‘ये इंसान हमारे भरोसे लायक नहीं’ जिनपिंग भारत समेत 6 देशों के लोगों को फूटी आंख भी नहीं सुहाते

चीन, जिनपिंग

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व पर से अपनी पूरी दुनिया का भरोसा उठना शुरू हो गया है। चीन जिस तरह दुनिया के सभी देशों के मामलों में अपनी टांग अड़ाता है, और अपने निवेश के जरिए दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था को हाईजैक करने की कोशिश करता है, उसी का नतीजा है कि अब सभी देश और खासकर लोकतान्त्रिक देशों में रहने वाले लोगों का शी जिनपिंग के नेतृत्व पर से भरोसा उठने लगा है और यह चीन के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है।

ऐसा इसलिए क्योंकि भविष्य में कोई भी देश चीन के निवेश का स्वागत नहीं करेगा, और चीन के साथ व्यापार करने में सभी देश असहज महसूस करना शुरू कर देंगे। दरअसल, हाल ही में जारी हुए प्यु रिसर्च के आंकड़ों में यह बात सामने आई है कि जापान, इंडोनेशिया, भारत, फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया में रहने वाले 45 प्रतिशत लोगों का शी जिनपिंग के नेतृत्व पर से भरोसा उठ चुका है।

प्यु रिसर्च के आंकड़ों में यह सामने आया है कि जापान में सबसे ज़्यादा लोग चीन और शी जिनपिंग से नफरत करते हैं। जापान के 81 प्रतिशत लोगों को शी जिनपिंग के नेतृत्व पर जरा सा भी भरोसा नहीं है। उसके बाद साउथ कोरिया में 74 प्रतिशत और ऑस्ट्रेलिया में 54 प्रतिशत लोगों का मानना है कि उन्हें शी जिनपिंग पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। सर्वे में शामिल सभी छः देशों के आंकड़ें आप यहां देख सकते हैं:

इन सभी देशों में सिर्फ शी जिनपिंग के नेतृत्व पर ही नहीं, बल्कि चीन के निवेश, चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था के प्रति भी नकारात्मक माहौल बन चुका है। हालांकि, इन सभी लोकतान्त्रिक देशों में चीन के खिलाफ बन रहे इस माहौल का कोई एक कारण नहीं है, बल्कि जिस तरह चीन पिछले कई सालों से योजनाबद्ध तरीके से देशों के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ता आया है, उसी का यह नतीजा है।

चीन की यह आदत रही है कि वह सभी देशों के आंतरिक मामलों में दख्लअंदाजी करता है। चाहे कश्मीर मामले पर अपनी टांग अड़ाना हो, या दक्षिणी चीन सागर पर गैर-कानूनी अधिकार जमाना हो, चीन बार-बार यह साबित कर चुका है कि दूसरे देशों के मामलों में टांग अड़ाना उसके खून में है। चीन में इतना सब कुछ करने का साहस केवल और केवल उसकी आर्थिक और सैन्य शक्ति से ही आता है, और इसीलिए बाकी देशों के लोगों को चीन का उदय भा नहीं रहा है।

इसके अलावा चीन अपने महत्वकांक्षी BRI प्रोजेक्ट के माध्यम से भी दूसरे देशों पर अपनी धाक जमाने की कोशिश करता आया है। चीन मालदीव, पाकिस्तान और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पहले ही BRI के माध्यम से हाईजैक कर चुका है। आप इस ग्राफ की मदद से इन देशों पर चीन के आर्थिक प्रभाव को समझ सकते हैं।

और सिर्फ मालदीव और श्रीलंका ही नहीं, आर्थिक तौर पर कमजोर दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जिन्हें चीऩ अपने कर्ज़ जाल में फंसाकर उनपर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करता रहा है। ऐसे देशों का नाम हैं जिबुती, किर्गिस्तान, लाओस, मालदीव, मंगोलिया, मोंटेनेग्रो और कजाकिस्तान। इन देशों ने यह अनुमान तक नहीं लगाया कि कर्ज से उनकी प्रगति किस हद तक प्रभावित होगी। कर्ज नहीं चुकाने की स्थिति में ही कर्ज लेने वाले देशों को पूरा प्रोजेक्ट उस देश के हवाले करना पड़ता है।

 

अब नेपाल भी धीरे-धीरे चीन के इस जाल में फंसता नज़र आ रहा है। चीन पहले तो छोटे देशों को भारी-भरकम ब्याज दरों पर लोन देता है और जब वे छोटे देश उस लोन को चुका पाने में असमर्थ हो जाते हैं तो चीन वहाँ पर जमीन लीज़ पर ले लेता है और इसी तरह वह अपनी सीमाओं को बढ़ाने के एजेंडे को आगे बढ़ाता है।

इसके अलावा जिस तरह चीन बाकी सभी देशों के लोकतान्त्रिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाने की कोशिश करता है, उसकी वजह से भी चीन की छवि को बेहद नुकसान पहुंचा है। अभी कुछ दिनों पहले ही यह खुलासा हुआ था कि चीन ऑस्ट्रेलिया की संसद में अपने एक जासूस को प्लांट करने की जद्दोजहद में लगा है और चीन इस लोकतान्त्रिक देश में अपने खूफिया नेटवर्क को मजबूत करने में लगा है।

ऑस्ट्रेलिया की खूफिया एजेंसी के पूर्व चीफ़ डंकन ल्यूइस ने अपने हाल ही के इंटरव्यू में एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा था कि चीऩ ऑस्ट्रेलिया की राजनीति में अपना प्रभाव जमाना चाहता है और इसके लिए वह बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों को चंदा दे रहा है। डंकन ने यह भी कहा था कि चीऩ ऑस्ट्रेलियाई मीडिया पर भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशें कर रहा है, और ऐसा करके वह ऑस्ट्रेलिया की संप्रभुता और इस देश के लोकतन्त्र के लिए बड़ी चुनौती पेश कर रहा है।

यही सब कारण है कि अब चीन के तानाशाह रवैये से बाकी सभी देशों के लोग तंग आ चुके हैं और इसीलिए अब उनका चीन और शी जिनपिंग से विश्वास उठ चुका है।

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