HRD मंत्रालय ने TISS के प्रोफेसर की 2 करोड़ रुपये के घोटाला को किया एक्सपोज

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक पूर्व-संयुक्त सचिव और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के एक प्रोफेसर द्वारा राष्ट्रीय भ्रष्टाचार मुक्त शिक्षा अभियान (RUSA) के कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से संपर्क किया है।

Indian express रिपोर्ट के अनुसार, TISS में सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी एंड गवर्नेंस, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड लेबर स्टडीज के चेयरपर्सन और RUSA के समन्वयक बी वेंकटेश कुमार ने 2 करोड़ रुपये के फंड को गलत तरीके इस्तेमाल किया, जबकि इशिता रॉय जो कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव थी, उन्होंने ‘आधिकारिक काम’ के नाम पर अपने और दो बच्चों की यात्राओं पर 23 लाख रुपये खर्च किए।

बता दें कि RUSA को लागू करने के लिए TISS को समन्वय एजेंसी के रूप में चुना गया था और संस्थान में एक प्रोफेसर बी वेंकटेश कुमार को राष्ट्रीय समन्वयक बनाया गया। कुमार ने 2 करोड़ रुपये के घोटाले को सही ठहराने के लिए 1.26 करोड़ रुपये के हस्तलिखित टैक्सी बिल जमा किए। उन्हें 27 जुलाई, 2019 को रूसा समन्वयक के पद से हटा दिया गया था और घोटाला सामने आने के बाद, TISS ने उन्हें अगस्त 2019 में कारण बताओ नोटिस जारी किया था।

वहीं इशिता रॉय, जो जुलाई 2019 तक एचआरडी और RUSA के राष्ट्रीय मिशन निदेशक में अधिकारी थीं, उन्होंने ने विदेश में निजी पारिवारिक यात्राओं में RUSA के 23 लाख रुपये खर्च किए। ज्ञात रहे कि पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने RUSA पर हर साल लगभग 1,500 करोड़ रुपये खर्च किए।

इस घोटाला एक बार फिर academia और bureaucracy में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया है। बी वेंकटेश कुमार एक बहुत प्रभावशाली बुद्धिजीवी हैं और वे नियमित रूप से उच्च शिक्षा में सुधारों पर समाचार पत्रों में लिखते रहते हैं।

हालांकि, यह सोचने वाली बात है कि लेफ्ट लिबरल गैंग ने पर्दे के सामने अपनी छवि साफ सुथरी बना रखी है लेकिन पर्दे के पीछे वे टैक्स चोरी करने वालों, money launderers, sexual predators, के रूप में व्यवहार करते हैं। यदि उनके व्यक्तिगत व्यवहार घोटालों और पूर्वाग्रहों से भरे हुए हैं, तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे देश की को ‘सही’ कहानी बताएंगे। दिलचस्प बात यह है कि जब वे उनके खिलाफ कुछ कानूनी कार्रवाई की जाती है तो विलाप करने लग जाते हैं।

यह तो सभी को पता है कि भारतीय शैक्षणिक प्रतिष्ठान किस प्रकार से भ्रष्ट है, और इन लोगों को कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने सम्मानित भी किया था। कांग्रेस सरकार के समय की नौकरशाही लॉबी का प्रभाव सर्वविदित है। केंद्र में भले ही सरकार बदल गयी लेकिन academia और bureaucracy प्रतिष्ठानों में अभी भी वही है। बौद्धिक वर्ग कहा जाने वाला मीडिया, लेखकों और शिक्षाविदों- ने यूपीए सरकार के 10 वर्षों के दौरान स्वर्णिम काल का आनंद लिया। उन्हें विदेशों की यात्रा पर भेजा जाता था, और autonomy के नाम पर उन्हें संस्थानों के वित्तीय पहलु का भार भी दे दिया जाता था। इससे उन्हें भ्रष्टाचार करने व्यक्तिगत लाभ लेने का आसानी से मौका मिला वह भी ‘professional work’ के नाम पर।

जैसा कि अनुभवी पत्रकार तवलीन सिंह ने India’s Tryst with Destiny में लिखा है कि, 10 जनपथ (सोनिया गांधी का घर) की एक यात्रा किसी भी पत्रकार का डीएनए बदल सकती है। यूपीए सरकार के 10 वर्षों में बौद्धिक वर्ग ने खूब भोग किया। अब जब से मोदी सरकार ने सत्ता संभाला है तब से इस वर्ग के हौसले पस्त है और उन्हें वह मजा नहीं मिल रहा है जो उन्हें UPA के शासन काल में मिला था। लेकिन अभी भी मोदी सरकार नौकरशाह और शिक्षा जगत के Deep state की सफाई नहीं कर पायी है। और व्यक्तिगत लाभ के लिए बौद्धिक वर्ग आधिकारिक पदों पर आसीन हो जाता है। सरकार को इस ओर भी कार्य करने की आवश्यकता है।

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