जबसे हैदराबाद का जघन्य अपराध खुलकर सामने आया है, तबसे पूरे देश में आक्रोश की एक लहर उमड़ पड़ी है। अधिकांश देशवासी अपराधियों के लिए कठोर से कठोरतम दण्ड की मांग कर रहे हैं, तो कुछ अवसरवादी लोग इस घटना का उपयोग अपने विषैले एजेंडे को फैलाने में कर रहे हैं। कई लोग तो ऐसे हैं, जो भारत को महिलाओं के लिए नर्क बताते फिर रहे हैं। परंतु अभिनेत्री रानी मुखर्जी ने इस विषय पर बड़ा ही सधा हुआ और सुलझा हुआ विचार प्रस्तुत किया है। अपनी फिल्म ‘मर्दानी 2’ के प्रोमोशन के दौरान रानी ने एक साक्षात्कार में कहा-
“मेरे फिल्म की हेडलाइन होनी चाहिए ‘महिलाओं को सतर्क बनाओ‘। हमें घटनाओं से अंधे होकर निर्णय नहीं लेना चाहिए। हमें चाहिए कि हम सतर्क हों और इस समस्या का सामना करें।‘’
इसी दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या ये देश उनके जैसे महिलाओं के लिए सुरक्षित है या नहीं, तो रानी ने दो टूक जवाब दिया-
“विश्व में ऐसे बहुत से देश हैं जहां महिलाएं सुरक्षित नहीं रह पाती हैं। आप किसी देश पर ट्रेडमार्क नहीं लगा सकते कि यह सुरक्षित है या असुरक्षित”।
जिस फिल्म उद्योग में आय दिन कई हस्तियां ये दावा ठोंकती हैं कि भारत महिलाओं के रहने योग्य नहीं है, वहां पर रानी मुखर्जी का यह बयान न केवल उचित है, बल्कि प्रतीकात्मकता के समय में व्यावहारिकता की राह दिखाता है। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब रानी ने ऐसी व्यावहारिकता दिखाई हो।
पिछले वर्ष जब फिल्म क्रिटिक राजीव मसन्द ने अभिनेत्रियों के लिए एक राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था, तो वहां पर रानी मुखर्जी ने महिला सुरक्षा के मुद्दे पर कहा था,
“एक महिला होने के नाते मैं मानती हूँ कि आपको अंदर से सशक्त होना चाहिए। आपको अपने आप में विश्वास होना चाहिए, कि यदि आपको ऐसी स्थिति का सामना कर आया, तो आप ऐसे लोगों को मुंहतोड़ जवाब दे सकें। आपको अपने आप की रक्षा करने का साहस होना चाहिए”। इसके अलावा उन्होंने कहा, “अब आप किसी मां को नहीं समझा सकते कि अपने बच्चे कैसे पाले। महिलाओं को किसी पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें हर समस्या से निपटने के लिए सक्षम होना चाहिए, और सभी विद्यालयों में कन्याओं के लिए सेल्फ डिफेंस की क्लास अनिवार्य होनी चाहिए“।
परंतु इस व्यावहारिक विचार के लिए रानी की प्रशंसा करने के बजाए वहीं उपस्थित अभिनेत्रियों ने न केवल उनकी आलोचना की, बल्कि उन्हें अपमानित करने का भी प्रयास किया। इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी रानी के विरोध में काफी प्रोपेगैंडा पोस्ट किया गया। यही हमारे देश की विडम्बना है, कि समस्या तो सबको दिखाई देती है, पर अगर कोई समाधान सुझाए तो उसे अपशब्द बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
रानी मुखर्जी की भांति जब हैदराबाद के कांड पर फिल्म निर्देशक संदीप रेड्डी वंगा ने दण्ड की कठोरता बढ़ाने का सुझाव दिया, तो उनकी सराहना करने के बजाए उन्हें हर प्रकार के अपशब्द सुनाये गए, क्योंकि संदीप ने कबीर सिंह की सफलता के बाद मानवीय रिश्तों पर बिना लाग लपेट के अपने विचार प्रस्तुत किए, जो कुछ तथाकथित समाज के ठेकेदारों के गले नहीं उतर पायी।
ऐसे में रानी मुखर्जी का विचार न केवल प्रशंसनीय है, अपितु स्वागतयोग्य भी है। कठुआ केस में सनातन धर्म को बदनाम करने वाले बॉलीवुड के एलिट लोग हों, या फिर पद्मावत फिल्म की आलोचना में यौन शोषण को बढ़ावा देने वाले लोग हों, उन सभी के लिए रानी मुखर्जी का यह बयान किसी ठंडी हवा के झोंके से कम नहीं है।
जो समस्याएं गिनाता रहता है उसे कोई नहीं पूछता, लोग उसी को पूछते हैं जो समस्याओं का सटीक समाधान बताता है।