ओह! क्या जली है, NDTV और Indian express के Tanhaji के critical review पर हंसी आती है

पढ़ते वक्त कानों में गाना बजना चाहिए “रा रा रा रा रा रा रा रा घमंड कर”

अजय देवगन

(PC: Times of India)

Tanhaji: The Unsung Warrior फिल्म ने रिलीज़ होते ही हमारे देश की लिबरल गैंग को तगड़ा झटका पहुंचाया है, क्योंकि इस फिल्म में मराठा की शान को पूरे गौरव के साथ दिखाया गया है। इस फिल्म के ट्रेलर के लॉंच होने के बाद से ही इस फिल्म के खिलाफ एजेंडा चलाया जा रहा है, क्योंकि लिबरलों के चहेते मुग़लों की इस फिल्म में जमकर बजाई गयी है। इसी से समझ में आता है कि लेफ्ट और लिबरल गैंग से जुड़े NDTV और द क्विंट जैसे न्यूज़ पोर्टल ने आखिर इस शानदार फिल्म को इतना घटिया रिव्यू कैसे दिया है।

NDTV के लिए रिव्यू लिखते हुए साइबल चटर्जी ने लिखा “इस फिल्म को देखना आँखों के लिए सही है, दिमाग के लिए नहीं’। आगे उनके रिव्यू में लिखा है “तान्हाजी मालुसरे को एक अति-नैतिक पुरुष की तरह दिखाना, जिसने स्वराज के लिए अपनी शादी की है, फिर उसी बात को साबित करता है कि कैसे बॉलीवुड आजकल हिन्दू-मुस्लिम इतिहासिक कथाओं का गुलाम बन चुका है। फिल्म में भगवा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है, और यह समझ में भी आता है क्योंकि भगवा मराठाओं की शान था, लेकिन बार-बार उनके विरोधियों को शैतान और दरिंदा कहकर संबोधित करने से हम अपने 350 साल पुराने इतिहास की कई सच्चइयों से मुंह मोड रहे होंगे”। साफ है कि फिल्म में भगवा के शक्ति प्रदर्शन ने साइबल चटर्जी को बड़ी पीड़ा पहुंचाई है, जिन्हें शायद पद्मावत फिल्म में रणवीर सिंह और शाहिद कपूर से कोई समस्या नहीं थी।

इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखते हुए शुभ्रा गुप्ता ने अपने रिव्यू में लिखा है “अभी बॉलीवुड में हम इतिहास को गौरव के साथ प्रस्तुत करने और क्रांतिकारी धुनों में इतना फंस चुके हैं कि फिल्म में विरोधियों को ‘बाहरी मुस्लिम’ बोल देना भी रोचक विषय बन जाता है। फिल्म में आपको यह तय करना ही होता है: या तो आप हमारी तरफ हैं या हमारे खिलाफ”। देखा आपने, कैसे इस फिल्म को भी शुभ्रा गुप्ता ने हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से देखा। ऐसे ही शुभ्रा गुप्ता ने पानीपत फिल्म पर भी अपनी पीड़ा को जाहिर किया था, क्योंकि उसमें मराठाओं की शान को दिखाया गया था।

कम्युनिस्ट के मुखपत्र कहे जाने वाले द क्विंट ने Tanhaji के खिलाफ नफरत के तहत दो-दो लेख लिखे। फिल्म पर इस्लामोफोबिक होने का भी आरोप लगाया गया है। द क्विंट के लिए लिखते हुए स्तुति घोष इस फिल्म को लिंगभेदी भी घोषित कर देती हैं। वे लिखती हैं “यह दिखाता है कि कैसे इस विश्व में पुरुषों का बोलबाला रहा है और महिलाओं को सिर्फ दोयम दर्जे के रोल ही दिये जाते हैं। काजोल को Tanhaji की आज्ञाकारी पत्नी की तरह दिखाना और नेहा शर्मा के लिए उदयभान की पिपासा इसी बात का उदाहरण है”।

इसी तरह मेघनाद बॉस अपने रिव्यू में इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यह बॉलीवुड की सबसे नई इस्लामोफोबिक फिल्म है। वे लिखते हैं “अजय के चरित्र को इस तरह दिखाया गया है कि कैसे उनके जानवरों को “उनके”(मुग़लों) द्वारा चुरा लिया जाता है, और कैसे उनका जीना ना जीने के समान है, और यहाँ तक फिल्म में बोला गया है :खुल के जय श्री राम भी नहीं बोल सकते। फिल्म में बार बार हिन्दू-मुस्लिम के एजेंडे को दिखाया गया है। लेकिन क्या 1670 का कोंधाणा का युद्ध धर्म के आधार पर लड़ा गया था? और क्या यह ज़मीन के लिए लड़ा गया युद्ध था? क्या इसका धर्म से कोई संबंध था? युद्ध वैसे भी दो हिंदुओं में लड़ा गया था”। इतना ही नहीं, मेघनाद बॉस ने तो इस फिल्म के संगीत को भी धर्म से जोड़कर दिखा दिया। वे लिखते हैं “फिल्म के गानों में भी चरित्रों के धर्म को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है। फिल्म के हीरो और धर्म की सकारात्मकता को जोड़ कर दिखाया गया है। इसके बाद फिल्म देखने वाले लोगों के मन में अपने आप धार्मिक जुड़ाव उत्पन्न हो जाता है। ऐसा दिखाया गया है कि मानो वे ही सच के लिए लड़ रहे हैं, सिर्फ वे ही सही हैं। इस तरह देखने वालों के मन में यह विचार आता है कि स्क्रीन पर कोई धर्म युद्ध छिड़ा हुआ है”। यह कुछ नहीं बल्कि कम्युनिस्टों का प्रोपेगैंडा है।

उधर टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स ने फिल्म की प्रशंसा की है। यहां तक कि आलोचना करने वालों ने भी फिल्म में ड्रामा, एक्शन और परफॉर्मेंस को लेकर फिल्म की तारीफ ही की है। समस्या यहां है कि यह फिल्म एक वास्तविक इतिहासिक घटना पर आधारित है। समस्या विचारधारा की है। समस्या यह है कि मुग़लों की आलोचना की गयी है और मराठा की शान को दिखाया गया है। यही वजह है कि Tanhaji के खिलाफ कांग्रेस ने भी मोर्चा संभाला है और इसकी विरोधी फिल्म छपाक को कांग्रेस शासित राज्यों में टैक्स-फ्री कर दिया गया है। फिल्म के अच्छे होने के साथ-साथ एक कारण यह भी हो जाता है कि आपको इस फिल्म को अवश्य देखना चाहिए।

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