“परंपरा का सम्मान होना ही चाहिए” अयोध्या मामला सुलझा, अब सबरीमाला पर जस्टिस बोबडे का बड़ा संकेत

चीफ जस्टिस बोबडे सबरीमाला

PC: The Hindu

राम मंदिर के बाद अब सबरीमाला केस में भी हिंदुओं की जीत दिखाई दे रही है और यह महिला अधिकारों के नाम पर एक्टिविजम करने वालों के लिए बड़ा झटका माना जा सकता है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय पीठ ने यह कहा कि हम इस पर फैसला नहीं सुना सकते है क्योंकि इसे अभी सात जजों की बेंच को सौंपा गया है और यह लोगों की भावनाओं से जुड़ा मामला है। चीफ जस्टिस बोबडे के बयान के बाद ऐसा लग रहा है कि अयोध्या मामले के बाद अब सबरीमाला मंदिर का मुद्दा भी सुलझ सकता है।

चीफ जस्टिस बोबडे ने सबरीमाला पर शुक्रवार को कहा कि 2018 में सुनाये गए फैसले पर कोई संदेह नहीं है। साथ ही इस बात पर भी नहीं कि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ को भेजा गया है जो अभी तक बना भी नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि यह विश्वास हजारों वर्षों का है। भलाई इसी में है कि इस पर यह पीठ फैसला न सुनाये।

चीफ जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह भी कहा कि, ”कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिनसे देश में हालात विस्फोटक हो सकते है, यह मुद्दा भी ऐसा ही है। हम कोई हिंसा नहीं चाहते, मंदिर में पुलिस की तैनाती बहुत अच्छी बात नहीं है। यह बेहद भावनात्मक मुद्दा है। हजार साल से वहां परंपरा जारी है।”

याचिकाकर्ता फातिमा की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने फिर कहा कि साल 2018 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश अंतिम आदेश नहीं है।

जब याचिकाकर्ता ने कहा कि हमें मंदिर में जाने का आदेश दें। तब कोर्ट ने कहा कि ‘न तो हम मंदिर में जाने का आदेश देंगे, और न ही मंदिर जाने से रोकने का। हम कोई भी आदेश पारित नहीं करेंगे’। याचिकाकर्ता की दलील पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ‘अगर मंदिर प्रशासन अंदर जाने के लिए स्वागत करता है तो आप जाओ’।

इससे पहले भी एक्टिविस्ट बिंदु अम्मिनी की याचिका पर चीफ जस्टिस ने यही बात कही थी कि साल 2018 में सभी आयु वर्ग की महिलाओं का सबरीमाला मंदिर में प्रवेश को लेकर जो फैसला दिया गया था, वह अंतिम फैसला नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘2018 का निर्णय ‘अंतिम शब्द’ नहीं है, क्योंकि यह मामला विचार करने के लिए सात सदस्यीय बेंच के पास भेजा गया है।’

बता दें कि रेहाना फातिमा और बिंदू अम्मिनी एक्टिविस्ट तृप्ति देसाई की करीबी सहयोगी हैं। यह वही रेहाना फातिमा हैं जिन्होंने सबरीमाला मंदिर में जबरदस्ती प्रवेश करने का प्रयास किया था, जिसके बाद उन्हें केरल मुस्लिम जमात काउंसिल ने समाज से बाहर करने के ऐलान कर दिया था। बिंदू अम्मिनी उन दो महिलाओं में से एक थीं,  जिसने इस साल 2 जनवरी को सबरीमाला में प्रवेश करने का प्रयास किया था। अब ऐसे में चीफ जस्टिस बोबडे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वर्ष 2018 में दिया गया फैसला अंतिम नहीं है और यह लोगों की भावनाओं से जुड़ा है तब यह अनुमान लगाया जा सकता कि फैसला किस ओर जा सकता है।

बता दें कि 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपना फैसला सुनाया था। हाल ही इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की बड़ी पीठ को सौंप दिया। बेंच ने कहा कि परंपराएं धर्म के सर्वमान्य नियमों के मुताबिक हों और आगे 7 जजों की बेंच इस बारे में अपना फैसला सुनाएगी। ऐसे में यह मामला अब सिर्फ हिंदुओं तक ही सीमित नहीं रह गया है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और पारसी महिला जो गैर-पारसी से विवाह कर चुकी हैं उनके टावर ऑफ साइलेंस में प्रवेश को लेकर भी सुनवाई कर सकती है।

गौरतलब है कि 28 सितंबर 2018 को सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई में जस्टिस आर फली नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी। उस समय न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने पूरी तरह से असहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि आस्था के मामले न्यायालयों द्वारा निर्देशित नहीं किए जा सकते। अब सात जजों की सैवंधानिक पीठ इस पर क्या फैसला सुनाती है ये देखना दिलचस्प होगा।

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