वामपंथी उग्रवाद का डर: भाजपा ने कई राज्य हारे, लेकिन छत्तीसगढ़ और झारखंड का दुख सबसे ज़्यादा

भाजपा

झारखंड के विधानसभा चुनावों के नतीजों में कल यानि सोमवार को झारखंड-मुक्ति मोर्चा यानि JMM-कांग्रेस और RJD के गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल गया। झारखंड में जीत के साथ ही अब नक्सली प्रभावित रेड कॉरीडोर में पड़ने वाला एक और राज्य भाजपा की पकड़ से छूट गया है। कांग्रेस अब महाराष्ट्र से लेकर झारखंड तक, इन सब राज्यों में सत्ता में भागीदार है और इसकी वजह से अब देश में नक्सलवाद का खतरा बढ़ गया है।

बता दें कि वर्ष 2014 में जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, तभी से मोदी सरकार का नक्सलवाद पर प्रहार लगातार जारी रहा है। खासकर वामपंथी उग्रवाद को लेकर मोदी सरकार बहुत गंभीर रही है और पिछले पाँच से छः सालों में इस संबंध में भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों ने बड़े कदम उठाए हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में राजनाथ सिंह के नेतृत्व में भारत सरकार ने इस दिशा में काफी सफलता पाई थी।

बता दें कि मोदी सरकार वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही नक्सलियों को जड़ से खत्म करने के मंत्र पर काम कर रही है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में गृह मंत्री रहे राजनाथ सिंह ने इस समस्या से निपटने के लिए ‘नेशनल पॉलिसी एंड एक्शन प्लान’ शुरू किया था, जिसके बाद से नक्सल हमलों में कमी देखने को मिली थी। एक तरफ जहां 2017 में भारत के 144 जिले नक्सल समस्या से प्रभावित थे, तो 2018 में यह घट कर 82 तक आ पहुंची थी।

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2009-13 के दौरान नक्सल हिंसा के कुल 8,782 मामले सामने आए जबकि 2014-18 के दौरान 43.4 फीसदी की कमी के साथ 4,969 मामले सामने आए। गृह मंत्रालय के अनुसार 2009-13 के दौरान सुरक्षा बल के कर्मियों सहित 3,326 लोगों की जान गई, जबकि 2014-18 में 60.4 प्रतिशत कम 1,321 मौतें हुईं। 2009 और 2018 के बीच कुल 1,400 नक्सली मारे गए। देशभर में इस साल के पहले पांच महीनों में नक्सल हिंसा की 310 घटनाएं हुईं, जिसमें 88 लोग मारे गए हैं। इससे पहले अब तक यह होता था कि एक इलाके में दबाव बढ़ने पर नक्सली दूसरे इलाके या राज्य में पनाह ले लेते थे, लेकिन अब गृह मंत्रालय के ऑपरेशन विध्वंसके तहत अलग-अलग राज्यों में कोबरा कमांडो की छोटी-छोटी टीमों ने नक्सलियों की नींद हराम कर दी है। उन्हें कहीं छुपने की जगह भी नहीं मिल रही है। इन टीमों के पास बेल्जियन मेलिनॉयस (Belgian malinois)  प्रजाति के खोजी श्वान दस्ते हैं, जो नक्सलियों के ठिकाने और उनके IED का पता लगा सकते हैं। कोबरा कमांडो टीम दिन रात जंगल में ऑपरेशन चलाती है, और मौके के मुताबिक रणनीति बनाकर नक्सलियों का सफाया कर देती है। कोबरा टीम को तैयार करने के लिए खासतौर पर कोबरा स्‍कूल ऑफ जंगल वारफेयर एंड टेक्टिस भी बनाया गया है।

मोदी सरकार ने नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए कई स्तर पर काम किया है।  पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने नक्सल प्रभावीत क्षेत्रों के विकास पर भी ज़ोर दिया। एक तरफ जहां सुरक्षाबलों को चाक चौबंद किया गया है, वहीं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण समेत दूसरी परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार नक्सलियों के नेटवर्क को तोड़ने के लिए छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के 44 नक्सल प्रभावित जिलों में 5,442 किलोमीटर सड़क निर्माण की परियोजना को मंजूरी दी गई है। मोदी सरकार ने ओडिशा में 130 किलोमीटर लंबी जैपोर-मलकानगिरी नई लाइन परियोजना को मंजूरी दी है। 2,676.11 करोड़ की लागत से बनने वाली इस रेल परियोजना की 2021-22 तक पूरा होने की संभावना है। नक्सली हमेशा अपने प्रभाव वाले इलाकों में सड़कों के निर्माण का विरोध करते हैं। सरकार के इस कदम से स्पष्ट है कि सड़कें बनेंगी, तो विकास के द्वार खुलेंगे। जनता का दूर-दराज के लोगों से मेल-जोल बढ़ेगा। वो नक्सलियों और माओवादियों के डर से बाहर निकल सकेंगे, उनमें इनके खिलाफ लड़ने का आत्मविश्वास जागेगा।

दूसरी तरफ इन नक्सलियों को मिलने वाली विदेशी फंडिंग को रोकने के लिए केंद्र सरकार FCRA जैसे कड़े कानून लेकर आई, जिसके बाद विदेशों से आने वाले पैसे के इस्तेमाल को लेकर पारदर्शिता बढ़ी है और इनकी अवैध फंडिंग पर रोक लगी है। कुल मिलाकर नक्सलवाद को खत्म करने की दिशा में जो कदम मोदी सरकार ने भाजपा शासित राज्यों के साथ मिलकर उठाए हैं, वे वाकई सराहनीय हैं। हालांकि, अब जब इन राज्यों में गैर-भाजपा सरकारें सत्ता में आ गयी हैं, तो इस बात का डर है कि पिछले पांच-छः सालों में मोदी सरकार द्वारा किए गए कार्यों पर पानी फिर सकता है।

पिछले साल महाराष्ट्र पुलिस की सी-60 स्क्वाड और CRPF ने मिलकर गढ़चिरौली जिले में 37 माओवादियों को मौत के घाट उतार दिया था। हालांकि, अब NCP और शरद पवार ने इन नक्सलियों पर नर्म रुख अपनाने और खुलकर इनके समर्थन में आने का काम शुरू भी कर दिया है। एलगार परिषद मामले में NCP उस व्यक्ति के खुले समर्थन में आ गयी थी, जिसने पीएम मोदी को मौत के घाट उतारने की साजिश रची थी। ऐसी सरकार जब सत्ता में होगी, तो इस बात की आशंका काफी बढ़ जाएगी कि भविष्य में शायद ही दोबारा ऐसी मुठभेड़ हमें देखने को मिले।

भाजपा शासित राज्यों में ना सिर्फ हमें नक्सलवाद में कमी देखने को मिली है, बल्कि शहरी नक्सलियों पर नकेल कसने में भी भाजपा सरकारों ने काफी सफलता पाई है। नक्सलवाद को किसी भी तरह बढ़ने का मौका नहीं दिया गया। हालांकि, अब जब भाजपा इन राज्यों में सत्ता से बाहर हो चुकी है, तो अब इन नक्सलवादियों को दोबारा फलने-फूलने का मौका मिल सकता है।

नक्सलवाद को खत्म करने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है और केंद्र सरकार सिर्फ एक सहायक की भूमिका निभाती है। नक्सलवाद को खत्म करने के लिए केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होती है, और नक्सलवादियों से संबन्धित खूफिया जानकारी इकट्ठा करने में राज्य सरकारों की अहम भूमिका होती है। अगर राज्य सरकारें ऐसा करने में असफल होती हैं या ऐसा करने में आनाकानी करती हैं, तो इसका सीधा असर नक्सलवाद के खिलाफ किसी भी कार्रवाई पर पड़ेगा। अब चूंकि, इन राज्यों में भाजपा विरोधी सरकारें सत्ता में आ गयी हैं, ऐसे में नक्सलियों का वापस सक्रिय होना कोई मुश्किल-भरा काम नहीं होगा। मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां घने जंगल और आदिवासियों का बसेरा है, नक्सल को पनपने के लिए बड़ी आसानी होगी और मोदी सरकार ने नक्सलवाद को खत्म करने की दिशा में जो भी कदम उठाए हैं, यह उनपर पानी फेरने का काम करेगा।

जब किसी गंभीर बीमारी का जड़ से इलाज़ नहीं किया जाता है, तो उस रोग के और ज़्यादा गंभीरता से पैदा होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे ही, अगर मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में देश में दोबारा नक्सलवाद की समस्या गंभीर होती है, तो यह और ज़्यादा भयावह रूप दिखाएगा। नक्सली अपने आप को पुनर्जीवित दिखाने के लिए लोगों और सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए नए तरीके अपनाएँगे और केंद्र सरकार को तब इनपर काबू करने के लिए अब के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।

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