‘CAB पर आपके चिल्लाने से कुछ नहीं होगा’, शाह ने विरोधी मुख्यमंत्रियों को दिया सख्त संदेश

अमित शाह, राष्ट्रपति शासन, नागरिकता संशोधन बिल, एनआरसी, सीएबी

जब से नागरिकता संशोधन विधेयक ने कानून का रूप लिया है, तभी से इस कानून के खिलाफ भ्रामक प्रोपेगैंडा चलाया जा रहा है। कोई इस एक्ट को धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला बता रहा है तो कोई इसे हिंदुओं को लुभाने की राजनीति की दिशा में उठाया जा रहा कदम घोषित कर रहा है। कुल मिलाकर, तीन पड़ोसी देशों से आए धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों को भारतीय नागरिकता देने वाले इस कानून पर राजनीतिक जंग शुरू हो चुकी है।

इसी कड़ी में पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने घोषणा की कि यह एक्ट ‘असंवैधानिक’ है और उनके संबंधित राज्यों में इसके लिए कोई जगह नहीं है। हालांकि, ऐसे राज्यों और मुख्यमंत्रियों को अब गृह मंत्रालय ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि इस बात का निश्चय करना राज्य के अधिकार में है ही नहीं है कि संसद से पास हुआ एक्ट किसी राज्य में लागू होगा या नहीं, और इसके कारण सभी राज्य इस कानून को लागू करने के लिए बाध्य हैं।

बता दें कि पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पहले ही कह चुके हैं कि उनके राज्य में इस कानून के लिए कोई जगह नहीं हैं। गुरुवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा कि केंद्र इस कानूनों को जबरदस्ती राज्यों में नहीं लागू कर सकती है। इसी तरह केरल के सीएम पिनारायी विजयन ने भी इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए इसे अपने राज्य में लागू करने से मना कर दिया था। इसी के चलते केंद्र के एक शीर्ष अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि राज्य सरकारों को नागरिकता कानून को लागू करने से इनकार करने का अधिकार नहीं है। केंद्र सरकार के अधिकारी ने कहा कि यह कानून संविधान की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची के तहत बनाया गया है, इसलिए यह राज्यों के लिए बाध्यकारी है। गृह मंत्रालय का यह बयान ऐसे राज्यों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, जो इस कानून को ना लागू करने का विचार कर रहे थे।

बता दें कि संसद से पास हुए किसी भी एक्ट की वैधता का परीक्षण करने का अधिकार प्रशासन या विधान के पास नहीं होता है, बल्कि संविधान में इसके लिए न्यायालय को शक्तियां दी गयी हैं। ऐसे में अगर किसी राज्य सरकार को संसद से पास हुए किसी भी एक्ट पर कोई संशय है, तो उसके पास कोर्ट के दरवाजे खटखटाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है। देश की सभी राज्य सरकारों और राजनीतिक पार्टियों को इस अति-महत्वपूर्ण संवैधानिक तथ्य को जानने की ज़रूरत है।

हालांकि, क्या हो अगर फिर भी राज्य सरकारें इस एक्ट को लागू करने में आनाकानी दिखाएं या इस एक्ट के लागू होने के रास्ते में रोड़ा अटकाएँ? इसके लिए भी संविधान ने ही उपाय दिया है। अगर राज्य सरकारें संसद से पास हुए किसी भी एक्ट को लागू करने में विफल सिद्ध होती हैं, तो केंद्र सरकार को किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राष्ट्रपति को सिफ़ारिश करने का अधिकार है। CAA कानून को लागू नहीं करने को विपक्षी पार्टियों ने अपनी नाक का मुद्दा बना लिया है, ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि विपक्षी पार्टियां इसको लागू करने के रास्ते में रोड़ा अटका सकती हैं, हालांकि केंद्र सरकार को भी इसको लेकर कड़ा रुख अपनाने की ज़रूरत है।

Exit mobile version