हाल ही में डावोस में आयोजित हो रहे विश्व आर्थिक मंच यानि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक में डोनाल्ड ट्रम्प हिस्सा लेने आए थे। वहां उनकी मुलाक़ात पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान से हुई, जिन्होंने एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाने का प्रयास किया था। परंतु जिस तरह से डोनाल्ड ट्रम्प ने इमरान को लॉलीपॉप पकड़ाया, उससे एक बार फिर सिद्ध हुआ की सार्वजनिक बेइज्जती कराने में मियां इमरान खान नियाज़ी का कोई जवाब नहीं।
हाल ही में WEF की बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इमरान खान के साथ निजी बैठक की, जिसके बाद दोनों पत्रकारों से अपनी चर्चा के कुछ अंश साझा करने लगे। ट्रम्प ने भारतीय उपमहाद्वीप के अपने प्रस्तावित दौरे के बारे में बातचीत करते हुए कहा, ” भारत और पाकिस्तान के बीच जो चल रहा है… अगर हम मदद कर सकते हैं, तो हम निश्चित तौर पर करना चाहेंगे। हमने इस पर बारीकी से नजर बना रखी है और मेरे दोस्त के साथ यहां होना गर्व की बात है।’’ यहाँ पर मेरे दोस्त का सम्बोधन ट्रम्प ने इमरान खान के लिए किया था।
मतलब साफ है, इमरान खान से बातचीत करते वक्त डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर कथित रूप से कश्मीर पर मध्यस्थता करने का ‘सुझाव’ दिया था। ऐसा वे एक या दो नहीं, बल्कि सात बार कर चुके हैं। मजे की बात तो यह है की यह सब पिछले एक वर्ष के अंतर्गत ही हुए हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प ने सर्वप्रथम इस प्रस्ताव 22 जुलाई 2019 को सुझाया था, जब पाक प्रधानमंत्री इमरान खान पहली बार व्हाइट हाउस पधारे थे। इमरान खान के direct appeal पर ट्रम्प महोदय बोले, “यदि मेरी आवश्यकता पड़ी, तो मैं अवश्य मध्यस्थता करने के लिए तैयार हूं। ऐसा नहीं हो सकता कि दो ऐसे देश, जहां के नेतृत्व में काफी दम है, आपसी बातचीत से अपने मतभेद नहीं सुलझा सकते। पर यदि आप चाहते हैं कि मैं हस्तक्षेप करूँ, तो मैं अवश्य करना चाहूँगा”।
परंतु जैसे ही उन्होंने दावा किया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे मध्यस्थता करने की पेशकश की थी, तो विवाद खड़ा हो गया। नई दिल्ली के उच्चाधिकारियों ने तुरंत इस खबर का पुरजोर खंडन किया और बताया कि पीएम मोदी जी ने डोनाल्ड ट्रम्प को कभी भी ऐसे किसी विषय का निपटारा करने के लिए सुझाव नहीं दिया था, और साथ ही साथ उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है, जिसमें किसी तीसरे व्यक्ति या संगठन के मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं है।
पर ट्रम्प भला कहाँ मानने वाले थे। 1 अगस्त, 26 अगस्त, 29 अगस्त, 9 सितंबर, 23 सितंबर, 25 सितंबर और अब 21 जनवरी को उन्होंने मध्यस्थता की कई बार पेशकश की लेकिन हर बार उनके शब्दों के चुनाव में मामूली अंतर रहता था, परंतु उद्देश्य केवल एक था।
परंतु डोनाल्ड ट्रम्प भी भली भांति जानते हैं कि इमरान खान के साथ किसी भी प्रकार का समझौता करना किसी भी स्थिति में अमेरिका के लिए हितकारी नहीं होगा। पाकिस्तान जिस तरह से इस्लामिक कट्टरपंथ और आतंकवाद को बढ़ावा देता है, वो किसी से छुपा नहीं है।
आखिर इसके पीछे वजह क्या है? जब डोनाल्ड ट्रम्प ने पहली बार यह सुझाव दिया था, तब भारत ने उन्हे आड़े हाथों लिया था, और इसके लिए ट्रम्प को खूब खरी खोटी भी सुननी पड़ी थी। अगस्त में ही जी7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जब पीएम मोदी फ्रांस के दौरे पर गए थे, तो उन्होंने ट्रम्प से मुलाक़ात के दौरान स्पष्ट बताया कि कश्मीर पर ‘किन्तु’ ‘परंतु’ की कोई गुंजाइश नहीं है, जिसके बाद ट्रम्प को भी कहना पड़ा कि कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा ही है।
स्पष्ट है हर बार डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘मध्यस्थता’ का सुझाव देकर इमरान खान को केवल लॉलीपॉप पकड़ाया है, जिसका वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। इस बात की पुष्टि उनके WEF से संबन्धित प्रेस रिलीज़ से ही पता चल जाता है, जहां इमरान खान या कश्मीर का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इमरान खान की कह के लेने में पीएम मोदी तो उस्ताद हैं ही, और अब लगता है ट्रम्प ने भी पीएम मोदी की तरह इमरान खान को ट्रोल करना सीख लिया है।