जानी-मानी इतिहासकर और राजनीतिज्ञ डॉ मीनाक्षी जैन का नाम भी उन 118 व्यक्तियों में शामिल है जिन्हें पद्म श्री, यानि भारत के चौथे सबसे उच्च नागरिक पुरस्कार से नवाज़ा गया है। यूं तो उन्हें ये इनाम पहले ही मिल जाना चाहिए था, लेकिन अब उन्हें यह सम्मान मिलना इसीलिए अति-महत्वपूर्ण है क्योंकि अब से कुछ महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्म भूमि मामले में अयोध्या में राम मंदिर बनाने के रास्ते को साफ किया है।
डॉ मीनाक्षी जैन को खासतौर पर राम मंदिर से जुड़े अध्ययनों के लिए जाना जाता है, जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर के पक्ष में दलीलें मजबूत हो सकीं थी। राम मंदिर के ऊपर उनकी दो किताबें यानि ‘राम और अयोध्या’ और ‘द बैटल फॉर राम’ को पढ़े बिना उनके इस योगदान को समझा नहीं जा सकता है। ‘राम और अयोध्या’ में उन्होंने संभवतः अपने अनुभव और साहित्य कौशल का भरपूर इस्तेमाल किया है। अपना मत रखने के साथ-साथ इस किताब में उन्होंने तथ्यों और सबूतों को काफी प्राथमिकता दी है।
इस किताब में आप भगवान राम, रामजन्म भूमि मामले और अयोध्या से जुड़े कई तथ्यों को देख सकते हैं। इसमें भारत के कई प्राचीन ग्रन्थों के सदर्भ में भगवान राम और अलग-अलग समय में अयोध्या के बारे में पूरी जानकारी दी हुई है, और ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ इस बात का खंडन किया गया है कि भगवान राम कोई काल्पनिक चरित्र नहीं थे।
वामपंथी इतिहासकारों ने शुरू से ही भगवान राम और और वाल्मीकि रामायण को कमतर आंकने की कोशिश की है। उन्होंने सदैव बुद्ध और जैन रामायण को प्राथमिकता दी है, क्योंकि उनके मुताबिक वाल्मीकि रामायण त्रुटियों से भरी पड़ी है। वो ये दावा करते हैं कि भगवान राम की पूजा 18वीं और 19वीं शताब्दी का प्रचलन है जो असल में पूरी तरह आधारहीन है। ‘राम और अयोध्या’ में उन्होंने बताया है कि कैसे संस्कृत विद्वानों के लेखों के आधार पर यह आसानी से साबित किया जा सकता है कि भगवान राम की पूजा 18वीं या 19वीं शताब्दी का प्रचलन नहीं है। संस्कृत विद्वानों के मुताबिक ईसा पूर्व में भी राम कथा के प्रवचन सुनाये जाते थे और वाल्मिकी रामायण बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थी।
अपनी किताब में उन्होंने जन्मभूमि विवाद पर भी काफी फोकस किया है। उन्होंने बताया है कि कैसे जन्मभूमि पर शुरू से ही एक छोटा राम मंदिर रहा था जहां पर हर राम नवमी और दिवाली पर मेले लगते थे। ये दोनों त्योहार लगभग 6 महीने के अंतराल में आते हैं। उन्होंने इस बात का उल्लेख भी किया है कि कैसे वहां मस्जिद के रखवालों को मस्जिद के लिए किसी अन्य जगह जमीन आवंटित कर दी गयी थी और उससे होने वाले रेवेन्यू को उसी मस्जिद के रखरखाव पर खर्च किया जाता था। उन्होंने यह भी लिखा है कि मस्जिद में कोई आता-जाता नहीं था और सिर्फ शुक्रवार को ही वहां पर सफाई की जाती थी।
अपनी किताब में उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि कैसे देश के तथाकथित इतिहासकारों ने मीडिया में और कोर्ट में अलग-अलग दलीलें पेश की। उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट की 5 हज़ार पेजों की जजमेंट को पढ़ा और खुलासा किया कि जहां एक तरफ मीडिया में ये वामपंथी इतिहासकर राम मंदिर होने की बात से इंकार करते थे, तो वहीं कोर्ट में वे अपने आप को इस मामले पर अज्ञान होने का दावा करते थे।
Legal docs are boring
Left historians are liars
Ram Janm Bhumi is THE most important case for dharmics.
So wat happened wen 3 got combined?— Yellow (@PeeliHaldi) March 5, 2017
उन्होंने खुलासा किया था कि कैसे चार प्रख्यात इतिहासकारों- आरएस शर्मा, डीएन झा, सूरजभान और अतहर अली को अदालत ने ‘लापरवाह और गैर-जिम्मेदाराना बयान’, ‘उचित जांच की कमी’ और ‘आत्मविश्वास को प्रेरित करने में विफलता’ जैसे कारणों को आधार बनाकर विशेषज्ञ के तौर पर मान्यता देने से मना कर दिया था। इन सभी को दिल्ली स्थित देश की लिबरल मीडिया ने सालों तक महिमामंडित किया, और उनके दावों को खूब रिपोर्ट किया।
मीनाक्षी जैन ने अपनी किताबों में विपक्ष के उस दावे का भी खंडन किया है जिसमें वे बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए किसी राम मंदिर को नहीं ढाहने का दावा करते हैं। 18वीं और 19वीं शताब्दी के इतिहासकारों के संदर्भ में उन्होंने यह दावा किया है कि कैसे फारसी और अरबी भाषाओं के लेख में राम मंदिर का उल्लेख था, और कैसे बाबर ने राम मंदिर को तोड़ने के आदेश दिये थे। किसी एक भी किताब में इसके उलट बात नहीं लिखी मिलती है।
डॉ मीनाक्षी जैन और उनकी किताबें एक बार फिर चर्चा का विषय बनी हुई हैं क्योंकि अब उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। हालांकि, उनकी अन्य किताबों, जैसे “Flight of Deities and Rebirth of Temples” को इतनी लाइमलाइट नहीं मिल पाई है। इसमें उन्होंने बताया है कि कैसे 800 वर्षों के एक लंबे कालखंड में असंख्य मंदिरों को तोड़ा गया था। इसमें लिखा गया है कि कैसे मंदिरों को आक्रांताओं ने तोड़ा, और फिर उन्हें दोबारा निर्मित किया गया, और फिर उन्हें तोड़ दिया गया।
अपनी किताबों में डॉ मीनाक्षी जैन ने बेहद विस्तृत रिसर्च पर फोकस किया है। वे ऐतिहासिक तथ्यों को मजबूत सबूतों के साथ पेश करने की कला में निपुण हैं जो उन्हें सबसे अलग बनाता है। पद्म श्री को सम्मानित करना एक नए युग की शुरुआत कहा जाएगा क्योंकि ऐसा करके हमने सच्चे इतिहासकारों को सम्मानित किया है।