हाल ही में चर्चित फिल्म समीक्षक पोर्टल फिल्म कंपेनियन ने एक वीडियो ट्विटर पर शेयर की। ये वी़डियो जल्द ही वायरल भी हो गई। इस वीडियो में फिल्म समीक्षक अनुपमा चोपड़ा सैफ अली खान का इंटरव्यू ले रही हैं, जो अपने आगामी फिल्म ‘जवानी जानेमन’ और अपने करियर के बारे में कुछ निजी बातें भी साझा करतो हुए नजर आये।
इसी दौरान जब तान्हाजी के इतिहास पर अनुपमा ने सैफ की राय जाननी चाही, तो सैफ अली खान ने कहा, “मैं नहीं मानता कि जो तान्हाजी में दिखाया गया है, वो वास्तविक इतिहास है”। परंतु पटौदी के नवाब यहीं नहीं रुके, उन्होंने यहाँ तक कह दिया, “मैं नहीं मानता कि अंग्रेज़ों से पहले इंडिया जैसे देश का कोई अस्तित्व नहीं हुआ करता था”। बता दें कि अनुपमा चोपड़ा ने ‘तान्हाजी’ के लिए नकारात्मक समीक्षा की थी, जिसके लिए उन्हें और फिल्म कंपेनियन को सोशल मीडिया पर बहुत ट्रोल किया गया था।
बस फिर क्या था, तान्हाजी के इतिहास को गलत साबित करने के लालायित वामपंथी मीडिया को मानो अपने फेक न्यूज़ की तोप के लिए भरपूर बारूद मिल गया, और उन्होंने सैफ से यहां तक कहलवा दिया कि तान्हाजी एक खतरनाक विचारधारा को बढ़ावा दे रहा है।
सत्य तो यह है कि इस इंटरव्यू से सैफ अली खान ने यही सिद्ध किया है कि वे इतिहास के परिप्रेक्ष्य में कितने अज्ञानी हैं। कहने को वे उन्हीं के शब्दों में ‘हिस्ट्री बफ़’ हैं, पर उन्हें ये भी नहीं पता कि एक राष्ट्र के तौर पर भारतवर्ष का इतिहास बहुत पुराना है। कभी जम्बूद्वीप, कभी आर्यावर्त, तो कभी भारतवर्ष के नाम से प्रसिद्ध भारत की अगर आधुनिक इतिहास के तौर पर बात करें, तो एक अखंड राष्ट्र के तौर पर सबसे पहले इसकी कल्पना आचार्य चाणक्य ने की थी, और अपने जीते जी उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता से अखंड भारत के इस स्वप्न को साकार भी किया था। अब अपने बेटे का नाम तैमूर रखने के पीछे के इनके लॉजिक के बारे में हम जितना कम कहें, उतना ही बेहतर।
भारत पर अनेकों बार हमले हुए, लेकिन अनेकों बार इसकी स्वतन्त्रता हेतु देश के कोने कोने से कई मतवाले अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए आगे आए, चाहे वो अनंतदेव गजपति हो, कपिलेन्द्र देव रौत्रेय हो, वीर हम्मीर सिंह सिसोदिया हो, महाराणा प्रताप हो, छत्रपति शिवाजी महाराज हो, गुरु गोबिन्द सिंह हो, या फिर वीर लाचित बोर्फुकान ही क्यों न हो, भारत की स्वतन्त्रता की लड़ाई 1857 में ही पहली बार नहीं लड़ी गयी थी।
अब बात करते हैं तान्हाजी में दिखाये गए इतिहास की, तो एक मूवी में थोड़ी बहुत cinematic लिबर्टी लेना स्वाभाविक है। परंतु तान्हाजी भारत के उन चुनिन्दा फिल्मों में गिनी जाएगी, जहां वामपंथियों और इस्लामी कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए देश के मूल इतिहास और संस्कृति के साथ छेड़छाड़ नहीं की गयी है। स्वयं अजय देवगन और ओम राउत ने कई इंटरव्यू में बताया है कि फिल्म बनाते वक्त उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि ऐतिहासिक तथ्यों से कोई खिलवाड़ न किया जाये।
ओम राउत के अनुसार, “जब आप ऐतिहासिक व्यक्तियों को पर्दे पर रूपांतरित कर रहे हो, तो आपको इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि उनका व्यक्तित्व, उनके विचार और उनकी संस्कृति को आप यथावत रखें। ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए जो उनकी छवि को बिगाड़ दे”।
परंतु सैफ अली खान की हिपोक्रिसी जल्द ही पकड़ी गयी, जब पॉलिटिकल कीड़ा ने सैफ के वर्तमान विचारों को उनके पुराने वीडियो के साथ मिलाकर पोस्ट किया। वीडियो में दिखाया गया है कि फिल्म के रिलीज़ के पहले जब अजय देवगन और सैफ अली खान का इंटरव्यू राजीव मसन्द ले रहे थे, तो उस समय जब अजय देवगन बता रहे थे कि कैसे हमारे इतिहास को अंग्रेज़ों ने मिटाने और कुचलने की कोशिश की थी, तब सैफ अली खान अजय की हाँ में हाँ मिलाई थी। पर फिल्म रिलीज़ होने के बाद ही सैफ ने सुर बदल दिये हैं।
यही नहीं, जब वो अनुपमा चोपड़ा को समझा रहे थे कि तान्हाजी के पीछे का आइडिया ठीक नहीं नहीं है, तो वो यह भी कह रहे थे कि क्योंकि उदय भान का रोल बहुत ही आकर्षक था, इसलिए वो इस फिल्म से जुड़े रहे। कमाल है, ये तो वही बात हो गयी कि गुटखा सिगरेट बेचने वाला कैंसर के दुष्परिणाम गिना रहा हैं।
हालांकि, इस इंटरव्यू में एक अच्छी बात भी थी, जिसे जानबूझकर फिल्म कंपेनियन ने प्रकाशित नहीं किया। सैफ ने यह भी स्वीकार किया कि एक अभिनेता के तौर पर राजनीति पर बिना ठोस जानकारी के कुछ भी नहीं बोलना चाहिए, वरना इसका उल्टा असर अभिनेता या अभिनेत्री के फिल्म के व्यापार पर भी पड़ेगा। कुल मिलाकर सैफ अली खान ने यही सिद्ध किया कि वे न केवल इतिहास के विषय पर बहुत बड़े अज्ञानी है, अपितु उच्चे दर्जे के हिपोक्रेट भी हैं।