‘हॉस्टल में मिला आउट साइडर तो छात्रों पर होगी कार्रवाई’, जेएनयू प्रशासन

जेएनयू

अब जेएनयू में अधेड़ उम्र के फ्रीलोडर्स और अनधिकृत रूप से रह रहे बाहरी लोगों की नहीं चलेगी। हाल ही में विश्वविद्यालय प्रशासन ने सभी होस्टल्स की सिक्योरिटी ऑडिट कराने का निर्णय लिया है, जिसके अंतर्गत वसंत कुंज [उत्तर] के थाना प्रभारी को निर्देश दिया गया की विश्वविद्यालय होस्टेल्स में रह रहे बाहरी लोगों पर विशेष ध्यान रखा जाये।

विद्यार्थियों के डीन उमेश कदम ने सभी वरिष्ठ हॉस्टल वार्डेन से एक नोटिस चस्पा करने का आवेदन किया था, जिसमें कहा गया है कि उन सभी विद्यार्थियों के विरुद्ध कार्रवाई होगी, जिनहोने अनधिकृत रूप से किसी बाहरी विद्यार्थी / अतिथि को अपने हॉस्टल में अनाधिकारिक रूप से रहने दिया हो, और ऐसे विद्यार्थियों की जानकारी पुलिस थाने में भी फॉरवर्ड की जाएगी।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि कई विद्यार्थियों ने इस विश्वविद्यालय में एक दशक से ज़्यादा समय बिताया है। एक से ज़्यादा मास्टर्स की डिग्री करनी हो या पीएचडी के लिए हॉस्टल में सात से आठ वर्ष बिताने हो, जेएनयू में ये बड़ी आम बात है। ये इसलिए भी यहाँ के विद्यार्थियों के लिए फायदेमंद है क्योंकि यहाँ हर चीज़ का दाम आम मूल्यों से बेहद सस्ता है। यहाँ कैंटीन का खाना और हॉस्टल फीस इतनी सस्ती है कि कोई जेएनयू में केवल 5000 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से जेएनयू में बड़े आराम से अपना समय व्यतीत कर सकता है। इसीलिए यदि व्यक्ति केवल वीकेंड पर भी काम करे, तो उसे अपने अभिभावकों से दक्षिणी दिल्ली के पॉश इलाके में रहने के लिए अतिरिक्त धन की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

परंतु जेएनयू में फ्रीलोडर्स की यह संस्कृति पिछले एक दो वर्षों की नहीं है, बल्कि पाँच दशकों से विद्यमान है। कुछ विद्यार्थी अपने रूम बाहरी लोगों को एक मोटी रकम के एवज में किराए पर देते हैं। चूंकि जेएनयू दक्षिणी दिल्ली के बेहद पॉश इलाके में स्थित है, इसलिए कई ऐसे विद्यार्थी भी सामने आते हैं, जो अपने उन दोस्तों को अपने कमरे में रुकवाती है, जो संस्था के विद्यार्थी नहीं है, परंतु यूपीएससी, बैंक परीक्षा इत्यादि के लिए तैयारी करते हैं।

जेएनयू भारत के उन चंद विश्वविद्यालयों में से है जहां अभी भी कार्ल मार्क्स की तूती बोलती है। मार्क्सवाद को भले ही पूरी दुनिया ठुकरा चुकी हो, परंतु जेएनयू के दीवार आज भी लाल सलाम के संदेशों से भरे हुए हैं। कैम्पस में आज भी लाल सलाम, लाल सलाम कॉमरेड के नारे गूँजते है। जेएनयू कम्युनिस्ट विचारधारा का समर्थन करने वाले विद्यार्थियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है।

यहीं पर आप ऐसे नारे लगा सकते हो, जो भारत में कोई भी समझदार व्यक्ति स्वीकार नहीं करेगा। चाहे वह लाल सलाम हो, वी शैल फाइट हो, वी शैल विन हो, ब्राह्मणवाद हो बरबाद हो, या फिर भारत की बरबादी तक जंग रहेगी जैसे नारे ही क्यों न हो, ये केवल जेएनयू के प्रांगण में ही आपको सुनाई दे सकते हैं।

जेएनयू का विद्यार्थी संघ का जेएनयू की शैक्षणिक प्रक्रिया में बाधाएँ डालना कोई नई बात नहीं है। इन फ्रीलोडर्स का एक ही उद्देश्य है कि किसी भी स्थिति में कोई भी काम न होने देना। परंतु उनकी सपनों की दुनिया उनके संस्थान से बाहर कभी नहीं निकल पाती, क्योंकि यह दुनिया वैसी कभी नहीं हो सकती जैसे जेएनयू के यह विद्यार्थी चाहते हैं।

 

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