पूर्वांचली वोट बैंक तो बस एक मिथक है, वास्तविकता तो कुछ और है, पर ये भाजपा से संबंधित नहीं

केजरीवाल

PC: AajTak

देश की राजधानी दिल्ली में 8 फरवरी को चुनाव होने हैं और राजनीतिक जानकारों के अनुसार इन चुनावों में फिर से केजरीवाल बाजी मार सकते हैं। दिल्ली के चुनावों में शुरू से ही पूर्वांचली और पंजाबी वोटर्स का प्रभाव रहा है और माना जाता है कि यही लोग तय करते हैं कि दिल्ली की कुर्सी पर कौन बैठेगा। पूर्वांचली लोगों का दिल्ली की 2 करोड़ आबादी में लगभग एक चौथाई हिस्सा है और इसके साथ ही दिल्ली की लगभग 30 से ज़्यादा सीटों पर इन वोटर्स का प्रभाव है।

इसीलिए कुछ लोग भाजपा की ओर से मनोज तिवारी को मैदान में उतारने की बात भी कह रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे बिहार होने के कारण पूर्वांचली लोगों के वोट्स को आकर्षित कर पाएंगे। लेकिन पूर्वांचली और पंजाबी वोट बैंक के इस समीकरण में एक बड़ा फैक्टर है जिसे कई राजनीतिक पंडित ध्यान में नहीं रखते हैं। जो ये पूर्वांचली वोट बैंक है, यह खुद भी यादव-नॉन यादव, दलित, स्वर्ण और धर्म-जाति के आधार पर बंटा हुआ है और यह एकमुश्त होकर किसी के लिए वोट नहीं करता है। इस गणित को कोई और समझे ना समझे, लेकिन इन समीकरणों को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बखूबी समझते हैं, और यही कारण है कि इस बार भी उन्हें ही मुख्यमंत्री का मजबूत दावेदार माना जा रहा है।

अब आपको हम दिल्ली के वोटर्स और खासकर पूर्वांचल के वोटर्स के वोट करने के तरीके को बताते हैं, कि कैसे वे जाति और धर्म के आधार पर अपनी-अपनी मनपसंद पार्टी को वोट करते हैं। दिल्ली में रहने वाले यूपी और बिहार के यादव वोटर्स अक्सर भाजपा को वोट नहीं करते हैं। इसके अलावा नॉन यादव वोटर्स में दलित वोटर्स मायावती और इसके साथ ही भाजपा को वोट करते हैं। यानि दलित वोट्स BSP और BJP के बीच बंट जाते हैं। इसके अलावा नॉन यादव और  गैर दलित, यानि स्वर्ण और OBC वोट बैंक अधिकतर भाजपा के लिए वोट करते हैं, लेकिन केजरीवाल की बेदाग छवि होने की वजह से इस श्रेणी के नौजवान वोटर्स आम आदमी पार्टी का समर्थन करते हैं। कुल मिलाकर पूर्वांचल के कुछ स्वर्ण और OBC वोट्स ही भाजपा के पक्ष में आ पाएंगे जिसकी वजह से भाजपा पिछली बार भी चुनावों में हारी थी और अब भी उसकी स्थिति कमजोर मानी जा रही है।

यही कारण है कि अगर भाजपा मनोज तिवारी के साथ सीएम पद के लिए चुनाव लड़ती है, तो शायद ही उसे कोई सफलता हाथ लगे। मनोज तिवारी एक स्टार तो हैं, लेकिन जातीय समीकरण वे फिट नहीं बैठते। उन्हें सिर्फ इसलिए तो वोट नहीं मिलने वाले क्योंकि वे पूर्वांचली हैं। उनका दिल्ली के लोगों से वो जुड़ाव नहीं है और ना ही वे चुनावी लिहाज से इतने आकर्षक हैं। पूर्वांचली वोटर्स को लुभाने के लिए दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी पहले ही पूरी तैयार कर रही है और यह आप उसकी कैंडिडैट लिस्ट देखकर पता लगा सकते हैं । इमरान हुसैन, सोमनाथ भारती, संजीव झा, ऋतुराज और विनय मिश्रा जैसे नेताओं के जरिए आम आदमी पार्टी द्वारा पूर्वांचल को साधने की कोशिश की गई है।

अब अगर बात पंजाबी वोटर्स की की जाये, तो ये वोटर्स आमतौर पर उनका समर्थन करते हैं, जो सरकार मुफ्त की योजनाएँ और समाजवादी नीतियों का अनुसरण करने में विश्वास रखती हैं। अभी तक दिल्ली की आप सरकार लोगों को मुफ्त पानी, बिजली देकर यह स्पष्ट कर चुकी है कि उनकी सरकार समाजवादी नीति अपनाने में ही विश्वास रखती है जिसके कारण पंजाबी वोटर्स उनका समर्थन कर सकते हैं। दूसरी तरफ भाजपा के पास तो कोई ऐसा चेहरा भी नहीं है जो वोटर्स को आकर्षित कर सके। कभी भाजपा के पास मदनलाल खुराना और जगदीश मुखी जैसे नेता हुआ करते थे, जो वोटर्स को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होते थे, लेकिन आज हरदीप सिंह पुरी जैसे नेता ऐसा करने में अक्षम ही साबित होंगे क्योंकि कहीं ना कहीं उनमें वोटर्स को अपने दम पर आकर्षित करने की क्षमता नहीं है।

केजरीवाल इस गणित को बेहतर तरीके से जानते हैं और इसी कारण उन्होंने अपने प्रत्याशियों की सूची में इतने पूर्वांचली लोगों को जोड़ा है। पूर्वांचली वोटर्स के समीकरण को केजरीवाल बखूबी समझते हैं जिसने एक बार फिर उनको मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है।

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