टाटा को लगा एक और झटका, आयकर विभाग अब करेगा टाटा ट्रस्ट को मिले विदेशी धन की जांच

टाटा ट्रस्ट

टाटा ट्रस्ट की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। हाल ही में आयकर विभाग ने नवाजबाई रतन टाटा ट्रस्ट को मिलने वाले विदेशी दान की जांच करने का आदेश दिया है। ये आदेश तब जारी किया गया है जब टाटा ट्रस्ट ने पहले ही अपना चैरिटेबल ट्रस्ट का स्टेटस हटाने का आश्वासन दिया था। हाल ही में टाटा के 6 ट्रस्ट्स का पंजीकरण रद्द किया गया था, जिसमें नवाजबाई रतन टाटा ट्रस्ट यानि एनआरटीटी भी शामिल है। टाटा ग्रुप के होल्डिंग कंपनी टाटा ग्रुप में टाटा ट्रस्ट्स की भागीदारी सबसे ज़्यादा 66 प्रतिशत है।

दिसंबर 2015 में नवाजबाई रतन टाटा ट्रस्ट (एनआरटीटी) ने एफसीआरए यानि Foreign Contribution Regulation Act की धारा 11 [1] के अंतर्गत विदेशी दान अथवा चंदा लेने के लिए आवेदन किया। परंतु ट्रस्ट ने अपना ट्रस्ट स्टेटस फरवरी 2015 में ही छोड़ दिया था। FCRA को लिखे आवेदन पत्र में ट्रस्ट ने एनआरटीटी की गतिविधियों का न केवल उल्लेख किया, बल्कि यह भी बताया की इस ट्रस्ट की स्थापना 1974 में रतन टाटा की दादी, लेडी नवाजबाई रतन टाटा की याद में किया गया था।

परंतु यह समस्या क्यों उत्पन्न हुई? अब अगर लीगल दृष्टिकोण से देखा जाये, तो इनकम टैक्स एक्ट की धारा 12 ए के अनुसार किसी भी ट्रस्ट या एनजीओ, जो इस धारा के अंतर्गत पंजीकृत है, इनकम टैक्स देने को बाध्य नहीं होता। परंतु एनआरटीटी ने फरवरी 2015 में अपना ट्रस्ट स्टेटस छोड़ दिया था और दिसंबर 2015 में अपने आवेदन पत्र में उन्होंने इसका उल्लेख तक नहीं किया। हालांकि, इस पर सफाई देते हुए टाटा ट्रस्ट्स के प्रवक्ता कहते हैं, “क्योंकि ट्रस्ट आईटी एक्ट की धारा 12 ए के अंतर्गत पंजीकृत था, इसलिए हमने इस बात का उल्लेख करना आवश्यक नहीं समझा”।

पिछले कुछ समय से टाटा ट्रस्ट्स को आयकर विभाग की कार्रवाई से दो चार होना पड़ा है। 1970 के मध्य में छह टाटा ट्रस्ट्स का पंजीकरण हुआ था, जब इन्दिरा गांधी का टैक्स टेररिज़्म पूरे ज़ोर पर था। जैसा पहले बताया था, टाटा संस का 66 प्रतिशत इन्हीं ट्रस्ट्स द्वारा चलाया जाता है। परंतु 2013 की कैग (CAG ) रिपोर्ट की माने तो टाटा ट्रस्ट्स को टैक्स में असामान्य छूट दी गयी थी, और कंपनी ने ‘अनावश्यक निवेश प्रणाली’ में 3139 करोड़ रुपये का निवेश किया था। इससे देश के राजकोष को 1066 करोड़ रुपये का नुकसान भी हुआ।

सीएजी की रिपोर्ट के बाद टाटा ट्रस्ट्स ने 2015 में एक आवेदन पत्र दायर किया था, जिससे वह अपना चैरिटेबल ट्रस्ट का स्टेटस छोड़ दें। परंतु उनकी मुसीबतें वहीं नहीं खत्म हुई। मामला संसद के पब्लिक अकाउंट्स कमेटी को भेजा गया, जिसने सिद्ध किया कि टाटा ट्रस्ट्स 1973 से ही अवैध प्रणालियों के माध्यम से निवेश कर रही थी।

टाटा ग्रुप ने धीरे-धीरे अपने लिए एक पहचान स्थापित की है। इसे उद्योग के मानवीय चेहरे के तौर पर देखा जाता है। परंतु वर्तमान टैक्स समस्या से टाटा ट्रस्ट्स की छवि को एक ऐसा धक्का पहुंचा है, जिसे उबरने में उन्हें काफी समय लगेगा। देश में टाटा को सबसे विश्वसनीय औद्योगिक ग्रुप्स में से एक माना जाता है, परंतु ऐसे आरोपों से उनकी छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, और जनता का विश्वास भी टाटा ग्रुप पर कम हो रहा है।

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