हो शिवसेना ने तुरंत अपना रुख बदला, और राज्यसभा में शंकाओं का समाधान न होने तक विधेयक का समर्थन करने की बात कही पर कुछ शर्तों के साथ और ये भी जताया कि वो इस बिल के पक्ष में पूरी तरह है ही नहीं। इस पल्टू स्वभाव के लिए पार्टी की राज्यसभा में जमकर आलोचना हुई, और स्वयं गृह मंत्री अमित शाह ने पूछा कि “आखिर ऐसा क्या हुआ, कि एक रात में शिवसेना का रुख बदल गया?”

परंतु शिवसेना भी राज्यसभा में धर्मसंकट में पड़ गयी थी। यदि ये पार्टी कांग्रेस के विरुद्ध विधेयक को समर्थन देती, तो उनकी सरकार महाराष्ट्र में तुरंत गिर जाती। पर यदि वे विधेयक के विरोध में अपना मत डालते, तो उनके कोर वोटर सदैव के लिए उनसे नाता तोड़ लेते। ऐसी स्थिति में पार्टी ने जो कदम उठाया उससे तो यही लगता है कि आधिकारिक रूप से उद्धव ठाकरे सोनिया गांधी के इशारों पर नाचने वाले रिमोट कंट्रोल सीएम बन चुके हैं। ऐसे में शिवसेना ने वोट न देना ही बेहतर समझा। इससे वो कांग्रेस को ये दिखा पायी कि वो इस बिल के पक्ष में नहीं है, वहीं अपने कोर वोटर को ये दर्शा पायी कि वो इसके विरोध में भी नहीं है।

परंतु कांग्रेस इतनी भी भोली नहीं है, जितना कि शिवसेना समझती है, कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह को शायद आगामी घटनाओं का पहले ही आभास हो चुका था। उन्होंने बहस शुरू होने से पहले ही कहा था, ‘इस विधेयक का समर्थन करने का सबसे आसान तरीका है सदन से वॉक आउट करना या वोट ही नहीं देना’। इसी परिप्रेक्ष्य में द हिन्दू की पत्रकार विजेता सिंह ने ट्वीट किया, ‘शिवसेना के संजय राउत ने जेपी नड्डा से हाथ मिलाया और फिर वे राज्यसभा से बाहर चले गए, ठीक वोटिंग से कुछ ही मिनट पहले। शिवसेना वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रही, और अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने इस विधेयक को अपना समर्थन दिया’। स्पष्ट है इस कदम से शिवसेना ने कांग्रेस को नाराज किया है जो पहले ही लोकसभा में इस पार्टी के रुख से नाराज चल रही थी ।

इसके साथ ही जिस प्रकार से इस बिल को लेकर शिवसेना का स्टांस रहा है उससे इतना तो स्पष्ट हो चुका है कि शिवसेना भारत की सबसे बड़ी हिपोक्रेट पार्टियों में से एक है। जिस तरह कर्नाटक में जेडीएस और काँग्रेस की बेमेल गठबंधन की सरकार एक साल भी पूरा नहीं कर पायी थी, अब ऐसा लगता है कि अब महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की खिचड़ी सरकार अपने पतन की ओर अग्रसर है। हालांकि, अब प्रश्न यह नहीं है कि यह सरकार टिकेगी या नहीं, अब प्रश्न यह है कि उद्धव सरकार कब गिरेगी, क्योंकि CAB को अपना अप्रत्यक्ष समर्थन दे शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी को निराश किया है। स्पष्ट है शिवसेना ने अपने कोर वोटर को नाराज न करने के लिए वाकआउट तो कर लिया लेकिन क्या अपनी बेमेल गठबंधन की सरकार  कब तक बचाती है देखना दिलचस्प होगा।

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