असम को फिर से भाजपा को चुनने की जरूरत है लेकिन सर्बानंद नहीं हिमंता होने चाहिए मुख्यमंत्री

हिमंता बिस्वा सरमा

PC: Telegraph India

बोडोलैंड विवाद सुलझे कुछ ही दिन हुए कि केंद्र सरकार ने ULFA (I) के साथ बातचीत को सहमति दे दी है। बोडोलैंड विवाद समझौता पर साइन होने के एक दिन बाद ही असम सरकार के वरिष्ठ मंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने मंगलवार को बताया कि केंद्र सरकार ने उल्फा से वार्ता के लिए हरी झंडी दे दी है। आउटलुक की भी एक रिपोर्ट आयी थी कि उल्फा (इंडिपेंडेंट) के नेता परेश बरुआ केंद्र सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं और यह शांति समझौता इस वर्ष ही अप्रैल महीने में हो सकता है।

अगर यह बातचीत सफल हो जाती है तो यह असम के राजनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। इस उपलब्धि को असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल जरूर अपने हिस्से में करना चाहेंगे लेकिन अगर यह होता है तो इसके असली हकदार हिमंता बिस्वा सरमा हैं।

इससे पहले जब 644 उग्रवादियों ने सरकार के आगे हथियार डाला था तब भी सर्बानंद सोनोवाल वही थे। इससे स्पष्ट समझा जा सकता है कि असम में उग्रवादी संगठनों के साथ जो भी development हो रहा है, उसका श्रेय वह स्वयं लेना चाहते हैं। केंद्र सरकार के CAA पारित करने के तुरंत बाद असम में हिंसा हुई थी और मुख्यमंत्री ने स्थिति को समझे बिना ही सेना को बुला लिया था। उस दौरान 5 लोगों की मौत भी हुई थी। सोनोवाल अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती वर्षों के दौरान AASU से जुड़े थे और असम हिंसा का नेतृत्व भी इसी AASU ने किया था। इस वजह से सोनोवल की छवि काफी धूमिल हुई थी और अब वह ULFA, Bodo जैसे संगठनों से सफल बातचीत का श्रेय लेकर अपनी साख बचाने की कोशिश करेंगे।

परंतु असम में अभी जो भी बदलाव हो रहें है, चाहे वो जमीनी स्तर पर हो या राजनीतिक स्तर, हिमंता बिस्वा सरमा उसके असली वास्तुकार हैं। उनकी लोकप्रियता और समृद्ध प्रशासनिक अनुभव को देखते हुए, वह गृह मंत्रालय के सबसे अच्छे दावेदार थे लेकिन उन्हें और लोकप्रिय होने से रोकने के लिए उन्हें राज्य का वित्त और स्वास्थ्य मंत्रालय दिया गया।

भाजपा के लिए हिमंता बिस्वा सरमा का सिर्फ असम में ही नहीं बल्कि पूर्वोतर के सभी राज्यों में प्रभाव बढ़ता जा रहा है। एक तरफ वह जमीनी स्तर पर लोगों  के बीच दिन दूना रात चौगुना लोकप्रिय होते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ, Bodo और ULFA जैसे संगठनों को बातचीत के लिए राजी करने के लिए कूटनीतिक चाल भी चल रहे हैं।

असम में जब CAA के विरुद्ध हिंसा भड़की थी तब हिमंता बिस्वा सरमा ने मौके पर खड़े हो, एक के बाद एक कई रैलियां आयोजित की। लोगों तक पहुंच कर CAA के बारे में बताया और केंद्र सरकार की बात रखी जिसे लोगों ने स्वीकार भी किया। हिमंता ने असम के लोगों में न सिर्फ राष्ट्रवाद की भावना पैदा की बल्कि भाषा के आधार पर अलगाववाद को बढ़ावा देने वालों को भी परास्त किया। ये हिमंता ही थे जिससे BJP ने CAA विरोधी तत्वों को परास्त किया और लोगों में राज्य से ऊपर राष्ट्र की भावना पैदा की। बोखत में पिछले सप्ताह आयोजित एक संकल्प रैली में, वह भारी भीड़ खींचने में कामयाब रहे। यही नहीं ऊपरी असम के धेमाजी में असम के वित्त मंत्री द्वारा आयोजित धेमाजी की शांति रैली में भी भारी भीड़ जुटी थी।

हिमंत बिस्वा सरमा राज्य में स्पष्ट रूप से भाजपा के संकटमोचक के रूप में उभरे। सीएए को लेकर झूठ को फैलाने में मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मूल निवासियों के समूहों के अलावा असम में सीएए का विरोध करने वालों में AIUDF के सदस्य भी शामिल थे, जिनका उद्देश्य है NRC को किसी भी स्थिति में असम में लागू न होने देना, ताकि बांग्लादेशी घुसपैठियों का वोट बैंक बना रहे। तब इन्हीं भ्रामक खबरों को उजागर करते हुए हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा था, “नागरिकता अधिनियम में संशोधन असम accord की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने के लिए नहीं अपितु उसके अनसुलझे पहलुओं को सुलझाने हेतु किया गया है”। हिमंता बिस्वा सरमा ने विरोधियों पर तंज़ कसते हुए ये भी कहा था कि 90 प्रतिशत विपक्षी विधायकों के पूर्वज बांग्लादेश से आए हैं, तो वे कृपया CAA पर न ही उपदेश दें तो अच्छा! सच कहें तो ये हिमंता बिस्वा सरमा ही थे जिनके कारण भाजपा CAA विरोध के नाम पर हुई हिंसा के बावजूद असम में जनता का समर्थन प्राप्त कर पायी है। असम के इस मंत्री ने असम के लोगों को यह आश्वासन भी दिया है कि 5 लाख से ज़्यादा शरणार्थी असम क्षेत्र में CAA के लिए आवेदन नहीं कर पाएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि कोई नया शरणार्थी बांग्लादेश से नहीं आएगा। यदि तय आंकड़े से ज़्यादा लोगों ने CAA के तहत आवेदन किया, तो वे राजनीति से सन्यास ले लेंगे।

हिमंता ने असम में हिंदू राष्ट्रवाद को भी जागृत किया है जो भाषाई आधार से ऊपर है। यह उनके प्रयासों के कारण भी है कि CAA असम में अधिक से अधिक स्वीकार्य होता जा रहा है। इसका पता उनकी रैलियों में जुटे अपार भीड़ को देख कर लगाया जा सकता है।

CAA के विरुद्ध हिंसा के बाद सोनोवाल की असफलता और हिमंता का मोर्चा संभालना दिखाता है कि राज्य के लोगों के बीच किस मंत्री की कितनी पकड़ है। हिमंता का कद दिन-प्रतिदिन न केवल असम बल्कि पूर्वोतर के अन्य राज्यों में भी बढ़ता जा रहा है। वह गृह मंत्री अमित शाह की तरह ही असम और पूर्वोतर राज्यों को जोड़ने में सफल रहे हैं। उन्होंने BJP के पक्ष को किसी भी अन्य नेता से अधिक मजबूत किया है। इस वजह से असम के 2021 में होने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री के पद के सबसे प्रबल दावेदार हैं। इसे समझते हुए सोनोवाल ULFA के साथ होने वाले समझौते का अधिक फायदा उठाने की कोशिश करने वाले हैं।

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