‘अब मचाओ हल्ला!’ CAA पर भारत सरकार का विरोध करने वाले लिबरलों पर स्वामी ने किया तथ्यों से प्रहार

स्वामी सुब्रमण्यम

भारत में CAA के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में काफी जगह दी जा रही है। रूस के आधिकारिक सरकारी न्यूज़ चैनल रशिया टुडे ने तो यहां तक खबर चलाई कि भारत के 200 मिलियन मुसलमान इस कानून के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। पूरी दुनिया में मीडिया का एक खास वर्ग भारत के इस कानून को इस तरह प्रदर्शित कर रहा है मानो भारत द्वारा उठाया गया यह कदम सबसे अनोखा और विवादित है। असल में तो इस कानून की तारीफ की जानी चाहिए क्योंकि यह पड़ोसी देशों के पीड़ित लोगों को न्याय देने का काम करता है, लेकिन विश्व की लिबरल मीडिया द्वारा इस कानून को मुस्लिम विरोधी बताकर बेवजह विवाद खड़ा किया जा रहा है। अब स्वामी सुब्रमण्यम ने ऐसे ही लोगों को दुनिया के अन्य उदाहरणों से आईना दिखाने का काम किया है।

स्वामी सुब्रमण्यम ने अपने ट्वीट्स के माध्यम से बताया कि भारत के अलावा रूस और हंगरी जैसे देश भी धर्म के आधार पर ऐसे ही नागरिकता देने की बात कर चुके हैं, लेकिन उसपर कभी किसी ने हल्ला नहीं मचाया। उन्होंने एक ट्वीट करते हुए लिखा ‘दिल्ली के एक अखबार के मुताबिक, हंगरी के पीएम ने घोषणा की है कि केवल ईसाइयों को अपने देश में रहने की अनुमति दी जाएगी। हंगरी मुस्लिम प्रवासियों को अनुमति नहीं देगा। कोई हल्ला मचाएगा?’

इस बात में किसी को कोई शक नहीं है कि हंगरी ईसाई शरणार्थियों के अलावा किसी अन्य धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान नहीं करता है। परंतु आज तक किसी भी देश की मीडिया ने इस खबर को हाईलाइट नहीं किया, क्योंकि दुनियाभर की मीडिया के लिए तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही पंचिंग बैग है।

इसके अलावा स्वामी सुब्रमण्यम ने पुतिन को लेकर भी एक ट्वीट किया जिसके माध्यम से उन्होंने बताया कि कैसे रूसी नागरिकों के मन में दुनियाभर में मारे जा रहे इसाइयों को लेकर सहानुभूति जागृत होती है। उन्होंने लिखा ‘यह रोचक है कि अब पुतिन ने भी कहा है कि मिडिल ईस्ट में मुसलमानों के हाथों मारे जा रहे इसाइयों को देखकर रूसी नागरिकों की आँखों में आँसू आते हैं’।

इन दो देशों के अलावा दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका का प्रशासन भी कुछ सालों पहले ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देने में प्राथमिकता देने की बात कह चुका है। वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने कहा था कि वे अन्य देशों में धर्म के आधार पर पीड़ित इसाइयों को नागरिकता प्रदान करने में प्राथमिकता देंगे।

स्पष्ट है कि धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों को नागरिकता देना का कोई नया प्रचलन नहीं है, बल्कि सब देश अपने अधिकार के तहत अपने मुताबिक एक खास श्रेणी बनाकर लोगों को नागरिकता देने के नियम तय करते हैं। सभी देशों के पास यह तय करने का अधिकार है कि वह किसे अपनी नागरिकता देगा और किसे नहीं। ऐसे में भारत सरकार के खिलाफ चलाए जा रहे प्रोपेगैंडे को लेकर स्वामी सुब्रमण्यम  ने जो ट्वीट किए हैं, वे काफी सटीक हैं और दुनियाभर के लिबरलों का इसका जवाब ज़रूर देना चाहिए।

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