हाल ही में रिलीज़ हुई ‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर’ ने बॉक्स ऑफिस पर झंडे गाड़ दिये है। सूबेदार तानाजी मालुसरे के शौर्य गाथा पर आधारित इस फिल्म ने दर्शकों को भर-भर के सिनेमाघरों तक खींचा है। फिल्म ने भारत से अब तक लगभग 119 करोड़ रुपये और दुनिया भर के कलेक्शन को मिलाकर कुल 152 करोड़ रुपये की ज़बरदस्त कमाई की है। बॉक्स ऑफिस विशेषज्ञों के अनुसार तान्हाजी अब एक बॉक्स ऑफिस हिट बनने की ओर अग्रसर है। तान्हाजी ने फिल्म के लगभग हर पहलू के लिए खूब तालियां बटोरी हैं, चाहे वो अभिनय हो, संगीत हो, या फिर वीएफ़एक्स ही क्यों न हो। नरवीर सूबेदार तानाजी मालुसरे के रूप में अजय देवगन ने एक अमिट छाप छोड़ी है, तो वहीं सैफ अली खान ने कोंडाणा दुर्ग के मुगल किल्लेदार उदयभान राठौड़ के रूप में सबको अपने अभिनय से रिझाया है। परंतु जिस एक एक्टर के चित्रण पर कम ही लोगों का ध्यान गया है, वह है ल्यूक केनी, जिसने मुगल बादशाह औरंगज़ेब का किरदार निभाया और ऐसा सटीक चित्रण किया है, जो निस्संदेह कुछ विशेष प्रकार के लोगों को बहुत चुभा होगा।
ल्यूक केनी एक एंग्लो इंडियन एक्टर हैं, जिन्हें ‘रॉक ऑन’, ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘इनसाइड एज’ जैसे प्रोजेक्ट्स में उनके अभिनय के लिए जाना जाता है। ‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर’ में उन्हें मुगल बादशाह औरंगज़ेब के किरदार के लिए चुना गया था। उन्होंने जिस प्रकार से मुगल बादशाह का चित्रण किया है, उससे कई लोग जल भुन के लाल पीले अवश्य हुए हैं। उदाहरण के लिए एक ‘वोक’ रिव्यू के इस अंश को ही देख लीजिये –
“कुछ उदाहरणों को छोड़ दें तो मराठाओं को बिलकुल कर्तव्यनिष्ठ योद्धाओं के तौर पर दिखाया गया है। मुगल उल्टे लालची, नीच लोग हैं जो जात और जान की मांग करते हैं। उन्हें दरिंदे और मौका परस्त बताया गया है। अच्छाई और बुराई की ये कथित लड़ाई 3डी में दिखाई गयी है। पर ओम राउत आपको वन डाइमेन्शनल इतिहास के बारे में सवाल पूछने का ज़रा भी समय नहीं देते”।
अब ये कुंठा तो स्वाभाविक है, आखिर तीर जो निशाने पर लगा है। फिल्म में औरंगज़ेब का परिचय एक लंबे, हृष्ट पुष्ट बाहुबली के तौर पर चित्रित नहीं किया गया है, जैसा कि हमारे लिबरल बंधु चाहते थे। इसके विपरीत उसे उनके वास्तविक रूप में दिखाया गया है, जो अपने खर्चे के लिए भले ही टोपियाँ बुनते हो, पर अपने साम्राज्य का प्रभुत्व दिखाने के लिए लोगों के खून पसीने की कमाई और उनकी संस्कृति को लूटने से भी कोई परहेज नहीं करते थे।
वास्तविक रूप से औरंगज़ेब के व्यक्तित्व का ‘तान्हाजी’ से सटीक चित्रण तो शायद ही कभी किया जाएगा। औरंगज़ेब और उसके मुगल पूर्वज मूल रूप से उज़्बेकिस्तान से आते थे, जो अधिकतर मध्यम कद के होते थे। इनके हावभाव, इनका मुंह ज़्यादा आकर्षक नहीं हुआ करता था, और तो और इनके गालों पर दाढ़ी भी कभी उभर के नहीं आती थी। इसके साथ ही साथ औरंगजेब के सिर पर कम ही बाल हुआ करते थे, जिसे ल्यूक केनी ने बड़ी कुशलता से पर्दे पर चित्रित किया है। अब जिनके लिए औरंगज़ेब जैसा शासक किसी आराध्य से कम नहीं है, उन्हें ऐसा यथार्थवादी, ‘No Holds Bard’ चित्रण तो निस्संदेह बुरा लगेगा ही।
इस फिल्म में एक जगह औरंगज़ेब के राज में होने वाले अत्याचारों को एक संवाद में बहुत अच्छे से दर्शाया गया है, “दिन में तुम्हारी औरतें निकल नहीं सकती। तुम्हारे सामने तुम्हारे जानवरों को छीन के ले जाते हैं यह, और यहाँ तक कि मरने पर तुम लोग खुलकर श्रीराम का नाम भी नहीं ले सकते। क्या ज़िंदा हो तुम लोग? वहाँ आलमगीर काशी विश्वनाथ को तोड़ रहा है, और यहाँ उदयभान काशी को मार रहा है!”
द क्विंट, द लॉजिकल इंडियन जैसे कई पोर्टल्स तान्हाजी में मुगलों के चित्रण से काफी आहत हुए, जो उनके लेखों में साफ दिखाई देता है। एक जगह तो द लॉजिकल इंडियन ने लिखा है, “चाहे बाजीराव मस्तानी हो या फिर पद्मावत, केसरी हो या मणिकर्णिका, या फिर पानीपत और तान्हाजी जैसी फिल्में ही क्यों ना हो, अब जनता को ऐतिहासिक रूप से गलत और बकवास कहानियाँ बताई जा रही है, जिससे राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे सकें। प्लॉट लगभग एकसमान रहता है – नैतिकता या मातृभूमि के लिए युद्ध होता है, जिसमें लगभग हर बार एक मुसलमान ही होता है”। आए हाए, जलन तो देखिये इन साइट्स की।
‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर’ न केवल दर्शकों का दिल जीतने में सफल रही है, अपितु इतिहास के लगभग शत प्रतिशत सटीक चित्रण को पर्दे पर रूपांतरित करने में भी सफल रही है। अब समय आ गया है कि इतिहास के वास्तविक चित्रण को हम जितना हो सके, उतना बढ़ावा दें, और ‘तान्हाजी’ जैसी फिल्में इसी दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।