भले ही महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे हों लेकिन असली सत्ता तो एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार के हाथों में है। वे जो कहते हैं उन्हीं के इशारों से राज्य में फैसले लिए जाते हैं। राज्य में असल सत्ता किसके हाथों में है एक बार फिर सिद्ध हो गया है। दरअसल, शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को दरकिनार करते हुए खुलकर कहा है कि उनकी सरकार महाराष्ट्र में सीएए और एनआरसी को लागू नहीं होने देगी।
शरद पवार ने कहा, ”एनआरसी और सीएए के विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, ये देश को अन्य गंभीर मुद्दों से भटकाने की कोशिश है।” उन्होंने कहा कि ”ये किसी एक धर्म को टार्गेट करने की कोशिश है। इसके साथ ही पवार ने महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे का विरोध किया और उनके बयान को खारिज कर दिया। बता दें कि महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने पहले कहा था कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद ही फैसला लेगी कि राज्य में इसे लागू करना है या नहीं।
उद्धव ने कहा था, “देश के लिए सीएए के नाम पर एक बहुत गलत संदेश भेजा जा रहा है। कुछ लोग इसे अदालत में चुनौती देने की योजना बना रहे हैं। हम सबसे पहले यह देखना चाहेंगे कि अदालत सीएए पर क्या निर्णय लेती है, फिर हम अपना रुख साफ कर देंगे।”
यह घटना स्पष्ट करती है कि शरद पवार मुख्यमंत्री के बयानों का कोई परवाह नहीं करते हैं। वास्तव में, शरद पवार के हाथों में ही उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र की सरकार है। इसके अलावा, यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने उद्धव ठाकरे को दरकिनार किया है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि शिवसेना महाराष्ट्र के औरंगाबाद में बालासाहेब ठाकरे की एक भव्य स्मारक और मूर्ति के प्रति आशान्वित थी। रिपोर्टों के अनुसार, उक्त स्मारक शहर के प्रियदर्शनी गार्डन में बनाया जाना था, और इसके लिए 1000 से कम पेड़ों की कटाई की आवश्यकता नहीं थी। हालांकि, पवार ने ऐसी सभी महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया है। उन्होंने कहा, “बालासाहेब ठाकरे एक प्रकृति-प्रेमी थे। उनका स्मारक बनाना प्रशंसनीय है। लेकिन स्वर्गवासी बालासाहेब को खुद ये पेड़ काटने का विचार पसंद नहीं आया होगा।
एनसीपी और कांग्रेस के कठपुतली बने सीएम उद्धव ठाकरे पर कटाक्ष करते हुए भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार ने गुरूवार को कहा कि- डमी सीएम को कोई भी फैसला लेने से पहले शरद यादव व सोनिया गांधी से मंजूरी लेनी पड़ती है। इसी तरह पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के शब्दों में, ‘गठबंधन सरकार की मजबूरी’ होती है। वास्तव में उद्धव ठाकरे एक रिमोट सीएम ही बनकर रह गए हैं। पहले तो कुर्सी पाने के लिए उद्धव ठाकरे ने अपनी हिंदुत्व वाली विचारधारा त्यागी, फिर अपने विरोधियों के साथ ही गठबंधन करके सरकार बनाई।
शुरू में ही उद्धव ठाकरे की गुलामी दिख गई थी। दरअसल, उद्धव ठाकरे ने इस गठबंधन का नाम महा शिव अघाड़ी दिया था लेकिन सोनिया और शरद यादव के दबाव में आकर उन्होंने इस गठबंधन का नाम ही बदल दिया। अब इसका नाम महा विकास अघाड़ी है। बताया जा रहा था कि ‘शिव’ नाम से कांग्रेस और एनसीपी की सेक्युलरता भंग हो रही थी इसी वजह से इसके स्थान पर विकास शब्द को रखा गया। वास्तव में एनसीपी और कांग्रेस के तय धर्मनिरपेक्षता के मानकों पर ही शिवसेना चल रही है।
शुरुआत में ही अपनी कमजोरी दिखाकर उद्धव ठाकरे ने खुद को कठपुतली बना लिया। अब आगे भी इसी तरह से वे शरद और सोनिया के रिमोट पर नाचते रहेंगे। वहीं एक समय था जब भाजपा के साथ शिवसेना सरकार में थी। उस समय शिवसेना खुलकर दहाड़ती थी। चाहे वह भाजपा हो या फिर कोई भी पार्टी शिवसेना का ये हश्र हमनें पहले कभी नहीं देखा था।