एक दूसरे का गुणगान करने वाले पाकिस्तान और खालिस्तानियों की दोस्ती में अब दरार पड़ रही है

खालिस्तान ISI

(PC: Hindustan Times)

पाकिस्तान में स्थित गुरु नानक देव के जन्मस्थान से 2 जनवरी को कुछ बेहद ही भयानक तस्वीरें सामने आई थी। मुसलमानों की हिंसक भीड़ ने गुरुद्वारा को घेरते हुए जमकर पत्थरबाजी की। इस भीड़ की अगुवाई करने वाले एक दंगाई ने ये भी कहा कि इस स्थान पर बसे हर सिख को यहाँ से न सिर्फ भगाया जाएगा, बल्कि गुरुद्वारे को तोड़कर नगर का नाम ‘ग़ुलाम ए मुस्तफा’ रखा जाएगा इस घटना ने न सिर्फ पाकिस्तान के कट्टरपंथी स्वभाव को उजागर किया है, बल्कि इसने ISI द्वारा वित्तपोषित खालिस्तानियों और उनके रेफरेंडम 2020 गैंग की भी पोल खोल दी है। इससे यह भी पता चलता है कि पाकिस्तान के ISI और इन खालिस्तानियों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

ISI ने इस तरह से सिखों के सबसे पवित्र स्थल पर हमला कर ना सिर्फ सिखों को आक्रोशित किया है, बल्कि अपने अपने सहयोगी खालिस्तानी सहयोगियों को भी नाराज कर दिया होगा। इस हमले से अब कट्टर सिख और खालिस्तान की मांग करने वाले पाकिस्तान और ISI की इस हरकत से जरूर नाराज होंगे।

अभी तक ISI और खालिस्तान का साथ चोली-दामन का साथ रहा है। एक तरफ खालिस्तान को अपने एजेंडे को चलाने के लिए फंडिंग की जरूरत होती है जो ISI से पूरी होती है। वहीं ISI को अपने भारत विरोधी अभियान को चलाने के लिए खालिस्तानियों की आवश्यकता है इस वजह से यह दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। पंजाब में आतंकवाद की शुरूआत तब हुई थी जब 1978 में अकाली सिखों और निरंकारी समर्थकों के बीच भिड़ंत हुई थी। तब से लेकर रेफरेंडम 2020 तक ISI और खालिस्तानी की सांठगांठ सभी को पता ही है। यह तब से ही शुरू है जब से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने खालिस्तान मूवमेंट शुरू करने वाले जगजीत सिंह चैहान के साथ अपनी वार्ता के दौरान ननकाना साहिब को खालिस्तान की राजधानी बनाने का प्रस्ताव दिया था।

अब ISI ने सिखों के सबसे पवित्र स्थान नानकाना साहिब पर हमला किया है ये स्थल गुरु नानक देव का जन्मस्थान हैं। यहां इस तरह की सिख विरोधी हरकत से इन दोनों के बीच जरूर दरार पड़ सकती है। खालिस्तान की मांग ही धार्मिक आधार पर राज्य की मांग से है जिससे पता चलता है कि वे अपने धर्म को लेकर कितने अधिक दृढ़ हैं। पहले भी उन्होंने सिख के हिन्दू धर्म के अंदर गिने जाने का भी विरोध कर चुके हैं। इस तरह से अब अगर उनके मूवमेंट के मूल तत्व पर ही ISI हमला करेगा तो अवश्य ही इन दोनों के बीच रिश्तों में दरार पड़नी तय है।

नानकाना साहिब पर हमला किसी युद्ध के उकसावे से कम नहीं है जो पाकिस्तान ने की है। भारत में जब पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलवाया था। इस ऑपरेशन से सिख काफी नाराज़ हुए थे। इंदिरा गांधी के इस ऑपरेशन के कारण अकाल तख्त के कुछ हिस्सों को नुकसान पहुंचा था, इससे सिखों की भावना काफी आहत हुई थी। इसके बाद उनके सिख अंगरक्षक सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने उनकी हत्या भी कर दी थी।

अभी तक ये खालिस्तानी चीख-चीख कर भारत में सिखों पर हो रहे कथित अत्याचारों के बारे में बताते रहते हैं, पर पाकिस्तान में सिखों पर वास्तव में हो रहे अत्याचारों पर ऐसे मौन धारण करते आए हैं, मानो उनकी ज़ुबान को लकवा मार गया हो। परंतु अब जब गुरु नानक देव के जन्म स्थल से ही उन्हें भगाने की धमकी दी जाय तो यह समझना चाहिए कि जिसके लिए वे इतने दिनों तक पाकिस्तान का साथ दे रहे वही उनका इस्तेमाल कर रहा है।

पूर्व आईएसआई प्रमुख हामिद गुल ने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो को कहा था, “मैडम, पंजाब को अस्थिर बनाए रखना पाकिस्तान की सेना के एक अतिरिक्त डिविजन को नियुक्त करने के बराबर है। खालिस्तानी पंजाब राज्य में अशांति फैलाने की पाकिस्तानी रणनीति का शिकार होकर पाकिस्तान और आईएसआई के हाथों का मोहरा बन चुके हैं और यह उन्हें अब शायद समझ आए।

भारत एकमात्र ऐसा देश है जो सिख समुदाय की न केवल बात करता है बल्कि उसकी देखभाल करता है। ननकाना साहिब में सिख तीर्थयात्रियों पर जानलेवा हमला स्पष्ट करता है कि सिखों के प्रति पाकिस्तान और ISI कितने सहिष्णु है। पाकिस्तान यूं तो खालिस्तान का समर्थक बना फिरता है, लेकिन सिख धर्म के खिलाफ अपने अत्याचारों से भी नहीं रुकता। सिख समुदाय के हित वास्तव में उनके लिए कोई मायने नहीं रखते। अब यह हमला ISI और खालिस्तानियों के बीच चले आ रहे सांठ-गांठ में दरार डालेगा और साथ ही ISI के द्वारा की गई रेफरेंडम 2020 की सजिस के भी गहरा धक्का है।

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