चलिये अपने आप से एक सवाल पूछते हैं। ज़रा कल्पना कीजिये अगर केंद्र में कांग्रेस की सरकार होती, और साथ ही यह भी कल्पना कर लीजिये कि मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग और JNU जैसी संस्थाओं पर लेफ्ट विंग का नहीं बल्कि राइट विंग का अधिक प्रभाव होता। अब कल्पना कीजिये कि मात्र पब्लिसिटी के लिए किया गया यह स्टंट ‘राइट-विंग इकोसिस्टम’ द्वारा किया गया होता। उस स्थिति में शायद मुद्दे अलग होते, या बिल्कुल विपरीत होते। लेकिन क्या आप सोचते हैं कि दीपिका पादुकोण ने उस स्थिति में भी इस मौके को हाथ से जाने दिया होता?
वो वहां तब भी जाती। अपने आप को भ्रम में मत डालिए। JNU में दीपिका की मौजूदगी का विचारधारा से कोई लेना देना नहीं है। बॉलीवुड मूर्खों द्वारा, मूर्खों का और मूर्खों के लिए ही विद्यमान उद्योग है। जिन मामलों पर बोलने में थोड़ी सी भी अक्ल लगानी हो, ऐसे मुद्दों में इनकी समझ धुंधली ही नज़र आएगी। इन्हें कठपुतली की तरह कुछ पेशेवर लोगों द्वारा कंट्रोल किया जा रहा होता है, जिनका मकसद होता है: पैसा और पब्लिसिटी, और उसके लिए वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं।
मैं भी तब हैरान था, जब मैंने सुना कि दीपिका पादुकोण JNU में दिखाई दी हैं। मीडिया उन्हें ऐसे दिखा रही है मानो देशभर के उच्च कोटि के सभी कलाकारों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है, लेकिन यह हम भी जानते हैं कि ये लोग कूड़े के ढेर से ज़्यादा और कुछ नहीं। असली स्टार्स कहाँ हैं? खान, बच्चन, देवगन और करण जौहर जैसे दिग्गज आखिर कहां हैं? इस मामले को लेकर केवल उन्हीं क्रांतिकारी लोगों के बयान सामने आए हैं जो अपनी कला से ज़्यादा ‘पॉलिटिकल एक्टिविज़्म’ के लिए सुर्खियां बटोरते हैं। बॉलीवुड के असली स्टार्स तो बड़ी ही चालाकी से आज भी अपने काम पर ही लगे हुए हैं, जिनके पास स्वरा भास्कर जैसे कलाकारों के मुक़ाबले खोने के लिए बहुत ज़्यादा है। लेकिन यह सब तब बदल गया जब दीपिका पादुकोण जैसी स्टार JNU पहुंची।
वो वहां केवल कुछ मिनटों के लिए ही गयी थीं। उन्होंने शायद ही कुछ बोला होगा, जिससे शायद कुछ लोगों को तकलीफ ज़रूर हुई होगी जो उन्हें वहां देखकर उत्साहित हो गए थे। उनकी एक फिल्म आने वाली है। फिल्म आने वाली हो, तो सुर्खियां भला कौन नहीं बंटोरना चाहता? उधर मीडिया को भी तो मसाला चाहिए होता है। मीडिया, जो केवल बड़े शहरों की चुनिन्दा जगहों पर ही सारा ध्यान लगाए रहती है, और पुरानी तरह की खबरों को ही लोगों को सुना-सुना कर उनके कान पका रही होती हैं, उसके लिए दीपिका पादुकोण का JNU में जाने की खबर तो मानो ज़्यादा TRP की गारंटी समान थी। दीपिका पादुकोण को कंट्रोल करने वाले कुछ पेशेवर भी शायद इसी बात में विश्वास रखते हैं कि पब्लिसिटी हमेशा अच्छे के लिए होती है, और इस बात में तो कोई शंका ही नहीं कि दीपिका पादुकोण को जमकर पब्लिसिटी मिली।
लेकिन यहां एक बात सोचने वाली है। क्या आपको लगता है कि दीपिका पादुकोण ने CAA को पढ़ा होगा? क्या आपको लगता है कि JNU मामले से संबन्धित वे सभी पहलुओं को समझती होंगी? और क्या आप यह सोचते हैं कि उन्हें पता होगा, उन्हें वहां भेजा क्यों गया था? हम असल में दीपिका पादुकोण की आलोचना गलत कारणों से कर रहे हैं। हम उनकी राजनीति को लेकर उनपर निशाना साध रहे हैं, जबकि यहां कोई राजनीति तो है ही नहीं। हाँ, हम उनके इस बेकार पब्लिसिटी स्टंट को लेकर उनकी भर्त्सना अवश्य कर सकते हैं, जिसका मकसद सिर्फ पैसा कमाना था। हालांकि, इस बात को लेकर उनकी आलोचना करने को मैं सही नहीं समझता।
सच पूछिये तो, मैं JNU में उनकी मौजूदगी को लेकर खुश हूँ। जब उनकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाएगी, और वे करोड़ों कमा चुकी होगी, तो क्या आपको लगता है उन्हें उस लड़की का नाम भी याद रहेगा, जिसके सर पर भारी भरकम पट्टी बंधी हुई थी? क्या वो दोबारा उनके पास जाएंगी और उनके साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ी होंगी? क्या वे उन पत्रकारों को धन्यवाद कहेंगी, जिन्होंने उनके JNU में जाने के बाद बड़े-बड़े लेख लिख डाले थे?
असल में तो लेफ्ट के ecosystem का अपने हितों के लिए इस्तेमाल किया गया है। उनके ढोंग और ड्रामे का इस्तेमाल उन्हीं पर किया गया। खुद लेफ्ट अपने इकोसिस्टम का उस तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाया जिस तरह दीपिका पादुकोण ने कर लिया। उनकी ‘Shero’ एक जिहादी साबित हुई। उनका Whatsapp स्टंट बुरी तरह फेल हो गया। उनका डॉक्टर कांग्रेसी निकला। लेकिन किसी ने तो अपने हितों के लिए इस पूरे तंत्र का इस्तेमाल किया। वाह दीपिका!