CAA विरोधियों ने दीपक चौरसिया के साथ धक्का मुक्की की, और लिबरल बेशर्मी के साथ इसका बचाव कर रहे हैं

दीपक चौरसिया पर हुए हमले को उचित ठहराने में जुटे लिबरल

PC: Prabhasakshi

हाल ही में शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शनों ने एक नाटकीय मोड़ लिया, जब घटना की कवरेज करने आए न्यूज़ नेशन के पत्रकार दीपक चौरसिया को न सिर्फ उपद्रवियों ने घेरा, बल्कि उनके क्रू के साथ बदतमीजी करते हुए उनका कैमरा भी छीनने का प्रयास किया।

दीपक चौरसिया ने इस विषय पर वीडियो के साथ ट्वीट करते हुए कहा, सुन रहे हैं कि संविधान ख़तरे में है, सुन रहे हैं कि लड़ाई प्रजातंत्र को बचाने की है! जब मैं शाहीन बाग की उसी आवाज़ को देश को दिखाने पहुँचा तो वहाँ मॉब लिंचिंग से कम कुछ नहीं मिला!”

https://twitter.com/DChaurasia2312/status/1220706690158350338?s=20

इस वीडियो में साफ दिखाई दे रहा है कि दीपक चौरसिया शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन की कवरेज करने के लिए गए थे। इस दौरान वे कह रहे थे, हम उस जगह पर पहुंचे है जहां एक महीने से धरना चल रहा है, और देश ही नहीं पूरी दुनिया को इस धरने ने आकर्षित किया है। हम जानना और समझना चाहते हैं कि सीएए और एनआरसी पर यहाँ के लोगों का दर्द क्या है। हम यह भी जानना चाहते हैं कि कौन से ऐसे मुद्दे हैं जिनपर यहाँ के लोगों को objection है?”

परंतु दीपक यह कवरेज कर ही रहे थे कि प्रदर्शंनकारी तुरंत वहाँ पर पहुँचकर चैनल का कवरेज रोकने में जुट गए। जब दीपक कवरेज करने से पीछे नहीं हटे, तो उपद्रवी प्रदर्शनकारी उनसे हाथापाई करने लगे, और उनके क्रू से भी बदतमीजी करने लगे। उसी समय दीपक से थोड़ी दूरी पर प्रदर्शन की कवरेज कर रहे डीडी न्यूज़ के पत्रकार नितेन्द्र सिंह और उनके क्रू के साथ भी उपद्रवियों ने हाथापाई करने की कोशिश की और उनका कवरेज रोकने का प्रयास किया। इससे क्रोधित हो कर डीडी न्यूज़ के पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने ट्विटर पर अपना आक्रोश व्यक्त किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “शाहीन बाग में आज जब डीडी न्यूज़ हिन्दी की टीम पहुंची तो वहाँ गुंडों ने जबरन कैमरा बंद करा दिया और हमारे रिपोर्टर नितेन्द्र सिंह और वीडियो जर्नलिस्ट प्रमोद के साथ बदसलूकी की। ये ‘शांतिपूर्ण’ प्रदर्शन है? आखिर ऐसा क्या गैरकानूनी काम हो रहा है शाहीन बाग में जो दिखाने से रोका जा रहा है?”

परंतु दीपक चौरसिया के समर्थन में चंद शब्द बोलना तो दूर की बात, मीडिया के वामपंथी वर्ग ने उल्टे दीपक चौरसिया को ही दोषी सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कई पत्रकार तो दीपक पर हुए हमले को उचित ठहराने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया। द प्रिंट की पत्रकार ज़ैनब सिकन्दर ने दीपक पर तंज़ कसते हुए लिखा, “शाहीन बाग तो आपके साथ काफी विनम्र था दीपक चौरसिया” –

इसी तरह मारिया शकील ने दीपक को ही दोषी सिद्ध करते हुए ट्वीट किया, “एक पत्रकार पर हमला करना गलत है और मैं इसकी निंदा करती हूँ। पर हमें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि जो माइक बेजुबानों को आवाज़ देता है, वो लोगों को डराने क्यों लगा? क्यों मीडिया पर लोग विश्वास नहीं करते हैं और वो भी अब इस खतरनाक ध्रुवीकरण का हिस्सा बन रही है?” –

वहीं निधि राज़दान और ध्रुव राठी जैसे लोगों को इस बात की चिंता ज़्यादा थी कि ऐसे हमलों से उनके एजेंडा को क्षति पहुंचेगी। ध्रुव राठी ने ट्वीट कर कहा, “गोदी मीडिया के विरुद्ध नफरत उचित है, परंतु इस तरह का बर्ताव उचित नहीं है। उन्हे तर्क से हराओ, बल या हिंसा से मत डराया करो। ऐसे छोटी घटनाओं के कारण हमारा पूरा अभियान नष्ट हो जाएगा!” –

अब ऐसे में द वायर की रोहिणी सिंह कहाँ पीछे रहती? उन्होंने तो दो कदम आगे बढ़ते हुए ट्वीट किया, “यह सभ्य व्यवहार की ज़िम्मेदारी हमेशा उन नागरिकों पर होती है, जिन्हें मीडिया ने हमेशा दुतकारा है, राक्षस के रूप में दिखाया है और अपशब्द भी सुनाये गए हैं”।

इतना ही नहीं, रोहिणी महोदया का अल्पसंख्यक प्रेम एक बार फिर दिखा, जब उन्होंने ट्वीट किया, “इंडियन मीडिया के एक गुट के बारे आपको ईमानदारी से बताती हूँ। मुस्लिम महिलाएं आंदोलन कर रही हैं। वहाँ जाकर आप उनकी आवाज़ दबाते हो। आप गुंडों की तरह व्यवहार करते हो। आपका इरादा वहाँ रिपोर्टिंग करने का नहीं, आपका इरादा मुसलमानों को डराना और धमकाना था”। –

परंतु जो दीपक चौरसिया के साथ हुआ, वो तो कुछ भी नहीं है। सीएए का विरोध करने वाले लोग कहने को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और लोकतन्त्र के लिए लड़ रहे हैं, परंतु उनके तरीके वास्तव में कितने लोकतान्त्रिक हैं, ये पिछले एक हफ्ते में साफ हो गया। झारखंड में सीएए के समर्थन में निकाली गयी एक शांतिपूर्ण यात्रा पर मार्ग में पड़ रहे एक मस्जिद से न सिर्फ पत्थरबाजी हुई, अपितु रैली के सदस्यों  पर पेट्रोल बॉम्ब भी फेंके गए।

इतना ही नहीं, राजस्थान में एक जनगणना अधिकारी को सिर्फ इस आधार पर पीटा गया, कि वे सीएए और एनआरसी के विषय पर जनगणना करने आई थी। उस महिला अधिकारी को तभी छोड़ा गया था जब उसने कुरान की कुछ आयतें सुनाई। इसी प्रकार से केरल में भी एक जनगणना अधिकारी को भी उपद्रवियों ने सिर्फ इसलिए पीट दिया, क्योंकि उनके अनुसार वो अधिकारी जनगणना करने आई थी।

स्पष्ट है दीपक चौरसिया के साथ हाथापाई कर शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी वास्तव में केवल और केवल अराजकता फैलाकर केंद्र सरकार पर सीएए को हटाने हेतु दबाव बढ़ाना चाहते हैं। शरजिल इमाम जैसे लोग तो आगे बढ़कर ये भी घोषणा कर रहे हैं कि उन्हें समर्थन मिले, तो वे असम को भारत से अलग कर देंगे। ऐसे में दीपक चौरसिया पर हुए हमले को उचित ठहरकार वामपंथी गुट ने एक बार फिर सिद्ध किया कि वे किसके प्रति ज़्यादा वफादार हैं!

 

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