महाराष्ट्र की राजनीति आजकल देशभर के राजनीतिज्ञों के लिए चर्चा का विषय बनी हुई है। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन कर पहले ही कई पुराने समीकरणों को तोड़ चुकी है और नए समीकरण बना चुकी है। हालांकि, अब भाजपा भी राज्य में अपने नए साथी की तलाश में जुट गयी है और इस जद्दोजहद में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानि MNS के नेता राज ठाकरे का राज्य की राजनीति में उदय देखने को मिल सकता है। दरअसल, कल यानि बुधवार को MNS नेता राज ठाकरे और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के बीच डेढ़ घंटे मुलाकात हुई। इसके बाद अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि हमें MNS और भाजपा के बीच गठबंधन देखने को मिल सकता है।
बता दें कि शिवसेना ने जब से कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिलाया है, तभी से वह अपनी उस विचारधारा से किनारा कर चुकी है जिसके आधार पर पार्टी के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे ने पार्टी की नींव रखी थी। शिवसेना ने सेक्युलर रुख अपनाकर महाराष्ट्र में मराठा मानुष की भावनाओं को आहत किया है और अब राज ठाकरे इस भावना का सम्मान कर महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पार्टी की पकड़ को मजबूत करेंगे। दरअसल, हाल ही में जिस तरह शिवसेना ने कई मुद्दों पर यू-टर्न मारते हुए कांग्रेस और NCP की भाषा बोली है, उसने शिवसेना के कट्टर हिन्दुत्ववादी समर्थकों को कुंठित कर दिया है, जिसके कारण अब MNS जैसी पार्टी के लिए उदय के अच्छे समीकरण बन गए हैं।
इस बात को MNS प्रमुख राज ठाकरे भी अच्छी तरह समझते हैं। उन्हें पता है कि भाजपा के साथ जाने से ना सिर्फ वे लोकप्रिय नेता पीएम मोदी के नाम पर लोगों से वोट मांग सकेंगे, बल्कि शिवसेना के समर्थक भी इस पार्टी शिवसेना के अच्छे विकल्प के तौर पर स्वीकार कर लेंगे। इसीलिए राज ठाकरे ने पार्टी के झंडे में भी बदलाव करने का निर्णय लिया है। चर्चा यह है कि राज ठाकरे अपनी पार्टी के झंडे का रंग भगवा करने जा रहे हैं। वर्तमान में MNS के झंडे में तीन रंग हैं– केसरिया, हरा और नीला। पार्टी के ऑफिशल ट्विटर से भी पुराने झंडे की तस्वीर को हटा दिया है। यानि हिंदुओं को लुभाने की कोशिश राज ठाकरे ने अभी से शुरू कर दी है।
भाजपा से अलग होने के बाद शिवसेना ने कई मौकों पर अनपेक्षित रुख अपनाया है। अपने आदर्शों के ठीक विपरीत पहले शिवसेना की उद्धव सरकार ने भीमा कोरेगांव के उपद्रवियों को छोड़ने का निर्णय लिया, इसके बाद इस सरकार ने ईसाई संगठनों की अवैध गतिविधियों को भी अनदेखा कर रही है। कभी ऐसे संगठनों को महाराष्ट्र से उखाड़ फेंकने की बात करने वाली शिवसेना अचानक सत्ता के नशे में चूर होकर इन्हीं गतिविधियों पर आंखें मूंदे कर बैठी हुई है। बालासाहेब ठाकरे के आदर्शों का मखौल उड़ाते हुए उद्धव दिन ब दिन महाराष्ट्र को गर्त में धकेलने पर तुले हुए हैं।
सत्ता में आए उद्धव सरकार को एक हफ्ता भी नहीं हुआ था कि मुंबई मेट्रो के आरे वन क्षेत्र स्थित मेट्रो शेड के काम पर रोक लगा दी गयी। बुलेट ट्रेन का काम भी अधर में लटका दिया गया है। इतना ही नहीं, जिस तरह से बाला साहब के सुपुत्र उद्धव ठाकरे विकास कार्यों को रोक रहे हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि वे मुंबई को उसी 90 के दशक वाले जमाने में ले जाना चाहते हैं, जिसमें अपराध और अराजकता चरम पर था। जिस विचारधारा के खिलाफ उनके पिता बालासाहब ठाकरे ने जीवनभर वैचारिक लड़ाई लड़ी थी, आज उनके पुत्र उसी विचारधारा को आगे बढ़ाने पर तुले हुए हैं। इसी कारण अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही MNS पार्टी को नया जीवन मिलने की उम्मीद मिल गयी है।
बता दें कि MNS शिवसेना की तरह ही हिन्दुत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़ती आई है। वर्ष 2014 में पार्टी ने पीएम मोदी का भी समर्थन किया था। हालांकि, वर्ष 2019 में राज ठाकरे ने भाजपा की आलोचना की थी। वर्ष 2009 में पार्टी को राज्य के चुनावों में 13 सीटें मिल पायी थीं। वहीं वर्ष 2014 के चुनावों में पार्टी को 1 सीट ही मिल सकी थी। इसके अलावा इस वर्ष के चुनावों में भी पार्टी को 1 ही सीट मिली थी। अब माना जा रहा है कि भाजपा के साथ आकर MNS अपने आप को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर सकती है। इससे ना सिर्फ भाजपा को शिवसेना का एक सही विकल्प मिल जाएगा, बल्कि MNS भी राज्य की राजनीति में बड़ी भूमिका निभा सकेगी।