बाहुबली आवाज बनने वाले, फिर छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमिका निभाने वाले शरद केलकर लाजवाब एक्टर हैं

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‘अमरेंद्र बाहुबली यानि मैं, माहिष्मती की असंख्य प्रजा और उनके धन, मान और प्राण की रक्षा करूंगा। और इसके लिए अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी तो भी मैं पीछे नहीं हटूंगा। राजमाता शिवगामी देवी को साक्षी मानकर मैं ये शपथ लेता हूं’। बाहुबली2 के हिन्दी संस्करण में जब ये संवाद बोला गया, तो दर्शकों में न केवल उत्साह उत्पन्न हुआ, अपितु कई लोगों में जोश और ऊर्जा का संचार भी हुआ। पर यदि आपको ऐसा लगा हो कि मुख्य अभिनेता प्रभास के संवाद कितने कड़क थे, तो क्षमा कीजिएगा, ये आवाज़ प्रभास की नहीं थी, बल्कि एक ऐसे अभिनेता की थी, जिसका नाम टीवी के कुछ दर्शकों के अलावा शायद ही इससे पहले कोई जानता था। किसे पता था कि यही शरद केलकर आगे चलकर एक ऐसे चरित्र को पर्दे पर जीवंत करेगा, जो कई भारतीयों के लिए किसी आराध्य से कम भी नहीं है।

हाल ही में ओम राउत  द्वारा निर्देशित ‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर’ सिनेमाघरों में प्रदर्शित की गयी है। सूबेदार तानाजी मालुसरे के शौर्य और उनके बलिदान को समर्पित इस फिल्म ने भारत में धूम मचा रखी है, और पहले दो दिन में ही 35 करोड़़ रुपये से ज़्यादा कमा लिए हैं। पटकथा से लेकर सिनेमैटोग्राफी, VFX, संगीत, अभिनय आदि पर दर्शक और कई आलोचक तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।

निस्संदेह अजय देवगन के प्रति हम सभी सूबेदार तानाजी मालुसरे को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए कृतज्ञ है, परंतु जिस तरह शरद केलकर ने मराठा साम्राज्य के जनक और शूरवीर योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमिका निभाई है, वो सराहनीय है उन्होंने परदे पर इस किरदार को जीवंत कर दिया है।

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छत्रपति शिवाजी महाराज यूं तो किसी परिचय के मोहताज नहीं है। पर जैसे फिल्म के प्रोमोशन के दौरान चर्चित सैन्य इतिहासकार एवं लेखक मेजर जनरल जीडी बख्शी ने कहा था, छत्रपति शिवाजी महाराज ने भारतवर्ष को मुग़ल साम्राज्यवाद से मुक्त कराने हेतु एक अहम युद्ध लड़ा, जिसका नेतृत्व वे स्वयं दक्षिण से कर रहे थे, तो पूर्व में अहोम सेनापति लचित बोरफुकान और उत्तर में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह ने किया था।

पर विडम्बना तो देखिये, जिस व्यक्ति ने हमारी मातृभूमि को मुगलों के तांडव से मुक्ति दिलाई, जिस व्यक्ति ने वर्तमान भारतवर्ष के लिए अनेकों आदर्श स्थापित किए, उसे हमारे हिन्दी फिल्म उद्योग में एक सम्मानित चित्रण कभी नहीं मिला। बॉलीवुड में यदि 1952 में आई छत्रपति शिवाजी की फिल्म को छोड़ दें, तो हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज भोंसले को आज तक किसी ने भी बॉलीवुड की ओर से सिल्वर स्क्रीन पर दिखाने का साहस नहीं किया था। यूं तो ‘फर्जंद’ और ‘फत्तेशिकस्त’ में अभिनेता चिन्मय मंडलेकर ने छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमिका को बेहतरीन तरह से आत्मसात किया था, परंतु उनकी लोकप्रियता केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित रही।

पर शरद केलकर ने ‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर’ में छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमिका को न सिर्फ निभाया, बल्कि कई अवसरों पर ऐसा लगा मानो स्वयं उनमें छत्रपति शिवाजी महाराज की अप्रतिम छवि झलक रही थी। मराठा सम्राट जैसा रौबदार व्यक्तित्व हो, तानाजी को कोंढाणा दुर्ग पुनः प्राप्त करने के लिए अभियान पर भेजने में उनकी असहजता को दिखाना हो, या फिर शत्रुओं का संहार कर स्वराज्य की स्थापना करनी हो, छत्रपति शिवाजी महाराज के रूप में शरद केलकर पूरी तरह से छा गये। जब उन्होंने तानाजी की मृत्यु पर ‘गढ़ आला पण सिम्हा गेला’ दोहराया, तो उनके साथ मानो फिल्म देखने गये सभी दर्शकों का गला भी भर आया।

अब छत्रपति शिवाजी महाराज को बॉलीवुड में आगे कौन पर्दे पर जीवंत करता है, इसका उत्तर तो भविष्य के गर्भ में है, पर इतना तो हमें अवश्य मालूम है कि जो कोई भी छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमिका निभाएगा, उसे शरद केलकर द्वारा स्थापित किए गये बेंचमार्क पर खरा उतारने का प्रयास अवश्य करना होगा।

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