अमेरिका की USCIRF लगाना चाहती है अमित शाह पर प्रतिबंध, ये न सिर्फ मूर्खतापूर्ण है बल्कि असंभव भी

अमित शाह, अमेरिका

PC: tv9

कई घंटो की लंबी बहस के बाद कल यानि सोमवार को दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र की संसद के निचले सदन में बहुप्रतीक्षित नागरिकता संशोधन बिल पास हो ही गया। हालांकि, इस बिल के पास होने के बाद अंतरराष्‍ट्रीय धार्मिक स्‍वतंत्रता के लिए अमेरिकी फेडरल कमीशन यानि USCIRF ने अपनी कड़ी आपत्ति जताई है और भारत को चेतावनी देते हुए अमेरिकी कांग्रेस को इस बात की सलाह दी है कि अगर यह विधेयक कानून की शक्ल ले लेता है तो भारत के गृहमंत्री अमित शाह पर प्रतिबंध लगा दिये जाएंगे, जिसके कारण वे कभी भी अमेरिका की यात्रा नहीं कर पाएंगे।

सोमवार को जारी एक बयान में अमेरिकी कमीशन ने कहा कि लोकसभा में विधेयक के पारित किए जाने को लेकर वह काफी चिंतित हैं। आयोग ने कहा, ‘‘अगर कैब दोनों सदनों में पारित हो जाता है तो अमेरिकी सरकार को गृहमंत्री अमित शाह और मुख्य नेतृत्व के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिए।’’ बता दें कि USCIRF शुरू से ही भारत विरोधी रुख अपनाता रहा है, और वर्ष 2005 में इसी आयोग की सिफ़ारिश पर तत्कालीन गुजरात सीएम नरेंद्र मोदी पर अमेरिका में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी गयी थी।

हालांकि, उस वक्त नरेंद्र मोदी केंद्रीय स्तर की राजनीति में विपक्ष की भूमिका में थे, और उन पर प्रतिबंध लगाना अमेरिका के लिए बेहद आसान था। लेकिन क्या आज के हालातों में यह संभव है, जब भारत सरकार में अमित शाह की हैसियत नंबर 2 की है, जब अमित शाह सत्तासीन पार्टी के अध्यक्ष हैं और सबसे बड़ी बात, जब अमित शाह भारत के गृहमंत्री हैं। आज के समय अमित शाह पर प्रतिबंध लगाना भारत-अमेरिका के रिश्तों के लिए खतरनाक साबित होगा, जो अमेरिका के लिए अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान होगा।

भारत किसको नागरिकता देता है या नहीं, यह पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है और जब तक भारत लोकतान्त्रिक तरीके से, संसद के माध्यम से अपने फैसले ले रहा है, किसी भी देश को इसपर बोलने का कोई अधिकार नहीं है। अमेरिका के इस आयोग द्वारा भारत के आंतरिक मामले पर टिप्पणी करने से USCIRF ने भारतीय लोकतन्त्र को कम आंकने की कोशिश की है। अमित शाह एक लोकतान्त्रिक तरीके से चुने हुए नेता हैं और जिस पार्टी का वे प्रतिनिधित्व करते हैं, वह ऐतिहासिक बहुमत के साथ चुनाव जीतकर सदन में लौटी है।

इसके अलावा नागरिकता संशोधन कानून लेकर आना भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा था, जिसके आधार पर भारी संख्या में लोगों ने भाजपा को वोट दिया और भाजपा सरकार को इस बिल को लेकर आने का जनादेश दिया। अब अगर इस प्रक्रिया में कोई बाहरी ताकत हस्तक्षेप करती है, तो उसे भारत के आंतरिक मामलों में दख्लअंदाजी ही कहा जाएगा।

आज भारत और अमेरिका के रिश्ते इस हद तक मजबूत हो चुके हैं कि इस स्थिति में अमेरिका कभी भी भारत के गृहमंत्री पर प्रतिबंध लगाने का विचार भी नहीं कर सकता। व्यापारिक रिश्तों से लेकर, सैन्य और सुरक्षा समझौतों तक, पिछले एक दशक में भारत और अमेरिका के सम्बन्धों की रूप-रेखा पूरी तरह बदल चुकी है। किन्हीं दो देशों के रिश्तों को आप उनके बीच होने वाले व्यापार से समझ सकते हैं। भारत और अमेरिका के बीच अभी 74.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है, जिसमें से 48.6 बिलियन डॉलर का भारत अमेरिका को को एक्सपोर्ट करता है।

इसके अलावा पिछले कुछ सालों में और खासकर भारत में मोदी सरकार आने के बाद भारत और अमेरिका के बीच सैन्य सहयोग भी बढ़ा है। दोनों देश अभी ‘अति-महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार’ बनने की ओर अग्रसर हैं। भारत और अमेरिका के बीच अभी LEMUA और COMCASA जैसे अति-महत्वपूर्ण संधियों पर तो हस्ताक्षर हो गए हैं जबकि जल्द ही दोनों देशों के बीच Basic Exchange and Cooperation Agreement यानि BECA पर हस्ताक्षर हो सकते हैं जिसके बाद अमेरिका भारत को रणनीतिक रूप से कई अहम हथियार बेच सकेगा।

इसके अलावा अमेरिका को चीन को काबू में रखने के लिए भी भारत का ही साथ चाहिए। अभी अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ मिलकर इंडो-पेसिफिक की रणनीति पर काम कर रहा है। ऐसी सूरत में अमेरिका भारत के गृह मंत्री पर प्रतिबंध लगाकर अपनी सालों की मेहनत पर बिलकुल भी पानी नहीं फेरना चाहेगा।

अगर बात भारत और अमेरिका के रिश्तों की बात की जाये और इसमें राष्ट्रपति ट्रम्प और पीएम मोदी की दोस्ती का ज़िक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। राष्ट्रपति ट्रम्प अपने आप को भारत का सबसे सच्चा दोस्त बता चुके हैं और इसका सबसे ताज़ा उदाहरण हमें अमेरिका के टेक्सास में सम्पन्न हुए हाउडी मोदी कार्यक्रम में भी देखने को मिला था। इन दोनों नेताओं की घनिष्ठ मित्रता के चलते ऐसा हो ही नहीं सकता कि अमेरिका भारत पर प्रतिबंध लगाने का विचार भी करे।

अगर अमेरिका को प्रतिबंध लगाना ही है, तो वह भारत पर नहीं, बल्कि बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों पर लगाना चाहिए जहां दशकों से योजनबद्ध तरीके से अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ मुहिम चलाकर उनका खात्मा किया जा रहा है। आज के बांग्लादेश को मिलाकर आज़ादी के समय पाकिस्तान में लगभग 21 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की हुआ करती थी। हालांकि, आज के पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी जहां सिर्फ 1.8 प्रतिशत है तो वहीं बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 8 प्रतिशत के आसपास सिमट गयी है। भारत में तो अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों का शुरू से ही संरक्षण किया गया है।

ऐसे में अमेरिका को भारत पर किसी भी तरह का ज्ञान झाड़ने का कोई अधिकार नहीं है। आज भारत के विदेश मंत्रालय ने भी अमेरिका को इसको लेकेर कड़ा जवाब दिया है। विदेश मंत्रालय ने ट्वीट किया ‘USCIRF की ओर से जिस तरह का बयान दिया गया है, वह हैरान नहीं करता है क्योंकि उनका रिकॉर्ड ही ऐसा है। हालांकि, ये भी निंदनीय है कि संगठन ने कम जमीनी जानकारी होने के बाद भी इस तरह का बयान दिया है’। इसके बाद गृह मंत्रालय के द्वारा जारी बयान में कहा गया ‘USCIRF के द्वारा जो बयान दिया गया है वह सही नहीं है और ना ही इसकी जरूरत थी। ये बिल उन धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देता है जो पहले से ही भारत में आए हुए हैं। भारत ने ये फैसला मानवाधिकार को देखते हुए लिया है। इस प्रकार के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए, ना कि उसका विरोध करना चाहिए’।

भारत की ओर से अमेरिका को यह जवाब बिलकुल तर्कसंगत है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है, और भारत के लोकतन्त्र को किसी अन्य देश के प्रमाण-पत्र की कोई आवश्यकता नहीं है। USCIRF भारत के खिलाफ शुरू से ही द्वेष भावना रखता है, और भारत के खिलाफ यह उसका कोई नया एजेंडा नहीं है। ऐसे में भारत में किसी को भी इस रिपोर्ट की तरफ ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं है।

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