अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में गरीब बच्चों को आरक्षण नहीं दिया जाता, अब ये बदलने वाला है

लगता है ये सरकार लिबरलों को चैन से कभी नहीं सोने देगी

हमारे देश में माइनॉरिटि संस्थान यानि अल्पसंख्यकों के संस्थान को संविधान में एक अलग श्रेणी में रखा गया है। अनुच्छेद 30 के सेक्शन 1 के तहत इन संस्थानों को कई छूट प्राप्त है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 में दी गयी छूट, जिसके तहत इन अल्पसंख्यक संस्थानों पर 6 से 14 वर्ष तक के गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान लागू नहीं होता है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने इस अधिनियम में दी गयी छूट पर फिर से विचार करने का फैसला किया है।

एक नए फैसले में केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक संस्थानों का आकलन करने के लिए एक कवायद शुरू की है। इसका मकसद यह पता लगाना है कि क्या अल्पसंख्यक संस्थानों को गरीब बच्चों को पढ़ाने की अनिवार्यता से छूट देकर ईसाई और मुस्लिम समुदायों के बच्चों की मदद हो रही है या नहीं?

द न्यू इंडिया एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस रिसर्च को मानव संसाधन विकास मंत्रालय फंड करेगा। National Commission for Protection of Child Rights निजी एजेंसियों के माध्यम से यह अध्यन्न कराएगा, जिसके आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी। इन रिपोर्ट्स के आधार पर मदरसों और मिशनरी स्कूलों के लिए किए गए विशेष प्रावधानों को समाप्त किया जा सकता है।

आरटीई 2009 के अनुसार सभी निजी स्कूलों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना अनिवार्य है। हालांकि, अल्पसंख्यक संस्थानों को राजस्थान उच्च न्यायालय और बाद में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने के बाद प्रावधान से छूट दी गई थी।

इससे पहले भी शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की राष्ट्रीय सलाहकार समिति ने वर्ष 2018 में अपनी एक रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि मदरसों और मिशनरी स्कूलों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया जाए। इस 28 सदस्यीय समिति ने सुझाव दिया था कि अल्पसंख्यक संस्थान जिस अधिनियम की धारा 15 (5) के तहत छूट लेते हैं, उसमें संशोधन किया जाना चाहिए।

बता दें कि भारत के संविधान 15 (5) में यह लिखा है कि आर्टिकल 15 का कोई नियम राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोक सकता। यह विशेष प्रावधान सभी निजी शैक्षणिक संस्थानों सहित उन शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश से संबंधित हैं, जो राज्य से मदद पाते हैं या नहीं। लेकिन, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अलावा जो अनुच्छेद 30 के खंड (1) में उल्लेखित हैं, वे इसके दायरे में नहीं आते हैं।

संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार,

(1) किसी भी वर्ग के नागरिकों को अपनी संस्‍कृति सुरक्षित रखने, भाषा या लिपि बचाए रखने का अधिकार है।

(2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

इस तरह से इन दोनों ही अनुच्छेद के वजह से अल्पसंख्यक संस्थान अभी तक अनुच्छेद 21 A, जो भारतीय संविधान में 86 वें संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा जोड़ा गया, से बचते आए हैं।

यह जो अध्ययन होगा उसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं:

  1. अल्पसंख्यक स्टेट्स वाले स्कूलों की संख्या और नामांकित बच्चों का Quantitative analysis
  2. कम से कम 5 राज्यों के कम से कम 35 जिलों में सर्वेक्षण
  3. अल्पसंख्यक बच्चों की शिक्षा पर संविधान के अनुच्छेद 21A के संबंध में अनुच्छेद 15 (5) के प्रभाव पर विश्लेषण, व्याख्या और निष्कर्ष

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस रिपोर्ट के आने के बाद सरकार क्या कदम उठाती है। नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 के अनुसार छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए इसे एक मौलिक अधिकार के रूप में निर्धारित किया गया है। साथ ही गरीब तबके के लिए सभी प्रकार के स्कूलों में 25 प्रतिशत गरीब बच्चों के लिए सीटें आरक्षित रखने के प्रावधान भी है, लेकिन अल्पसंख्यक का स्टेटस लिए संस्थान इसे लागू करने से बचते रहे हैं। अब इस अध्ययन के माध्यम से इन सभी संस्थानों की भी समीक्षा की जाएगी और उन्हें भी इस कानून के दायरे में लाने का प्रयास किया जाएगा।

 

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